गत 10 अक्टूबर, 2023 को ‘घेरा डालो डेरा डालो’ नारे के साथ भूमिहीन लोगों ने तीसरी बार गोलबंदी की। आंबेडकर जन मोर्चा के आह्वान पर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में मंडलायुक्त कार्यालय पर भूमिहीनों के लिए कृषि भूमि की मांग लेकर एक धरना प्रदर्शन हुआ। कार्यक्रम में पांच से आठ हजार लोग जुटे, जिनमें अधिकांश महिलाएं थीं। इससे पहले ये लोग मार्च, 2023 और दिसंबर, 2022 में भी अपनी मांग लेकर गोलबंदी कर चुके हैं।
आंदोलन में इस मांग को दोहराया गया कि प्रत्येक भूमिहीन जिसमें अनुसूचित जाति/जनजाति, पिछड़ा वर्ग व अल्पसंख्यक समाज के लोगों को एक-एक एकड़ कृषि योग्य ज़मीन दी जाय। इसके अलावा अनुसूचित जाति/ जनजाति के परिवारों को व्यवसाय के लिए 20 लाख रुपए, इन वर्गों के छात्र-छात्राओं की विदेश शिक्षा के लिए 25 लाख रुपए के अनुदान की मांग की गई। आंदोलन के दौरान कुल 10 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से 9 लोगों को 29 अक्टूबर को जमानत मिल गई, जबकि एक फ्रांसीसी नागरिक अभी जेल में ही बंद है।
आइए, इस रिपोर्ट के मार्फ़त हम यह जानते हैं कि इस आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किये गये लोगों की पारिवारिक और सामाजिक पृष्ठभूमि क्या है।
विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं ऋषि कपूर आनंद
गोरखपुर निवासी 29 वर्षीय ऋषि कपूर दलित समुदाय से आते हैं। घर में माता-पिता, भाई, भाभी, पत्नी और डेढ़ साल का बच्चा है। उनकी जीवनसाथी गृहिणी हैं और घर परिवार की जिम्मेदारी संभालती हैं। बड़े भाई अहमदाबाद में एक कंपनी में 14 हजार रुपए के मासिक वेतन पर काम करते हैं। ऋषि कपूर का जीवन संघर्षों से भरा हुआ है। कोविड महामारी के समय में वो डिस्पोजल का सामान दुकानों पर पहुंचाने का काम करके परिवार का गुज़ारा करते थे। उनके पिता इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन से सेवानिवृत्त हैं। पिता की 14 हजार रुपए मासिक की पेंशन से ऋषि के परिवार का गुज़ारा होता है। पिता ने रिटायरमेंट के बाद चार कमरे बनवाए हैं। उसी में पूरा परिवार एक साथ रहता है। खेती लायक थोड़ी-सी ज़मीन है, जिसे पिता ने रिटायरमेंट के बाद मिले पैसे से ख़रीदी है। ऋषि कपूर के दादा स्वतंत्रता सेनानी थे। परिवार का सपना था कि ऋषि कपूर डाक्टर बनें। ऋषि ने पूरे जी-जान से तैयारी भी की पर उन्हें मनचाही रैंक नहीं मिल पाई और कुछ ज़रूरी दस्तावेज न बनवा पाने के चलते भी वे घर-परिवार के सपने को पूरा नहीं कर सके।
वे बताते हैं कि कोविड के दौरान उनकी मुलाकात श्रवण कुमार निराला से हुई और फिर वे भूमि आंदोलन से जुड़कर पूरी तरह से राजनीति में आ गये। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने आंबेडकर जन मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर गोरखपुर जिले की खजनी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा। फिलहाल वे दलित-बहुजन वर्ग के मुद्दों को लेकर पूरी तरह से सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों को समर्पित हैं।
वंचितों की लड़ाई मिलकर लड़ते हैं नीलम बौद्ध और जयभीम प्रकाश
