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खिरियाबाग आंदोलन : साम-दाम-दंड-अर्थ-भेद सब अपना रही सरकार

जमुआ गांव की सुनीता भारती बताती हैं कि पूरे आठ गांवों में घनी आबादी है कि जब वे उजाड़ दिए जाएंगे तो कहां जाएंगे? इसीलिये धरना दे रहे हैं। अकेले जमुआ गांव में चार हजार घर हैं। सुनीता बताती हैं कि ज़मीन बचाने के इस आंदोलन में सारी जातियों के लोग एक साथ हैं। पढ़ें, सुशील मानव की रपट

पिछले चार महीने से लगातार उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के खिरियाबाग में प्रस्तावित मंदूरी अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे के लिये ज़मीन अधिग्रहण के विरोध में स्थानीय लोग दिन-रात धरने पर बैठे हैं। आजमगढ़ के डीएम के संग तीन बेनतीजा बैठकें हो चुकी हैं। स्थानीय लोग कह रहे हैं कि वे अपनी ज़मीन किसी भी क़ीमत पर नहीं देंगे।

आखिर क्या है मंदुरी एयरोपोर्ट प्रोजेक्ट, जिसका विरोध कर रहे हैं स्थानीय लोग?

बताते चलें कि आजमगढ़ के मंदुरी हवाई पट्टी का विस्तार सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्राथमिकता वाली परियोजनाओं में से एक है। यह मंदुरी बलदेव गांव में अवस्थित है। आंचलिक संपर्क योजना के तहत यहां से फिलहाल 32 सीटर प्लेन उड़ाने की योजना है। आजमगढ़ के मंदुरी बल्देव गांव में पहले से ही हवाई पट्टी है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी आजमगढ़ आए थे तो उन्होंने यहां एयरपोर्ट की घोषणा की थी, और अगस्त 2018 में इसके विस्तार कार्य का शिलान्यास किया था। मंदुरी एयरपोर्ट का भविष्य में और विस्तार कर इसे इंटरनेशनल एयरपोर्ट के रूप में विकसित करने की योजना है। 

इस संदर्भ में जो अब नयी सूचना आ रही है, वह यह है कि स्थानीय लोगों के भारी विरोध के बीच बिग चार्टर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी इस एयरपोर्ट से अगले महीने लखनऊ के लिए विमान सेवा शुरू करने जा रही है।

स्थानीय प्रशासन ने एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के लिए करीब 670 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करने की योजना है। पहले चरण में 360 एकड़ जमीन का सर्वेक्षण किया जा चुका है। दूसरे चरण में 310 एकड़ जमीन का सर्वेक्षण बाकी है। शासन की ओर से जिला प्रशासन को उपलब्ध कराई गई सूची में सौरा, साती, कंधरापुर, मधुबन और कुआ देवपट्टी आदि कुछ गांव बाहर हो गए है। इनके स्थान पर मंदुरी, जमुआ हरिराम, गदनपुर हिच्छन पट्टी, कादीपुर, हसनपुर, जोलहा जमुआ और जिगिना कर्मनपुर गांव सरकार की इस योजना की जद में आ गए हैं। योगी सरकार ने फिलहाल जिन गांवों के किसानों की जमीन अधिग्रहित करने की योजना बनाई है उसमें गदनपुर हिच्छनपट्टी, कुंवा देवचंद पट्टी, कंधरापुर, मधुबन, बलदेव मंदुरी, सांती, सऊरा आदि गांव शामिल हैं। 

अपनी जमीन बचाने को जुटे स्थानीय लोग

वहीं विरोध कर रहे ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन बगैर जमीन की पैमाइश किए ही अधिग्रहित करने के लिए नाप-जोख करा रहा है। उनका कहना है कि वे अपनी ज़मीन किसी कीमत पर नहीं देंगे। आंदोलनरत लोगों का कहना है कि अधिग्रहण के लिए 80 प्रतिशत भूस्वामियों की सहमति संबंधी नियम का भी सरकार पालन नहीं कर रही है और जबरिया जमीन हथिया लेना चाह रही है।

हालांकि स्थानीय लोगों को अर्बन नक्सली करार देकर खारिज करने की कोशिशें की जा रही हैं। दैनिक हिंदी ‘अमर उजाला’ के वाराणसी संस्करण में गत 15 जनवरी, 2023 को सुरक्षा एजेंसिंयों के हवाले से यह खबर प्रकाशित की गयी कि खिरियाबाग आंदोलन अर्बन नक्सलियों के शह और सहयोग से चल रहा है जो बनारस में सक्रिय हैं। अख़बार ने लिखा कि सुरक्षा एजेंसियों को पता चला है कि ऐसे नक्सलियों की संख्या 130 है और उनकी पैठ बनारस विश्वविद्यालय में हो चुकी है।

इसके पहले गत 21 नवंबर, 2022 को आजमगढ़ से भाजपा के सांसद दिनेश लाल निरहुआ ने खिरियाबाग़ आंदोलनकारियों को मनबढ़ू की संज्ञा दी और कहा कि आजमगढ़ को आगे बढ़ाना है तो पहले मनबढ़ई को खत्म करना होगा। उन्होंने आंदोलनकारियों को धमकाते हुए कहा कि मनबढ़ई खत्म करने का एक ही उपाय है कि या तो उन्हें जेल के अंदर भेजा जाय, नहीं तो सीधा ऊपर भेज दिया जाय। जबकि बनारस और पूरे पूर्वांचल में सीधा भेजने का मतलब हत्या करने का प्रतीक है। निरहुआ ने हिंसक बयानबाजी को जारी रखते हुए यह भी कहा कि लोग ज़्यादा मनबढ़ू हो गए हैं उनके घुटने पर मारकर घुटना तोड़ दो।

