दुसाध जाति के नायक रहे चौहरमल के जन्मदिन पर बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने घोषित किया कि उनकी पार्टी दलित और महादलित में भेद नहीं करती है। चौहरमल के जन्मदिन पर एक कार्यक्रम का आयोजन भारतीय जनता पार्टी ने किया था। इस आयोजन और मोदी के बयान दोनों के ही कई निहितार्थ हैं। दरअसल, भाजपा अब धीरे-धीरे बिहार में छोटे भाई की अपनी हैसियत से निकलना चाहती है। इस उद्देश्य से भाजपा सुशील कुमार मोदी को अति पिछड़ा नेता के रूप में स्थापित कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सोशल इंजीनियरिंग में सेंध लगा रही है। नीतीश कुमार ने अपनी जाति के अतिरिक्त अति पिछड़ों और दलितों में अपना जनाधार बनाया था। दलितों में अपना जनाधार बनाने के लिए नीतीश ने पहले दलित अस्मिता का बंटवारा किया और रामविलास पासवान की जाति पासवान या दुसाध को छोड़कर बाकी सारी दलित जातियों को महादलित के रूप में अधिसूचित कर उनके लिए विशेष योजनाओं की घोषणा की।
अब नीतीश के बेहद करीबी माने जाने वाले उपमुख्यमंत्री कह रहे हैं कि भाजपा दलित-महादलित का भेद नहीं करती। ऐसा कहते हुए वे राज्य और केंद्र प्रवर्तित उन योजनाओं की चर्चा करते हैं जो अनुसूचित जातियों के लिए लागू की गई हैं। राज्य की जनसंख्या में 16 प्रतिशत अनुसूचित जातियां हैं और उनके लिए बजट में 16 फीसदी का प्रावधान किया गया है। लेकिन मोदी आधा सच कह रहे हैं। दलित एकता को स्थाई नुकसान पहुंचाने की योजना से पासवानों को अलग रखकर महादलितों के लिए कुछ खास प्रावधान किए गए हैं, जैसे उनके लिए 3 डिसमिल लगभग 1300 वर्ग फीट जमीन की व्यवस्था हर महादलित परिवार को ट्रांजिस्टर आदि। प्रदेश मुखिया संघर्ष के अध्यक्ष प्रियदर्शिनी शाही बताते हैं कि हाल ही में राज्य सरकार ने आदेश दिया है कि इंदिरा आवास के लिए निर्धारित राशि में महादलित परिवारों के घर यदि पूरी तरह नहीं बन पाएंगे तो उनके लिए अलग से 15 हजार रुपये की व्यवस्था की जाएगी। इस लाभ से भी बिहार की पासवान जाति के लोग वंचित रहेंगे।
भागलपुर विश्वविद्यालय के गांधीवादी विचार विभाग के शिक्षक डा. विजय कुमार पासवानों को अलग-थलग किए जाने को दलित अस्मिता पर एक बड़ी चोट करार देते हुए कहते हैं कि यह जाति ब्राह्मणवाद से सीधे टकराने वाली जाति थी। इतिहासकार हेतुकर झा ने तो इन्हें बौद्ध घोषित करते हुए लिखा है कि ब्राह्मणों ने इन्हें दुह्साध्य कहा था। ये बज्रयानी बौद्ध थे, जिन्हें जीतना ब्राह्मणों के लिए कठिन था। हेतुकर झा ने मिथिला पेंटिंग का जनक भी इसी जाति को माना है। हालांकि बाद के दिनों में हिन्दू व्यवस्था ने इन्हें अपने में समेट लिया।
इस ब्राह्मणवाद विरोधी जाति की अस्मिता के प्रतीक रहे हैं चौहरमल। वे एक ऐतिहासिक नायक हैं जिनका जन्म मोकामा के निकट अंजनी गांव में हुआ था। पास के गांव की एक उच्च जाति,भूमिहार परिवार में जन्मी थी रेशमा। इन दोनों के महान प्रेम की गाथाएं आज भी दुसाध परिवारों में सुनायी जाती हैं। इन कथाओं के अनुसार इस प्रेमी जोड़े ने विवाह भी किया था, जिस कारण इन्हें भूमिहारों का कोपभाजन बनना पड़ा था। मोकामा में इस महान प्रेमी से ऊंची जातियां नफरत करती हैं, लेकिन शहर से ठीक बाहर चाैहरमल स्थान आज भी मौजूद है, जहां इनकी पूजा की जाती है तथा हर वर्ष वहां एक विशाल मेला लगता है। विजय कुमार कहते हैं-चौहरमल के प्रतीक को अपनी पार्टी के कार्यक्रमों में शामिल कर भाजपा एक तरफ तो रामविलास पासवान की राजनीति में सेंध लगाना चाहती है और दूसरी ओर नीतीश कुमार की राजनीति में, जबकि अगड़ी जातियों के वोट बैंक को लेकर वह पूरी तरह निश्चिंत है।
(फारवर्ड प्रेस के जून 2013 अंक में प्रकाशित)