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योजना एससी, एसटी व ओबीसी के लिए और लाभ सवर्णों को

भाजपा कह रही है कि प्रधानमंत्री मुद्रा योजना का ज्यादा लाभ एससी, एसटी और ओबीसी को मिला है। लेकिन हकीकत यह है कि मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना का भी ज्यादातर लाभ सामान्य श्रेणी या सवर्ण जाति समूहों को ही हुआ है। एक रिपोर्ट

भाजपा की ओर से भले ही यह दावा किया जा रहा हो कि छोटे उद्यमियों व व्यापारियों के प्रोत्साहन के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) से लाभान्वित होने वाले 55 फीसदी लोग अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से आते हैं। लेकिन, हकीकत यह है कि इस योजना के तहत जारी किए गए 63 फीसदी लोन सवर्ण या सामान्य श्रेणी के व्यक्ति को दिए गए हैं। सरकारी आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद फैक्टचेकर संस्था ने इसका खुलासा किया है।

मुद्रा लोन योजना की शुरूआत करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व अन्य

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की शुरुआत वर्ष 2015-16 में की गई थी और तब से ही इसके अंतर्गत जारी होने वाले लोन का क्रम लगभग एक जैसा ही रहा है। हाल ही में भाजपा द्वारा किए गए एक ट्वीट संदेश में कहा गया था कि इस योजना के अंतर्गत 55 फीसदी एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के लोगों के खाते खोले गए हैं। एससी, एसटी और ओबीसी की जनसंख्या मिलकर पूरे देश का 78.4 फीसदी होती है। ऐसे में अगर 55 फीसदी खाते इस समूह के लोगों के खोले जाते हैं तो भी यह जनसंख्या में उनके अनुपात के हिसाब से कम ही है। लेकिन, इस पूरे मामले में कुछ और बिंदु ऐसे हैं जिन पर गौर किया जाना चाहिए। योजना के तहत दिए जाने वाले सबसे बड़े लोन यानी दस लाख तक के लोन बेहद असंगत तौर पर 88.7 फीसदी उन लोगों को दिए गए जो सामान्य वर्ग से आते है। जबकि, इस योजना के तहत जारी किए गए लोन की औसत राशि 45 हजार 203 है। जो कि किसी भी प्रकार का रोजगार पैदा करने के हिसाब से बहुत छोटी राशि है। विशेषज्ञों के मुताबिक ज्यादातर लोन शिशु श्रेणी में आवंटित किए गए हैं, जिनकी राशि इतनी छोटी होती है कि वे किसी भी व्यापारिक ईकाई का निर्माण करने में सक्षम नहीं है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अप्रैल 2015 में इस योजना की शुरुआत की गई थी। इसके पीछे छोटे, लघु और मध्यम उद्यमों को प्रोत्साहन का लक्ष्य रखा गया था। योजना के तहत कोई भी व्यक्ति सरकारी व निजी क्षेत्र के बैंकों से दस लाख तक के लोन के लिए आवेदन कर सकता है और इसके लिए उन्हें बैंक के पास कोई प्रमाणपत्र या संपत्ति गारंटी (कोलैटरल) के तौर पर नहीं रखनी पड़ती।

लोन का प्रकारवर्ष 2015-16कुल लोन का प्रतिशतवर्ष 2016-17कुल लोन का प्रतिशतवर्ष2017-18कुल लोन का प्रतिशत2015-18 संयुक्तकुल लोन का प्रतिशत
शिशु3,24,01,04692.903,64,97,81391.904,26,69,79588.7011,15,68,65490.90
किशोर लोन20,69,4615.9026,63,5026.7046,53,8749.7093,86,8377.60
तरुण लोन4,10,4171.205,39,7321.408,06,9241.9017,57.0741.40
कुल लोन3,48,80,9243,97,01,0474,81,30,59312,27,12,564
कुल वितरित लोन1,32,9541,75,3122,46,4375,54,703
औसत लोन आकार38,11744,15851,20245,203
स्रोत : भारत सरकार द्वारा मुद्रा डॉट ओआरजी पर जारी रिपोर्ट

आमतौर पर वित्तीय संस्थाएं छोटे, लघु व मध्यम उद्यमियों की बजाय बड़ी कंपनियों को लोन देना पसंद करती हैं जो कि उन्हें गारंटी उपलब्ध कराती हैं।  चूंकि, इनमें से कई छोटे उद्यम अपने कारोबार की शुरुआत कर रहे होते हैं और इसमें लोन की राशि डूबने का खतरा रहता है। मुद्रा योजना द्वारा बैंकों और छोटी वित्तीय संस्थाओं को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे अपने व्यवसाय को बढ़ाने में लगे छोटे, लघु व मध्यम श्रेणी के व्यवसायियों को लोन दें। ताकि वे मशीनों को खरीदकर, परिसरों को किराए पर लेकर या अन्य प्रकार से अपना उद्यम बढ़ा सकें।