नीलम बौद्ध (38 वर्ष) और जयभीम प्रकाश (41 वर्ष) दोनों एक-दूसरे के हमसफ़र हैं। नीलम जहां लंबे अरसे से पत्रकारिता कर रही हैं, वहीं जयभीम प्रकाश पिछले 16 साल से दिल्ली हाईकोर्ट में बतौर अधिवक्ता प्रैक्टिस कर रहे हैं। भूमि आंदोलन से कैसे जुड़ना हुआ, इस सवाल के जवाब में जयभीम प्रकाश बताते हैं कि श्रवण कुमार निराला ने उन्हें कार्यक्रम के लिए बतौर वक्ता आमंत्रित किया था और पहली ही बार इस आंदोलन में शामिल होने वे गोरखपुर पउ1हुंचे थे। वे बताते हैं कि जल, जंगल और ज़मीन पर सबका हक़ है। ये जीने के अधिकार में शामिल है। संविधान हमें जीने का अधिकार देता है, लेकिन इसके लिए जो स्थिति ज़रूरी तौर पर चाहिए, उनको पूरा करने की गारंटी नहीं देता, बल्कि सरकारों पर छोड़ देता है। अतः भूमिहीनों के लिए एक बीघा ज़मीन की जो मांग है, वह संवैधानिक और मानवाधिकारों के अनुकूल है।
जयभीम प्रकाश मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में पैदा हुए। उनके पिता मज़दूर थे और वो रोजी-रोटी की तलाश में परिवार को लेकर दिल्ली आए। यहां आकर उन्होंने वेल्डिंग का काम सीखा और अपनी खुद की वेल्डिंग दुकान शुरू की। 1999 में पिता के निधन के बाद दुकान संभालते हुए जयभीम ने पढ़ाई भी ज़ारी रखी। वो राजनीति शास्त्र और प्राचीन इतिहास से एमए और एलएलबी हैं। उन्होंने बुद्धिज्म विषय से नेट क्वालीफाइ किया है। साथ ही वे पिछले 16 सालों से दिल्ली हाईकोर्ट में वकील हैं और ‘धम्म पथ’ नाम से एक सांस्कृतिक परिवर्तन का अभियान चला रहे हैं।
वहीं नीलम बौद्ध पेशे से पत्रकार हैं। भूमि आंदोलन कार्यक्रम में वह बतौर वक्ता और कवरेज के लिए गोरखपुर पहुंची थीं। वो बताती हैं जंतर-मंतर पर भी एक कार्यक्रम हुआ था। इस मुद्दे को लेकर वहां श्रवण कुमार निराला जी से मुलाकात हुई थी। नीलम बौद्ध राजनीतिक और सामाजिक कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी निभाती चली आ रही हैं। वह दो बार चुनाव भी लड़ चुकी हैं। उन्होंने दिल्ली विधानसभा का चुनाव बसपा प्रत्याशी के तौर पर लड़ा। एक बार वह काउंसलर का चुनाव भी लड़ चुकी हैं। इसके अलावा वो अपना खुद का ‘एनबी न्यूज 24×7’ चलाती हैं। इसके अलावा तीन अन्य चैनल ‘धम्म पथ इंडिया’, ‘आंबेडकर धम्म क्रांति’ और ‘नीलम बौद्ध’ ब्लॉग चलाती हैं। दंपत्ति को एक बेटा है, जो पढ़ाई कर रहा है।
पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी नीलम का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ, पर उनके जन्म के दो माह बाद ही पिता सपरिवार दिल्ली आ गए थे। नीलम के पिता सामाजिक कार्यकर्ता थे। नीलम अपने जीवन के तमाम बदलावों और सामाजिक राजनीतिक बदलावों का श्रेय अपने जीवनसाथी जयभीम प्रकाश को देती हैं।
नीलम भूमि आंदोलन का समर्थन करते हुए कहती हैं कि आज लोगों के पास रोज़गार नहीं है। जो मज़दूरी का काम मिलता है वो भी ठेकेदारी के अधीन है, जिसमें बहुत कम पैसा मिलता है। अगर ग़रीब व्यक्ति के पास एक बीघा ज़मीन होगा तो कम से कम वह भूखा तो नहीं मरेगा। इसलिए इस कार्यक्रम से प्रभावित होकर वो भूमि आंदोलन से जुड़ीं।
बहुजनों की आवाज उठाते रहे हैं पत्रकार संतोष कुमार अम्बेष