खिरियाबाग आंदोलन के नेता राजीव यादव के अपहरण की नाकाम कोशिश

चलते आदोलन के बीच ही गत 2 फरवरी, 2023 को खिरियाबाग आंदोलन के नेता राजीव यादव का एक बार फिर अपहरण करने की कोशिश की गयी। राजीव यादव आजमगढ़ के जिलाधिकारी से तीसरे दौर की वार्ता के बाद आंदोलनस्थल वापस आ रहे थे। किसान नेता राजीव यादव और वीरेंद्र यादव पौने तीन बजे के करीब भवर नाथ के पास पंहुचे तो चार मोटरसाइकिल सवार लोगों ने राजीव यादव व अन्य नेताओं को जबरन रोक दिया। राजीव यादव के मुताबिक अपराधी हाथ में असलहा लिए थे। 

वहीं इसके पहले राजीव यादव और अधिवक्ता विनोद यादव को 24 दिसंबर को वाराणसी में यूपी पुलिस की एसटीएफ (क्राइम ब्रांच) ने हिरासत में लेकर उनके साथ मारपीट की थी।

प्रशासन पर उठ रहे सवाल

राजीव यादव बताते हैं कि मुख्य मामला अब सर्वे का है। प्रशासन ने पहले एक सर्वे किया फिर दूसरा सर्वे किया। दूसरा सर्वे इन्होंने भूमि अधिग्रहण क़ानून के ख़िलाफ़ जाकर किया है, जिसके बारे में जब सवाल पूछा गया तो प्रशासन निरूत्तर हो गया। असल में जो मामला शासन के अधीन विचाराधीन था, उस पर इन्होंने शपथपत्र देना शुरु कर दिया। उसमें भी प्रशासन की नाकामी सामने आयी। अब प्रशासन के लोग कह रहे हैं कि पिछले सर्वेक्षण को छोड़ दें। राजीव यादव बताते हैं कि जब उन्होंने डीएम से कहा कि पिछले सर्वेक्षण को क्यों छोड़ दें तो वे उनकी इस बात पर भड़क गये। 

ज़मीन क़ब्ज़ाने के लिये आधी रात पुलिस का हमला

खैर, प्रशासन के उपर सवाल उठने का यह महज एक उदाहरण नहीं है। इसके पहले सगड़ी तहसील के उप जिलाधिकारी राजीव रतन सिंह की अगुवाई में सर्वेक्षण टीम 13 अक्टूबर, 2022 को आधी रात जमुआ हरिराम पहुंची। उपजिलाधिकारी के साथ दो ट्रकों में भरकर यूपी पुलिस के जवान और ज़मीन पर क़ब्जा करने के लिए तहसील कार्यालय के कर्मचारीगण भी साथ पहुंचे। जब बगैर नोटिस दिए प्रशासन ने आधी रात में सर्वे शुरू किया तो ग्रामीणों ने विरोध किया। बाद में स्थानीय लोगों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत मुकदमा दर्ज करने की धमकी देते हुए मारपीट शुरू कर दी। 

हसनपुरा गांव के निवासी व जमीन मकान बचाओ संयुक्त मोर्चा के संयोजक राम नयन यादव बताते हैं कि एसडीएम राजीव रतन सिंह और उनके साथ आए कर्मचारियों ने पहले गांववालों को धमकी दी, फिर गाली-गलौज और मारपीट शुरू कर दी। महिलाओं और बच्चों के साथ अभद्रता की। ग्रामीणों ने विरोध किया तो पुलिस और पीएसी के जवानों ने लोगों को दौड़ा-दौड़ाकर मारना शुरू कर दिया। यहां तक कि सावित्री और सुनीता भारती जैसी अनेक महिलाओं की पिटाई की गई। 

ज़मीन घर बचाने की मुहिम में सारी जातियों के लोग एक साथ हैं

जमुआ गांव की सुनीता भारती बताती हैं कि पूरे आठ गांवों में इतनी घनी आबादी है कि जब वे उजाड़ दिए जाएंगे कहां जाएंगे? इसीलिये धरना दे रहे हैं। अकेले जमुआ गांव में 4 हजार घर हैं। सुनीता बताती हैं कि ज़मीन बचाने के इस आंदोलन में सारी जातियों के लोग एक साथ हैं। ठाकुर, ब्राह्मण, भुमिहार, चमार, निषाद, यादव, पासवान सभी जातियों के लोगों की ज़मीनें हैं और कोई अपनी ज़मीन नहीं देना चाहता है। 

सुनीता आगे बताती हैं कि सारी जातियों के लोग एकता बनाकर आंदोलन में आते हैं और आंदोलन चला रहे हैं। डीएम के साथ बैठक की बात पर सुनीता कहती हैं कि नहीं वहां से कोई निष्कर्ष नहीं निकला। 

वहीं राम नयन यादव अपने द्वारा किये गये 25 साल पहले के आंदोलन को याद करते हुये कहते हैं कि एक बार उन लोगों ने बेघरों को बसाने के लिए आंदोलन किया था। इस मांग पर सरकार ने उन लोगों से कहा था कि सरकार के पास ज़मीन नहीं है किसी को देने के लिये। राम नयन यादव आगे पूछते हैं कि आखिर जब आज सरकार हम जैसे 40 हजार लोगों को उजाड़ने जा रही है, तो हम कहां जाएंगे और किस ज़मीन पर बसेंगे। 

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

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