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वार्षिकी : आंशिक ही सही, गलियारे में नजर आया दलित-बहुजन साहित्य

इस साल की विशेष घटना रही आदिवासी साहित्यकार जसिंता केरकेट्टा द्वारा ‘इंडिया टुडे’ समूह के पुरस्कार को ठुकरा दिया जाना। जसिंता केरकेट्टा का कविता संग्रह ‘ईश्वर और बाज़ार’ वर्ष 2022 में प्रकाशित हुई थी। साथ ही पढ़ें, इस साल की अन्य साहित्यिक गतिविधियों के बारे में

साल 2023 दलित, आदिवासी, बहुजन साहित्यकारों के लिए उपलब्धि भरा साल रहा। साल के अंत में साहित्य अकादमी द्वारा प्रसिद्ध कथाकार संजीव को उनके उपन्यास ‘मुझे पहचानो’ के लिए सम्मान दिए जाने की घोषणा की गई। यह सम्मान पहली बार किसी ओबीसी साहित्यकार को दिया गया। अभी तक किसी दलित साहित्यकार को यह सम्मान नहीं दिया गया है। 

हालांकि वर्ष के आरंभ में ही साहित्यकार महादेव टोप्पो को साहित्य अकादमी परिषद का सदस्य चुना गया। उनसे पहले सुलक्षणा टोप्पो साहित्य अकादमी में बतौर सदस्य आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रही थीं।

साहित्यिक आयोजन

आंबेडकरवादी लेखक संघ के तृतीय दलित साहित्य महोत्सव का आयोजन 3-4 फरवरी को दिल्ली के आर्यभट्ट कॉलेज (दक्षिणी परिसर) में किया गया। महोत्सव की थीम ‘साहित्य से एक नई दुनिया संभव है’ रखी गई, जिसका उद्देश्य साहित्य की महत्ता को और मुखर तरीके से समाज को बताना था। कार्यक्रम का उद्घाटन प्रसिद्ध ध्रुपद गायिका सुरेखा कांबले के कार्यक्रम के साथ हुआ। आंबेडकरवादी लोकगायक देशराज सिंह ने भी कार्यक्रम पेश किया। राहुल कुमार रजक ने कथक नृत्य पेश किया। कार्यक्रम में मलखान सिंह पुस्तक मेले का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में डॉ अनीता और बलराज सिंहमार की किताब ‘सिनेमा का आलोचनात्मक संवाद’ का विमोचन किया गया। कार्यक्रम में दलित, आदिवासी, घुमंतू, स्त्री और अल्पसंख्यक वर्ग पर विचार-विमर्श के सत्र आयोजित किए गए। 

वहीं उड़ीसा भुवनेश्वर के भान्जा कला मंडप में आंबेडकरवादी साहित्य संस्कृति-कला उत्सव का आयोजन 6-7 अप्रैल, 2023 को किया गया। इस कार्यक्रम में मराठी साहित्यकार शरण कुमार लिंबाले मुख्य अतिथि और बांग्ला साहित्यकार मनोरंजन ब्यापारी सम्मानित अतिथि के तौर पर शामिल हुए। कार्यक्रम में विशेष अतिथि के तौर पर पद्मश्री जीतेंद्र हरिपाल, पद्मश्री दमयंती बेसरा, अनीता भारती, असंगघोष, संतोष पटेल, प्रभाकर पलाका, रमेश प्रजापति अरुण कुमार ने हिस्सा लिया।   

