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वार्षिकी : शैक्षणिक संस्थानों में जारी रहा दलितों के उत्पीड़न और खुदकुशी का दौर

उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के कालपी तहसील क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय में 18 मार्च को तीसरी कक्षा में में पढ़ने वाले 9 साल के एक दलित बच्चे ने शिक्षिका की बाल्टी से पानी पी लिया तो शिक्षिका ने उसे कमरे में बंद करके पीटा। पढ़ें, यह रिपोर्ट

अकादमिक संस्थानों को समाज के अन्य संस्थानों, स्थानों से इस मायने में बेहतर समझा जाता है कि यहां पढ़े-लिखे आधुनिक सोच-विचार वाले लोग होते हैं, और यह उम्मीद की जाती है कि कम-से-कम यहां तो जातीय, नस्लीय, वर्गीय, लैंगिक और सांप्रदायिक उत्पीड़न नहीं होगा। लेकिन साल 2023 की तमाम घटनाएं बताती हैं कि अकादमिक और शैक्षणिक संस्थान दलितों के उत्पीड़न में किसी सामान्य संस्थानों-स्थानों से पीछे तो कतई नहीं हैं।   

स्कूलों में उत्पीड़न और आत्महत्या

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के मीरगंज थाना क्षेत्र के सेमराहो गांव निवासी दलित समुदाय (पासी जाति) के आयुष सरोज बंधवा बाज़ार स्थित कंचन बालिका इंटर विद्यालय में दसवीं का छात्र था। उसे कई दिनों से बुखार आ रहा था। स्कूल से उसके घर फोन कॉल गया कि बच्चे को स्कूल भेजो। वह 9 सितंबर, 2023 को स्कूल पढ़ने गया। पढ़ाई के दौरान उसे तेज बुखार आया तो उसने क्लास टीचर से घर जाने की इज़ाज़त मांगी। कक्षाध्यापक ने उसे प्रिंसिपल के पास भेज दिया। प्रिंसिपल ने उसे एक घंटे तक कड़ी धूप में खड़ा रखा। जब धूप से उसकी तबीअत बिगड़ने लगी तो उसे घर जाने को बोल दिया गया। स्कूल के गेट से बाहर निकलते ही छात्र गिर पड़ा। स्कूल मैनेजमेंट ने परिजनों को ख़बर दी। परिजन अस्पताल लेकर भागे जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।     

वहीं राजस्थान के कोटपूतली-बहरोड़ जिले में जवाहर नवोदय विद्यालय में पढ़ने वाले 10वीं कक्षा के छात्र सचिन ने अपने क्लासरूम के पंखे से लटककर खुदकुशी कर ली। अगले दिन सुबह सफाईकर्मियों ने उसका शव पंखे से लटका देखा। इसके पहले 22 अगस्त की रात सचिन ने अपने पिता बनवारी लाल को फोन करके रोते हुए बताया था कि विवेक सर और राजकुमार सर उसे जातिसूचक गालियां दे रहे हैं और उसके सहपाठियों के सामने उसे अपमानित कर रहे हैं। सचिन ने प्रिंसिपल और वाइस प्रिंसिपल से शिक़ायत की तो उन्होंने कहा कि जिस जाति के हो उस जाति के रहोगे, इसमें ग़लत क्या है। 

केरल के तिरुवनंतपुरम में नेमम विक्ट्री गर्ल्स हायर सेकेंडरी में 10वीं कक्षा में पढ़ने वाली दलित छात्रा अथिरा ने जातिगत उत्पीड़न से तंग आकर 14 जुलाई, 2023 को खुदकुशी कर ली। उसके परिजनों ने आरोप लगाया कि पिछले डेढ़ साल से शिक्षक द्वारा उसे उत्पीड़न और अपमानजनक व्यवहार का सामना करना पड़ रहा था।    

तमिलनाडु के पुदुक्कोट्टई जिले में 3 नवंबर, 2023 को 16 साल के एक दलित छात्र ने खुदकुशी कर अपनी इहलीला को समाप्त कर लिया। मृतक 11वीं कक्षा का छात्र था और गवर्नमेंट ब्वॉयज सीनियर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ता था। एक लड़की से बात करते देखकर उसे ओबीसी समुदाय के लड़कों ने बुरी तरह पीटा था। वह जिस लड़की से बात कर रहा था, वह उसके साथ पिछले स्कूल में दसवीं कक्षा तक उसके साथ पढ़ी थी। उस दिन स्कूल से लौटने के बाद वो पिटाई और अपमान का दर्द बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था।  

