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उत्तर प्रदेश : बांसगांव में मायावती ने फिर दिया श्रवण निराला को ऐन मौके पर धोखा

निराला बताते हैं कि इस चुनाव में बांसगांव से टिकट देने के लिए मायावती ने उन्हें आश्वस्त किया था। लेकिन मायावती ने एक 76 वर्ष के रिटायर्ड आईआरएस अधिकारी, जो अभी तक भाजपा में थे, को टिकट दे दिया। बता रहे हैं स्वदेश कुमार सिन्हा

क्या मायावती उत्तर प्रदेश में भाजपा को विजयी बनाने के लिए चुनाव लड़ रही हैं? यदि ऐसा नहीं है तो उन्होंने गोरखपुर के बांसगांव लोकसभा क्षेत्र में श्रवण कुमार निराला काे चुनाव के ठीक पहले बेटिकट क्यों कर दिया? ऐसे कई सवाल बांसगांव की आम जनता के बीच में है। हालांकि निराला ने हार नहीं मानी है और अपने संगठन आंबेडकर जन मोर्चा के बैनर तले निर्दलीय ताल ठोंकने का निर्णय लिया है।

इससे पहले कि आपको बांसगांव में चल रही अजीबोगरीब राजनीति के बारे में बताऊं, पहले यहां के बारे में जान लें कि गोरखपुर के दक्षिणांचल में स्थित बांसगांव कई नदियों के कछार पर बसा होने के कारण लगातार बाढ़ की विभीषिका झेलता है। यहां की ज़मीन उबड़-खाबड़ है। जनसंख्या का घनत्व अधिक होने के बावज़ूद फसल अच्छी नहीं हो पाती। लेकिन अपराध की फसल यहां पर खूब लहलहाती है। मसलन, हरिशंकर तिवारी और श्रीप्रकाश शुक्ला यहीं की पैदावार हैं। हरिशंकर तिवारी तो बाद में अपराध से राजनीति में गए और काफ़ी शीर्ष पर पहुंचे। पूर्वांचल में होने वाले अधिकांश अपराधों में यहीं के शूटरों का नाम सामने आता है।

इस क्षेत्र में पलायन बड़ी समस्या है। दलित-बहुजन देश के अन्य शहरों में कमाने-धमाने जाते हैं तो यहां का ब्राह्मण वर्ग बड़ी संख्या में रोज़गार के लिए थाईलैंड (बैंकाक) जाते हैं और वे छोटा-मोटा सभी तरह के वैसे काम वहां करते हैं, जो वे अपने इलाक़े में उच्च जाति का होने के घमंड के कारण नहीं करते। 

इस इलाक़े के पिछड़ेपन के कारण लंबे समय से इसे जिला बनाने की मांग की जाती रही है। लोकसभा क्षेत्र के रूप में बांसगांव सीट 1962 में अस्तित्व में आया था। यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इस सीट पर श्रीनेत राजपूतों (खुद को सर्वश्रेष्ठ माननेवाले राजपूत) का दबदबा है, लेकिन दलितों के बड़े नेताओं में शुमार महावीर प्रसाद यहीं से 4 बार चुनाव जीते। महावीर प्रसाद का नाम प्रदेश के बड़े नेताओं में शामिल किया जाता है।

इस लोकसभा सीट के अंतर्गत 5 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें दो सीटें देवरिया जिले से ली गई हैं और तीन सीटें गोरखपुर जिले से। देवरिया जिले के अंतर्गत आने वाली सीटें रूद्रपुर और बरहज है जबकि चौरी-चौरा, बांसगांव और चिल्लूपार सीटें गोरखपुर में आती हैं।

बांसगांव सीट पर जातीय समीकरणों की बात करें, तो इस सीट पर सबसे ज़्यादा मतदाता अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के बताए जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक़ इनकी संख्या करीब 8.34 लाख है, जबकि 2.5 लाख मतदाता अनुसूचित जाति के हैं। वहीं सवर्ण मतदाताओं की संख्या भी करीब 5 लाख है और डेढ़ लाख मुस्लिम मतदाता हैं। अनुसूचित जाति में पासवान जाति के लोग काफ़ी मज़बूत है।

अब बात अगर 2024 के लोकसभा चुनावों की करें, तो भाजपा ने एक बार फ़िर कमलेश पासवान पर भरोसा जताया है। कमलेश पासवान पिछले डेढ़ दशक से इस सीट पर क़ाबिज़ हैं। वहीं इंडिया गठबंधन ने सदल प्रसाद को मैदान में उतारा है। सदल प्रसाद बीते डेढ़ दशक से इस सीट पर बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े हैं, लेकिन हमेशा ही उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा है। 