इसी साल साहित्य अकादमी ने 20-21 फरवरी को दो दिवसीय अखिल भारतीय दलित लेखक सम्मेलन करवाया, जिसमें विभिन्न भाषाओं के 30 दलित साहित्यकारों ने भागीदारी की। शरण कुमार लिंबाले, बलबीर माधोपुरी, पी. शिवकामी और जयंत परमार, सिखामनी ने विभिन्न सत्रों की अध्यक्षता की और लीलाधर मंडलोई, पितांबर तराई, कौशल पंवार, चंद्र मोहन किस्कू, धीरज बसुमतारी, एच.टी. पोटे, सत्यजीत आर, कर्मशील भारती, बी.एल. पारस, दीप नारायण विद्यार्थी, राकेश वानखेड़े, शिवबोधि, कल्याणी ठाकुर ‘चाड़ाल’, अशोक अंबर, बीनू बामनिया, रजत रानी मीनू, लीलेश कुड़ालकर और मदन बीरा आदि ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। सम्मेलन का अध्यक्षीय वक्तव्य तेलुगु लेखक के. इनोक और बीज वक्तव्य हिंदी आलोचक बजरंग बिहारी तिवारी ने दिया। 

आदिवासी साहित्य और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए झारखंड सरकार द्वारा बिरसा मुंडा एग्रो पार्क, गुमला में 8-9 दिसंबर को दो-दिवसीय पुस्तक मेले का आयोजन किया गया। साथ ही कई सत्रों में विभिन्न विषयों पर बातचीत का आयोजन किया गया। 

जंसिता केरकेट्टा व अनीता भारती

साहित्यिक पुरस्कार

इस साल की विशेष घटना रही आदिवासी साहित्यकार जसिंता केरकेट्टा द्वारा ‘इंडिया टुडे’ समूह के पुरस्कार को ठुकरा दिया जाना। जसिंता केरकेट्टा का कविता संग्रह ‘ईश्वर और बाज़ार’ वर्ष 2022 में प्रकाशित हुई थी। यह संग्रह आदिवासियों के धर्म सत्ता और ज़मीन बचाने के संघर्ष पर केंद्रित है। इसी संग्रह के लिए ‘इंडिया टुडे’ समूह ने उन्हें ‘आज तक साहित्य जागृति उदयमान प्रतिभा’ सम्मान के लिए चुना था। इस पुरस्कार के तहत 50 हजार रुपए की धनराशि दी जाती है। जसिंता केरकेट्टा ने यह फैसला उस समय लिया था जब लोगों ने ‘रजनीगंधा आज तक साहित्य महोत्सव’ में जन संस्कृति मंच से जुड़े साहित्यकारों की भागीदारी पर सवाल उठाया और जिसके बचाव में लचर से लचर तर्क दिये गये। पुरस्कार ठुकराते हुए जसिंता ने कथित जनवादी साहित्यकारों को आईना दिखाते हुए कहा– “यह पुरस्कार ऐसे समय में दिया जा रहा है जब मणिपुर के आदिवासियों के जीवन के प्रति सम्मान खत्म होता जा रहा है, और वैश्विक समाज में अन्य समाज के लोगों पर भी लगातार हमले हो रहे हैं। मेरा मन व्यथित रहता है, और मुझे इस पुरस्कार के मिलने से कोई खुशी या रोमांच महसूस नहीं हो रहा है।” 

दलित साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए साहित्यकार जयप्रकाश कर्दम को दलित लेखक संघ ने 27 अगस्त को तृतीय ‘दलेस कीर्ति सम्मान’ से सम्मानित किया। 5 जुलाई, 1958 को उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद के इंदरगढ़ी में जन्में कर्दम ने अब तक 50 से अधिक किताबों की रचना की है। 

अनीता भारती के कहानी संग्रह ‘एक थी कोटे वाली तथा अन्य कहानियां’ को पेन इंग्लिश अवार्ड से सम्मानित किया गया। यह किताब साल 2012 में लोकमित्र प्रकाशन से प्रकाशित हुई थी। फिर साल 2023 में यह किताब स्वराज प्रकाशन से प्रकाशित हुई।  

संगीत नाटक अकदामी का अमृत अवॉर्ड महावीर नायक को ट्राइबल फोक म्यूजिक के लिए दिया गया। वहीं निरंजन कुमार कुजूर को एड फिल्मों के सबसे बड़े पुरस्कार ‘द एबीज’ अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। 