करीब 33 वर्षीय संतोष कुमार अम्बेष पेशे से पत्रकार हैं और हर्ष विहार कॉलोनी, दिल्ली में रहते हैं। उनके दादा वाराणसी, उत्तर प्रदेश से निकलकर दिल्ली आए थे। संतोष दलित समुदाय को समर्पित न्यूज एजेंसी यूएनए (यूनिवर्सल न्यूज एजेंसी) के लिए काम करते हैं। इसके अलावा वे ‘आवाज़ भारत’ के नाम से अपना यूट्यूब चैनल चलाते हैं। संसाधनहीन इस संस्था के वो खुदमुख्तार डायरेक्टर भी हैं और रिपोर्टर भी। उनके पिता रेलवे में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी रहे और तृतीय श्रेणी कर्मचारी के पद से रिटायर हुए। उनके पिता सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे हैं। अपने पिता से ही उन्हें भी सामाजिक कार्य करने की प्रेरणा मिली। उनकी जीवनसंगिनी गृहिणी हैं। उनके तीन बच्चे हैं, जो अभी छोटे हैं और पढ़ाई कर रहे हैं।
संतोष कुमार अम्बेष बताते हैं कि वह भी ‘घेरा डालो, डेरा डालो’ नारे के साथ सोशल मीडिया पर चल रही मुहिम के माध्यम से भूमि आंदोलन से जुड़े। मुहिम अच्छी लगी तो वो भी जुड़ गए। 10 अक्टूबर को आंदोलन को कवर करने के लिए दिल्ली के बहुजन पत्रकारों के साथ गोरखपुर पहुंचे थे, जहां उन्हें होटल से गिरफ्तार कर लिया गया।
मजदूरी के अलावा यूट्यूपब भी चलाते हैं रमेश चंद्र भारती
रमेश चंद्र भारती दिल्ली में रहकर मज़दूरी करते हैं। इसके साथ ही ‘पब्लिक दस्तक’ नाम से एक यूट्यूब चैनल भी चलाते हैं। उनके पिता और भाई भी मज़दूरी करके जीवनयापन करते हैं। मूल रूप से संत कबीर नगर जिले से तआल्लुक़ रखने वाले रमेश दलित समुदाय के हैं और खुद भी भूमिहीन हैं। उनकी जीवनसंगिनी गृहिणी हैं। दंपत्ति के तीन बच्चे हैं। रमेश चंद्र भारती बताते हैं कि खुद भूमिहीन होने के चलते अपने हित की लड़ाई जानकर उन्होंने भूमि आंदोलन से एक जुड़ाव महसूस किया। वे बताते हैं कि जनवरी महीने में जब आंदोलन चल रहा था, तब सोशल मीडिया पर ‘घेरा डालो, डेरा डालो’ नाम से एक वायरल पोस्ट पर उनकी नज़र पड़ी। उस पोस्ट में संपर्क नंबर भी था। उस नंबर पर कॉल करके उन्होंने सीमा गौतम और श्रवण कुमार निराला से बात की। बातों का सिलसिला बना रहा जो कि आंदोलन से जुड़ने का जरिया बना। गत 10 अक्टूबर को वे भी कार्यक्रम की कवरेज करने के लिए गोरखपुर पहुंचे थे, जहां उन्हें होटल से गिरफ्तार कर लिया गया।
घोर हिंदूवादी से आंबेडकरवादी बने मनोज अंतानी
ग़ाज़ियाबाद निवासी 47 वर्षीय मनोज अंतानी पेशे से पत्रकार हैं और ‘समता की आवाज़’ नाम से एक यूट्यूब न्यूज चैनल चलाते हैं। मनोज अंतानी के पिताजी दिल्ली में स्कूल शिक्षक थे। ग़ाज़ियाबाद शास्त्रीनगर से इंटरमीडिएट पास करने के बाद स्नातक की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने फोटोग्राफी सीखी और पढ़ाई से दूर हो गये। उन्होंने एक फोटो स्टूडियो दुकान खोलकर शादी-विवाह के सीजन में काम किया। मनोज अंतानी चार भाई हैं। छोटा भाई दिल्ली में गणित का शिक्षक है। बड़े भाई संजीव एडवोकेट और व्यवसायी हैं। सबसे बड़े भाई अरुण कुमार पीएचडी व बीएड हैं और कोई ट्रेनिंग का काम करते हैं। मनोज अंतानी शादी के बाद ग़ाज़ियाबाद के शालीमार गार्डेन में शिफ्ट हो गए और अपना स्टूडियो चलाने लगे।
