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समाज और संस्कृति

इतिहास के आईने में ‘जाति’
फाहियान ने वर्णन किया है कि गुप्तकाल में एक अस्पृश्य वर्ग था। स्मृतियों में शूद्रों और अस्पृश्यों में अंतर माना गया। गुप्तोत्तर काल में छुआछूत की भावना बढ़ी। चतुर्वर्णी व्यवस्था को ईश्वरीय बनाने के पीछे...
क्रिसमस : सभी प्रकार के दमन के प्रतिकार का उत्सव
यह प्रतीत होता है कि ‘ओ होली नाईट’ राजनैतिक प्रतिरोध का गीत था। ज़रा कल्पना करें कि गृहयुद्ध के पहले के कुछ सालों में श्वेत अमरीकी गा रहे हैं– “वह जंजीरों को तोड़ देगा, क्योंकि...
छेल्लो शो : परदे पर ईडब्ल्यूएस
यह फिल्म, जिसे 95वें ऑस्कर पुरस्कारों के लिए बेस्ट इंटरनेशनल फीचर श्रेणी में भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना गया है, में ‘निर्धन ब्राह्मण’ सतत उपस्थित है। बता रहे हैं नीरज बुनकर
सहजीवन : बदलते समाज के अंतर्द्वंद्व के निहितार्थ
विवाह संस्था जाति-धर्म की शुद्धता को बनाये रखने का एक तरीका मात्र है, इसलिए समाज उसका हामी है और इसलिए वह ऐसे जोड़ों की मदद को तत्पर भी रहता है। समाज और रिश्तेदार रिश्ते को...
यात्रा संस्मरण : वैशाली में भारत के महान अतीत की उपेक्षा
मैं सबसे पहले कोल्हुआ गांव गयी, जहां दुनिया के सबसे प्राचीन गणतंत्र में से एक राजा विशाल की...
शैक्षणिक बैरभाव मिटाने में कारगर हो सकते हैं के. बालगोपाल के विचार
अपने लेखन में बालगोपाल ने ‘यूनिवर्सल’ (सार्वभौमिक या सार्वत्रिक) की परिकल्पना की जो पुनर्विवेचना की है, उसे हम...
भारत में वैज्ञानिक परंपराओं के विकास में बाधक रहा है ब्राह्मणवाद
कई उद्धरणों से ब्राह्मणवादी ग्रंथ भरे पड़े हैं, जिनसे भलीभांति ज्ञात होता है कि भारतीय खगोल-विद्या व विज्ञान...
ओबीसी महिला अध्येता शांतिश्री धूलीपुड़ी पंडित, जिनकी नजर हिंदू देवताओं की जाति पर पड़ी
जब उत्पादक समुदायों जैसे शूद्र, दलित और आदिवासी समाजों से गंभीर बुद्धिजीवी उभरते हैं तब जाति व्यवस्था में...
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