किताबों का प्रकाशन और लोकार्पण 

वरिष्ठ साहित्यकार असंगघोष का कविता संग्रह ‘कौन जाता है वहां’ वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुई। यह उनका दसवां कविता संग्रह है। पिछले साल उनके नौवें संग्रह ‘हत्यारे फिर आएंगे’ का प्रकाशन हुआ था। असंगघोष दलित साहित्य के चर्चित व महत्वपूर्ण कवि हैं। इनकी कविताएं सदियों से वर्चस्ववादी संवेदनहीन जातियों के द्वारा शोषित होते आ रहे दलित समुदाय की पीड़ा से उपजी प्रतिरोध की कविताएं है। 

वरिष्ठ साहित्यकार जयप्रकाश कर्दम के लिए यह साल पुस्तकों के प्रकाशन के लिहाज से बहुत फलदायी रहा। इस साल उनका कविता संग्रह ‘बेवजह नहीं कुछ भी’ कलमकार प्रकाशन से और ‘लाशों के शहर में’ तथा ‘ज़िंदा रहने की ज़िद’ स्वराज प्रकाशन से प्रकाशित हुई। इसके अलावा आलोचना पुस्तक ‘लोक साहित्य में दलित संस्कृति’ कलमकार प्रकाशन से और ‘विचारों के क्षितिज’ शीर्षक से सूक्ति एवं विचार की किताब स्वराज प्रकाशन से और ‘दिवंगत दलित साहित्यकार नाम’ शीर्षक से एक किताब के.एल. पचौरी प्रकाशन से प्रकाशित हुई। 

साहित्यकार रजत रानी मीनू के संपादन में दलित स्त्री केंद्रित कहानियां वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुईं। इस संग्रह में दलित महिला कहानीकारों की कहानियों को संग्रहित किया गया है।

युवा कवि विहाग वैभव का पहला कविता संग्रह ‘मोर्चे पर विदागीत’ का 24 सितंबर को पटना में लोकार्पण किया गया। यह किताब राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है। अनुज लगुन का कविता संग्रह ‘अघोषित उलगुलान’ भी राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ और इसका लोकार्पण भी पटना में राजकमल किताब उत्सव में किया गया।  

कांशीराम पर लेखक पम्मी लालोमज़ारा की पंजाबी किताब का हिंदी अनुवाद ‘मैं कांशी राम बोल रहा हूं’ शीर्षक से प्रकाशित हुई है। इस किताब को द शेयर्ड मिरर प्रकाशन ने छापा है। इसके अनुवादक गुरिंदर आजाद हैं। 

कवयित्री माया गोला का कविता संग्रह ‘उपाधियां लौटाती हूं’ न्यू वर्ल्ड प्रकाशन से प्रकाशित हुई। चर्चित कवि श्याम निर्मोही का कविता संग्रह ‘रेत पर कस्तियां’ कलमकार प्रकाशन से प्रकाशित हुई। इसी प्रकाशन ने लक्ष्मी नारायण सुधाकर का कविता संग्रह ‘संविधान से देश चलेगा’ प्रकाशित किया। ‘कौन जात हो भाई’ फेम युवा कवि बच्चा लाल ‘उन्मेष’ का तीसरा कविता संग्रह ‘बहार के पतझड़’ इस साल प्रकाशित हुआ। 

बांग्ला लेखक मनोरंजन ब्यापारी का आत्मकथात्मक उपन्यास तीन खंडों मेें अनूदित हुआ है। इनमें से दो का प्रकाशन  ‘भागा हुआ लड़का’ और ‘सही पते की खोज में’ शीर्षक से हुआ।  तीनों किताबों का अनुवाद अमृता बेरा ने किया है। इनके अलावा उनका कविता संग्रह हिंंदी में ‘गमछा मैं नहीं उतारूंगा’ शीर्षक से छपा है, जिसका अनुवाद डॉ. कार्तिक चौधरी ने किया है। 

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

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