वर्ष 1996-97 में जब केबल टीवी का ख़ूब ट्रेंड चल रहा था और छोटे न्यूज चैनल वाले अपनी कैसेट और सीडी/डीवीडी केबल चैनल वालों को चलाने के लिए देते थे, तब वीडियो एडिटिंग के लिए वे लोग मनोज की दुकान पर जाया करते थे। मनोज उनके लिए मौके पर जाकर न्यूज की शूटिंग भी करते थे। तब तक उन्हें बहुजन पत्रकारिता के बारे में कुछ नहीं मालूम था। साल 2014 में दिल्ली में एक कार्यक्रम में ‘आवाज़ इंडिया टीवी’ के एक पत्रकार से मुलाकात हुई जो उनके काम से प्रभावित हुए। उन्होंने मनोज को कहा कि उनकी संस्था सामाजिक कार्य करती है और मनोज उनसे जुड़कर उनके लिए काम करें। और बतौर सीनियर कैमरामैन उन्होंने वहां दो साल तक अपनी सेवाएं दी। छः सात बार वैष्णो देवी धाम जाने वाले और कांवड़ यात्रा में शामिल होते आ रहे मनोज अंतानी ने घोर हिंदू से घोर आंबेडकरवादी तक का सफ़र तय किया। उनकी जीवनसाथी एमए, बीएड, डीलिट हैं और गृहिणी हैं। बड़ा बेटा बीटेक कर रहा है तथा छोटा बेटा नवीं कक्षा में है।
भूमि आंदोलन से कैसे जुड़ना हुआ? इस सवाल के जवाब में वह कहते हैं कि आगरा के प्रसिद्ध भाषण में बाबा साहेब ने दलितों के भूमि के अधिकार पर कहा था। फिर मान्यवर कांशीराम जी ने नारा दिया कि ‘जो ज़मीन सरकारी है वो ज़मीन हमारी है’। अब श्रवण कुमार निराला के आंबेडकर जन मोर्चा ने भूमिहीनों के लिए एक बीघा ज़मीन की मांग लेकर आंदोलन शुरू किया तो लगा कि इनसे जुड़ना चाहिए।
मनोज अंतानी आगे बताते हैं कि कांशीराम जी के परिनिर्वाण दिवस पर बसपा कार्यालय में हर साल होने वाले कार्यक्रमों में पिछले तीन सालों से लगातार जा रहे हैं तो इस साल लखनऊ में कार्यक्रम में शामिल होकर वहीं से गोरखपुर चले गए। उनके साथ दिल्ली से ही संतोष अम्बेष और रमेश चंद्र भारती भी दिल्ली से लखऩऊ और लखनऊ से गोरखपुर पहुंचे थे। मनोज अंतानी बताते हैं कि उनलोगों ने पुलिस अधिकारियों से सवाल किया कि उन्होंने दलित महिलाओं को क्यों रोक रखा है। हमने उनसे सवाल किया कि कमिश्नर कार्यलय के अंदर आप कैसे धारा 144 लागू कर सकते हैं। पुलिस अधिकारियों ने बहुजन पत्रकार राहुल नागपाल की आईडी छीन ली। हमलोगों ने उनको घेरकर उनका आईकार्ड वापिस दिलवाया। इससे वे लोग बौखला गए। गिरफ्तारी के बाद पुलिस अधिकारियों ने कहा भी कि गोरखपुर के पत्रकारों में हमसे सवाल पूछने की हिम्मत नहीं है। तुम लोग कहां से आये हो।
मनोज अंतानी बताते हैं कि गिरफ्तारी के बाद पुलिस अधिकारी दिल्ली के तमाम पत्रकारों से लगातार यह सवाल पूछ रहे थे कि दिल्ली से गोरखपुर आने के लिए आप लोगों की फंडिंग किसने की।
आंबेडकर जन मोर्चा के संस्थापक हैं श्रवण कुमार निराला
करीब 50 वर्षीय श्रवण कुमार निराला गोरखपुर के ऐतिहासिक चौरी-चौरा के केवलाचक गांव के निवासी और अम्बेडकर जन मोर्चा पार्टी के संस्थापक और सामाजिक राजनीति कार्यकर्ता हैं। उनके पिता राम प्यारे राम गन्ना विभाग में एकाउंटेंट थे। पिता की सामाजिक जागरुकता के चलते उनके घर में सामाजिक राजनीतिक माहौल रहा है। श्रवण कुमार निराला गोरखपुर विश्वविद्यालय में छात्रनेता रहे हैं। उन्होंने देश भर के विश्वविद्यालयों में घूमकर दलित पिछड़े वर्ग के छात्रों को संगठित किया है। करीब 15 वर्षों तक उन्होंने बसपा में संगठन का काम किया है और कई मंडलों के प्रभारी रहे हैं। श्रवण कुमार निराला दो भाई हैं। उनकी जीवनसंगिनी रीमा गौतम गृहिणी हैं।