श्रवण कुमार निराला व बसपा प्रमुख मायावती

इस बार चुनाव में प्रारंभ में ऐसा लग रहा था कि बसपा भाजपा को एक बड़ी चुनौती दे सकती है। इसका कारण यह रहा कि उसने यहां से अपना उम्मीदवार श्रवण कुमार निराला को बनाया था। स्थानीय मीडिया में वे बहुत ज़्यादा चर्चित भी रहे हैं। पिछले दिनों राज्य भर के सभी भूमिहीनों को एक-एक एकड़ जमीन दिलाने की मांग को लेकर इन्होंने बड़ा आंदोलन किया था। इस आंदोलन के कारण श्रवण कुमार निराला को दो बार जेल जाना पड़ा। 

बताते चलें कि श्रवण कुमार निराला छात्र राजनीति से बसपा में आए। इस प्रकार छात्र जीवन से ही निराला आंबेडकरवादी राजनीति करते रहे हैं। विश्वविद्यालय में दलित सहित सभी आरक्षित वर्गों के छात्रों का जीरो फीस पर एडमिशन कराने का आंदोलन श्रवण कुमार निराला ने किया और उसमें उन्हें बड़ी सफलता मिली। यह निराला के प्रयासों का ही फल था कि वर्षों तक परंपरागत पाठ्यक्रमों के साथ-साथ बीटेक, बीएड, एमएड जैसे लाखों की फीस वाले प्रोफेशनल कोर्सों में जीरो फीस पर एडमिशन हुआ, लेकिन योगी आदित्यनाथ की सरकार ने यह सुविधा समाप्त कर दी है। गोरखपुर विश्वविद्यालय में एडहाक प्रोफेसर की रिक्तियों में तथा पीएचडी हेतु प्रवेश में आरक्षण लागू करवाने में श्रवण कुमार निराला के आंदोलन को सभी याद करते हैं। 

बसपा में भी निराला ने गोरखपुर मंडल प्रभारी जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। विधानसभा चुनाव 2017 में बसपा की करारी हार के बाद मायावती ने इन्हें विधानसभा बांसगांव से 2022 की विधानसभा चुनाव के लिए 2017 में ही प्रत्याशी घोषित कर दिया था, लेकिन 2019 में लोकसभा चुनाव के बाद इनका टिकट छीन लिया। उस समय निराला ने बसपा छोड़ दिया तथा जैसा कि उपर वर्णित है कि सभी भूमिहीनों को एक एकड़ ज़मीन दिलाने का आंदोलन प्रारंभ किया, जिसके कारण इन्हें दो-दो बार जेल जाना पड़ा। 

निराला बताते हैं कि इस चुनाव में बांसगांव से टिकट देने के लिए मायावती ने उन्हें आश्वस्त किया था। लेकिन मायावती ने एक 76 वर्ष के रिटायर्ड आईआरएस अधिकारी, जो अभी तक भाजपा में थे, को टिकट दे दिया। 

गोरखपुर में चौरी-चौरा के निकट एक गांव में एक दलित परिवार में श्रवण कुमार निराला का जन्म हुआ था, उनके पिता एक छोटे किसान थे। उन्होंने बतलाया कि “प्रारंभ में कुछ मुद्दों पर बसपा के साथ उनके मतभेद थे, लेकिन इस बार बहन जी (मायावती) ने उन्हें ख़ुद बुलाकर बांसगांव संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने की बात की थी।” 

क्या मायावती भाजपा की ‘बी’ टीम के जैसे राजनीति कर रही हैं, यह पूछने पर निराला इंकार करते हुए कहते हैं कि “बसपा ही एकमात्र ऐसी पार्टी है, जो भाजपा, सपा और कांग्रेस के मनुवाद से लड़ सकती है।” 

इसके बावजूद मायावती द्वारा बेटिकट किए जाने के बाद भी वे निराश नहीं हैं। उन्होंने कहा कि “वे निराश नहीं हैं तथा माननीय कांशीराम जी के सपनों को पूरा करने के लिए वे अंबेडकर युवा मोर्चा के तहत इस क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे और 11 मई को अपना पर्चा दाखिल करेंगे।” उन्होंने कहा कि “यह इलाक़ा बहुत पिछड़ा है। आज़ादी के इतने वर्ष बीत जाने के बावज़ूद इस इलाक़े में ट्रेन तक नहीं आई। यहां से जीतने वाले सभी प्रत्याशी बाहर ही रहे हैं तथा चुनाव जीतने के बाद इस क्षेत्र में नहीं आते, लेकिन वे चुनाव जीतने के बाद अपने क्षेत्र में रहेंगे और जनसमस्याओं के लिए लगातार संघर्ष करते रहेंगे।” 

(संपादन : नवल/अनिल)

लेखक के बारे में

स्वदेश कुमार सिन्हा

लेखक स्वदेश कुमार सिन्हा (जन्म : 1 जून 1964) ऑथर्स प्राइड पब्लिशर, नई दिल्ली के हिन्दी संपादक हैं। साथ वे सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक विषयों के स्वतंत्र लेखक व अनुवादक भी हैं

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