भारत में बहुत सारे छोटे व लघु उद्यम ऐसे व्यक्तियों द्वारा चलाए जाते हैं जो उन समूहों से आते हैं जिन्हें हाशिए पर डाल दिया गया था। सामान्य वित्तीय संस्थाओं तक उनकी पहुंच नहीं होती। मजबूरी में उन्हें नगदी में कारोबार करना पड़ता है। कर्ज के लिए भी उन्हें साहूकारों आदि पर निर्भर रहना पड़ता है जो कि उनसे 60 से लेकर 100 फीसदी तक का ब्याज वसूलते हैं।

ऐतिहासिक तौर पर भारत में वंचित रहे समूहों को तीन उप श्रेणियों में विभाजित किया जाता है, अनुसूचित जाति यानी हिन्दू समुदाय में वे लोग जो जाति व्यवस्था में बेहद निचले स्तरों पर रखे गए थे। अनुसूचित जनजाति यानी वे लोग जो भौगोलिक तौर पर दुर्गम क्षेत्रों में रहते थे और उन्हें हाशिए पर छोड़ दिया गया था। जबकि, तीसरी श्रेणी अन्य पिछड़ा वर्ग की है जो जाति व्यवस्था में पहले की दोनों श्रेणियों से ऊपर लेकिन जाति सोपानक्रम में नीचे रखी जाती हैं। इन तीन श्रेणियों के अलावा बाकी जातियां या धार्मिक समूह सामान्य श्रेणी के अंतर्गत रखी जाती हैं।

जरुरतमंद उद्यमियों को नहीं मिल रहा योजना का लाभ

सरकार के मुद्रा ऑफिस से फैक्टचेकर संस्था को उपलब्ध कराए गए डाटा से भी यही पता चलता है कि मुद्रा लोन प्राप्त करने वालों में सामान्य वर्ग के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। बल्कि मुद्रा लोन की शुरुआत से ही सामान्य श्रेणी के लोगों को सबसे ज्यादा लोन प्राप्त होता रहा है और इसमें बढ़ोतरी भी हो रही है। वर्ष 2017-18 में कुल जारी राशि में से सामान्य वर्ग के लोगों को 63 प्रतिशत हिस्सा प्राप्त हुआ। जबकि, ओबीसी को 22, एससी को 11 व एसटी वर्ग से आने वाले व्यक्ति को केवल चार फीसदी लोन ही प्राप्त हुए। इससे पहले के सालों में थोड़ा बहुत अंतर तो है लेकिन कोई बड़ा बदलाव नहीं है। जबसे योजना शुरू हुई है ओबीसी, एससी व एसटी समूह के लोगों को बड़ी राशि वाला लोन दिए जाने की संख्या में जरा भी इजाफा नहीं हुआ है।

ज्यादातर लोन दो बड़ी श्रेणियों में वितरित किए गए हैं, पहला किशोर यानी 50 हजार से पांच लाख तक और तरुण यानी पांच लाख से दस लाख तक। इन दोनों ही श्रेणियों में सबसे ज्यादा लोन सामान्य श्रेणियों के व्यक्तियों को वितरित किए गए हैं। बल्कि इसमें इजाफा ही हो रहा है। वर्ष 2015-16 में किशोर श्रेणी के 73.7 फीसदी लोन सामान्य वर्ग के लोगों को दिए गए जबकि वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 76.8 फीसदी हो गया। इसी प्रकार तरुण श्रेणी के अंतर्गत दिए जाने वाले लोन जो कि 2015-16 में सामान्य वर्ग के व्यक्तियों को 83.6 फीसदी दिए गए थे यह 2017-18 में बढ़कर 88.7 फीसदी हो गया।

मुद्रा योजना को भारत में उद्यमिता के विकास और आर्थिक वृद्दि दर बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। हालांकि, योजना की शुरुआत के बाद से अब तक औसत लोन का आकार 45 हजार 203 रुपये ही है। इस योजना के तहत वितरित किए गए लोन का केवल 1.4 फीसदी हिस्सा ही पांच लाख से ज्यादा की राशि का है। वहीं, इस बात के भी संदेह जताए जा रहे हैं कि बिना गारंटी के दिए जाने वाले इस लोन के जरिए बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार किए जा रहे हैं। माना जाता है कि पंजाब नेशनल बैंक में हुए घोटाले के बाद इस तरह के कुछ मामले दर्ज भी किए गए हैं, जिनकी जांच हो रही है।

(कॉपी एडिटर : नवल)


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कबीर

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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