बहुजन मुद्दों को लेकर वे लगातार राजनीतिक सामाजिक आंदोलन करते आ रहे हैं। इसी कड़ी में भूमिहीन ग़रीब लोगों के लिए एक-एक एकड़ ज़मीन की मांग लेकर पिछले तीन साल से वे आंदोलनरत हैं। वे बासगांव विधानसभा से चुनाव लड़ चुके हैं। इसी सीट से आगामी लोकसभा चुनाव भी लड़ेगें। उनकी मंशा भूमि के मुद्दे को लेकर सदन से लेकर सड़क तक संघर्ष करने की है। उनकी पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनाव में चार प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें दो सीटों पर नामांकन खारिज़ हो गया था जबकि 2 सीटों बांसगांव और खजनी पर उनकी पार्टी के उम्मीदवार को पराजय मिली थी।
दलित आंदोलनों को नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी सरवन राम दारापुरी
करीब 80 वर्षीय एस.आर. दारापुरी एक भारतीय राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता है। उत्तर प्रदेश के 1972 बैच के आईपीएस अधिकारी और पुलिस महानिरीक्षक के पद सेवाप्राप्त दारापुरी लोक राजनीति मंच के प्रदेश संयोजक और ऑल इंडिया पीपल्स फ्रंट (रेडिकल्स) के राष्ट्रीय सचिव और अध्यक्ष हैं। वे यूपी में पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के उपाध्यक्ष हैं। साथ ही वे दलित मुक्ति मोर्चा के संयोजक हैं। उनका पैतृक निवास दारापुर, जालंधर, पंजाब है।
दारापुरी 10 अक्टूबर को कार्यक्रम में बतौर वक्ता शामिल होने गोरखपुर पहुंचे थे। उन्होंने बमुश्किल 15 मिनट कार्यक्रम को संबोधित किया होगा। उन्हें कार्यक्रम के अगले दिन होटल से गिरफ्तार किया गया। इससे पहले उन्हें नागरिकता संशोधन अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के बाद लखनऊ में गिरफ्तार किया गया था।
बहुजनों के हक में लेखन करते रहे हैं डॉ. सिद्धार्थ
भूमि आंदोलन में गिरफ्तार लोगों में शामिल वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सिद्धार्थ एकमात्र गैर-दलित चेहरा हैं। उनका पैतृक निवास गोरखपुर जिले के गांव जमोली खुर्द में हैं।
भदौली से इंरमीडिएट पढ़ाई करने के बाद डॉ. सिद्धार्थ ने स्नातक से पीएचडी तक की पढ़ाई गोरखपुर यूनिवर्सिटी से की। लंबे समय तक उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय रहें और उसके बाद सावित्रीबाई फुले जनसाहित्य केंद्र से भी जुड़े रहे। फिर साल 2014 में रोटी रोज़ी के लिए दिल्ली चले आए, जहां 2017 में वह फारवर्ड प्रेस में बतौर हिंदी संपादक और फिर 2020 से जनचौक न्यूजपोर्टल में संपादक के पद पर काम किया। भूमि आंदोलन से वे शुरू से जुड़े हुए हैं। दिसंबर, 2022 में जब पहली गोलबंदी हुई तो उसमें भी इन्होंने हिस्सा लिया था। उनका तर्क है कि दलित बहुजन वर्ग के ग़रीबों को भूमि देने से पलायन आदि रुकेगा और बहुजन महिलाओं का सम्मान भी बढ़ेगा।
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)
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