जोतीराव फुले ने कहा था– “विद्या बिना मति गई/ मति बिना नैतिकता गई/ नैतिकता बिना गति गई/ गति बिना वित्त गया/ वित्त बिना शूद्र डूबे/ इतने अनर्थ, एक अविद्या ने किए।” (‘किसान का कोड़ा’ की भूमिका से) आज भी यह सामाजिक यथार्थ है, जो बिहार सरकार द्वारा जारी जाति आधारित सर्वेक्षण रिपोर्ट में रेखांकित है।
रिपोर्ट में समूहवार और जातिवार शैक्षणिक स्थिति का ब्यौरा दिया गया है। यह रिपोर्ट बताती है कि ऊंची जातियों के लोग सबसे अधिक उच्च शिक्षा हासिल करते हैं। आंकड़ों की भाषा में कहें तो बिहार में ऊंची जातियों में निरक्षरों की आबादी केवल 18.2345 प्रतिशत है। जबकि पिछड़ा वर्ग में यह आंकड़ा 28.5843 प्रतिशत है। अब यदि हम अत्यंत पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जातियों पर विचार करें तो हम यही आंकड़ा क्रमश: 32.8775 प्रतिशत और 41.3215 प्रतिशत पाते हैं।
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि निरक्षरता जातिगत क्रम के सापेक्ष है। मतलब यह कि सबसे अधिक निरक्षरता अनुसूचित जातियों में है और उनसे कम निरक्षरता अत्यंत पिछड़ा वर्ग की जातियों में है। अत्यंत पिछड़ा वर्ग से कम निरक्षरता पिछड़ा वर्ग में है और पिछड़ा वर्ग से कम निरक्षरता ऊंची जातियों में।
बिहार सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक 2.5 फीसदी ऊंची जाति के लोग स्नातकोत्तर हैं तो पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जातियों के मामले में यह आंकड़ा क्रमश: 0.81 फीसदी, 0.43 फीसदी और 0.28 फीसदी है।

अब यदि पसमांदा जातियों की बात करें तो शैक्षणिक खाई और भी गहरी हो जाती है। मसलन मोमिन (जुलाहे, अंसारी) जाति जो कि अत्यंत पिछड़ा वर्ग में शामिल है, के 29.56 प्रतिशत लोग निरक्षर और 25.89 प्रतिशत लोग पांचवीं तक पढ़े हैं। यदि हम इसका योग करें तो हम पाते हैं कि 55.45 प्रतिशत जुलाहे या तो निरक्षर हैं या फिर केवल साक्षर हैं। वहीं दसवीं तक पढ़ाई करने के बाद पढ़ाई छोड़नेवालों की संख्या 6 लाख 49 हजार 188 है जो कि प्रतिशत के लिहाज से 14.01 है।
इसी से संबंधित एक आंकड़ा यह भी कि बारहवीं के बाद पढ़ाई छोड़नेवाले जुलाहे 8.63 फीसदी हैं। इसके आगे की पढ़ाई करनेवालों में केवल सामान्य विषयों में स्नातक करनेवालों की संख्या 4.31 फीसदी है। इसके अलावा उच्च शिक्षा और प्रोफेशनल शिक्षा लेनेवालों की हिस्सेदारी एक फीसदी से भी कम है। वहीं स्नातकोत्तर उत्तीर्ण लोगों की आबादी केवल 0.57 फीसदी है।
कौन शिक्षित, कौन अशिक्षित
जाति/समूह | कुल आबादी | निरक्षर/ प्रतिशत | पांचवीं तक शिक्षा | सामान्य विषयों में स्नातक |
---|---|---|---|---|
सामान्य वर्ग (ऊंची जातियां) | 2,01,09,207 | 36,66,823 (18.2345 प्रतिशत) | 35,09,576 (17.45 प्रतिशत) | 26,95,820 (13.41 प्रतिशत) |
पिछड़ा वर्ग | 3,54,63,936 | 1,01,37,150 (28.5843 प्रतिशत) | 76,92,304 (21.69 प्रतिशत) | 24,01,817 (6.77 प्रतिशत) |
अत्यंत पिछड़ा वर्ग | 4,70,80,534 | 1,54,78,928 (32.8775 प्रतिशत) | 1,16,07,532 (24.65 प्रतिशत) | 20,09,453 (4.27 प्रतिशत) |
अनुसूचित जाति | 2,56,89,820 | 1,06,15,428 (41.3215 प्रतिशत) | 62,46,358 (24.31 प्रतिशत) | 7,83,050 (3.05 प्रतिशत) |
जुलाहों से अधिक निरक्षरता धुनिया बिरादरी में है। बिहार सरकार की रपट के मुताबिक धुनिया जाति की 38.60 फीसदी आबादी निरक्षर है और 27.90 फीसदी आबादी ने पांचवीं तक की पढ़ाई की है। केवल 0.19 फीसदी आबादी ने स्नातकोत्तर और केवल 0.01 फीसदी आबादी के पास पीएचडी या सीए की डिग्री है।
यह भी पढ़ें – बिहार के पसमांदा जातियों की बदहाली (तीसरा भाग, संदर्भ : अति पिछड़ा वर्ग में शामिल अरजाल मुसलमान)
यह विडंबना ही है कि आज जबकि देश को आजाद हुए 75 साल से अधिक समय बीत चुका है और पसमांदा जातियाें की बड़ी आबादी अशिक्षा के अंधेरे में है। यह अंधेरा अरजाल जातियों के मामले में और घना हो जाता है।
पसमांदा जातियों का हाल
जाति | कुल आबादी | निरक्षर/प्रतिशत | सामान्य विषयों में स्नातक/प्रतिशत |
---|---|---|---|
मोमिन (जुलाहे अंसारी) | 46,34,245 | 13,70,093 (29.56 प्रतिशत) | 1,99,788 (4.31 प्रतिशत) |
धुनिया | 18,68,192 | 7,20,987 (38.6 प्रतिशत) | 34,921 (1.87 प्रतिशत) |
हलालखाेर, लालबेगीया, भंगी, मेहतर (मुस्लिम) | 69,914 | 20,350 (29.12 प्रतिशत) | 3,946 (5.64 प्रतिशत) |
इदरीसी (दर्जी, मुस्लिम) | 3,29,661 | 92,188 (27.96 प्रतिशत) | 13,863 (4.21 प्रतिशत) |
मसलन हलालखोर, लालबेगीया और मुस्लिम भंगियों की बात करें तो कुल 69 हजार 914 की आबादी वाले इस जाति समूह में 20 हजार 350 लोग (29.11 प्रतिशत) निरक्षर हैं और 16 हजार 512 लोगों (23.62 प्रतिशत) की शैक्षणिक योग्यता पांचवीं पास है। केवल 3,946 हलालखोर व लालबेगी सामान्य विषयों से स्नातक हैं। पोस्ट ग्रेजुएट करनेवालों की संख्या केवल 429 और डॉक्टरेट व सीए की परीक्षा उत्तीर्ण करनेवालों की संख्या केवल 15 है।
बहरहाल, बिहार सरकार ने रिपोर्ट आने के बाद सूबे में पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 18 प्रतिशत और अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण 18 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया गया है। लेकिन इसका अधिक लाभ पसमांदा मुसलमानों को तभी मिलेगा जब ये अधिक से अधिक शिक्षा ग्रहण कर सरकारी नौकरियों के लिए आवश्यक अर्हता हासिल करें।
(संपादन : राजन/अनिल)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, संस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in