दलितों पर अत्याचार का विरोध करते लोग

इसी तरह 26 जुलाई, 2023 को उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में एक निजी इंटरमीडिएट स्कूल में 9वीं कक्षा में पढ़ने वाले दलित छात्र अनिकेत पासवान ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी। पिता राजेश पासवान ने कॉलेज के प्रधानाध्यापक और क्लास टीचर के ख़िलाफ़ आत्महत्या के लिए उकसाने का केस दर्ज़ करवाया। बताया गया कि छात्र के देर से स्कूल पहुंचने पर उसे धक्के मारकर एक सप्ताह के लिए स्कूल से निकाल दिया गया था। करीब 15 वर्षीय छात्र जिले के बृजमनगंज ब्लॉक के सोना बंदी गांव का निवासी था। वह अपने बड़े भाई शिवम (11वीं कक्षा) के साथ बिस्मिलनगर में किराए का कमरा लेकर पढ़ाई करता था।   

उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के कालपी तहसील क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय में 18 मार्च को तीसरी कक्षा में में पढ़ने वाले 9 साल के एक दलित बच्चे ने शिक्षिका की बाल्टी से पानी पी लिया तो शिक्षिका ने उसे कमरे में बंद करके पीटा। पिटाई से बच्चा बदहवास हो गया। मामले में शिक्षिका के ख़िलाफ़ जिलाधिकारी से शिक़ायत की गई। 

बीते 8 सितंबर को राजस्थान के भरतपुर जिले के बयाना थाना इलाके में स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में कक्षा 7 में पढ़ने वाले दलित छात्र को शिक्षक ने लात घूसों और डंडे से पीटा। दरअसल छात्र ने प्रार्थना सभा के बाद क्लास में झाड़ू लगाया तो उसे प्यास लग गई। स्कूल की टंकी में पानी नहीं था तो उसने शिक्षकों के लिए रखे कैंपर (प्लास्टिक के आधुनिक घड़ानुमा पात्र) से पानी पी लिया था। शिक्षक से मार खाने के बाद बच्चे ने घर जाकर परिजनों से बताया तो दलित समाज के लोग आक्रोशित होकर स्कूल पहुंचे और उन्होंने आरोपी शिक्षक गंगाराम गुर्जर को पकड़कर पीटना शुरू कर दिया। पुलिस ने जैसे-तैसे उनको छुड़ाया और इस मामले में उसके खिलाफ केस दर्ज़ किया। 

अकादमिक संस्थानों में जातीय उत्पीड़न 

इसी साल 12 फरवरी को आईआईटी, बंबई में एक 18 वर्षीय दलित छात्र दर्शन सोलंकी ने खुदकुशी कर ली। दर्शन ने मरने से पहले अपनी बहन और चाची को फोन करके बताया था कि उसे कैम्पस में जातीय उत्पीड़न का सामना करना पड़ा रहा है। जब से उसके दोस्तों को पता चला है कि वो अनुसूचित जाति का है उनका नज़रिया उसके प्रति बदल गया है। उन्होंने उससे बात करना और साथ घूमना-फिरना बंद कर दिया है। 

ऐसे ही 8 जुलाई, 2023 की शाम आईआईटी, दिल्ली के उदयगिरि छात्रावास में अपने कमरे में एक दलित छात्र आयुश आशना का शव मिला। वह बरेली का रहने वाला था और कंप्यूटर साइंस में बीटेक (अंतिम वर्ष) का छात्र था। उसकी उम्र 20 साल थी। 

फ़ीस वृद्धि और दलित छात्रावास तोड़ने के ख़िलाफ़ आंदोलन करने और इलाहाबाद विश्वविद्यालय की समस्याओं को लेकर फेसबुक पर पोस्ट लिखने के बाद दलित शोधछात्र मनीश कुमार, भानु कुमार और अनुराग यादव को इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय से निलंबित कर दिया गया। फ़ीस वृद्धि के खिलाफ आंदोलन में हिस्सा लेने के चलते छात्र हरेंद्र कुमार यादव को परीक्षा में नहीं बैठने दिया गया। फ़ीस वृद्धि आंदोलन में अजय यादव, जीतेंद्र धनराज, सत्यम कुशवाहा को जेल भेज दिया गया। करीब 8 महीने बाद उनकी जमानत हुई। वहीं 24 घंटे लाइब्रेरी खोलने की मांग, पीने के साफ पानी की व्यवस्था की मांग लेकर आंदोलन करने पर 17 अक्टूबर को दलित छात्र विवेक कुमार को इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के चीफ़ प्रॉक्टर राकेश सिंह द्वारा बर्बरतापूर्वक पीटा गया।

महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र के दलित पीएचडी स्कॉलर रजनीश कुमार अंबेडकर को पीएचडी शोध प्रबंध का मूल्यांकन कर पीएचडी अवार्ड कराने के लिए 27 मार्च, 2023 में विश्वविद्यालय परिसर में सत्याग्रह पर बैठना पड़ा। जहां 31 मार्च, 2023 की रात को एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने रजनीश और उनका समर्थन कर रहे छात्रों पर हमला कर दिया। जिसमें दो छात्र गंभीर रूप से जख्मी हो गए। गौर तलब है कि रजनीश को पीएचडी अवार्ड कराने में लंबा संघर्ष करना पड़ा। उन्हें अक्टूबर, 2023 में पीएचडी अवार्ड किया गया।

प्रोफ़ेसर भी बने जातीय उत्पीड़न के शिकार

यह साल दिल्ली विश्वविद्यालय में डॉ. रितू सिंह के आंदोलन का गवाह बना। वे करीब एक महीने से विश्वविद्यालय परिसर में धरनारत हैं। उनका आरोप है कि एडहॉक शिक्षक के रूप में उनका चयन 2019 में दौलतराम कॉलेज में हुआ था और अगस्त, 2020 में उन्हें नौकरी से केवल उनकी जाति के कारण निकाल दिया गया। इसके लिए उन्होंने कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. सविता राय के खिलाफ जातिगत भेदभाव के संबंध में मामला दर्ज कराया था। इसके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज में करीब 14 साल से एडहॉक शिक्षक के रूप में पढ़ा रहे डॉ. लक्ष्मण यादव को भी नौकरी से निकाल दिया गया। उनका आरोप है कि उन्हें केंद्र सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करने के कारण निकाला गया है। 

दिल्ली विश्वविद्यालय परिसर में धरना देतीं डॉ. रितू सिंह व उनके साथ देते लोग

वहीं उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में एक दलित महिला असिस्टेंट प्रोफ़ेसर ने दो छात्रों और दो प्रोफ़ेसरों के ख़िलाफ़ केस दर्ज़ करवाया। आरोप के मुताबिक 22 मई की दोपहर दो बजे के क़रीब आरोपितों ने पीड़िता के चैंबर में जाकर नौकरी से निकलवाने और जान से मारने की धमकी दी। तभी दूसरे आरोपी ने कथित तौर पर कमरे का दरवाजा बंद कर लिया। इसी दौरान उनके साथ यौन उत्पीड़न, बदसलूकी औऱ मारपीट की और एक शख्स ने घटना का वीडियो भी बनाया। बाद में उनके चीखने-चिल्लाने की आवाज़ सुनकर कुछ लोग वहां पहुंचे और दलित महिला प्रोफ़ेसर को बचाया। पीड़िता ने बयान दिया कि आरोपी प्रोफ़ेसर उन्हें निर्वस्त्र करके कॉलेज का चक्कर लगवाने की बात भी करते थे। पुलिस द्वारा केस दर्ज़ करने से मना कर दिया गया। बाद में मानव संसाधन विकास मंत्रालय, एससी/एसटी आयोग और मुख्यमंत्री को पत्र लिखने के बाद 27 अगस्त को उनकी शिक़ायत लिखी गई। 

इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास विभाग के सहायक प्रोफ़ेसर डॉ. विक्रम हरिजन द्वारा सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डालने को लेकर 22 अक्टूबर को उनके ख़िलाफ़ विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और हिंदू जागरण मंच द्वारा एफआईआर दर्ज़ करवाया गया। फ़ीस वृद्धि और दलित छात्रावास तोड़ने के ख़िलाफ़ छात्र आंदोलन में छात्रों का साथ देने के मामले में भी यूनिवर्सिटी प्रशासन के निशाने पर रहे।

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

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