डॉ. आंबेडकर ने अपनी किताब ‘पाकिस्तान ऑर दी पार्टिशन आफ इण्डिया’ (1940) में चेताया था कि ‘‘अगर हिन्दू राज हकीकत बनता है, तब वह इस मुल्क के लिए सबसे बड़ा अभिशाप होगा। हिन्दू कुछ भी कहें, हिन्दू धर्म स्वतन्त्रता, समता और बन्धुता के लिए खतरा है। उस आधार पर वह लोकतन्त्र के साथ मेल नहीं खाता है। हिन्दू राज को किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए।[1]” आंबेडकर के लिए हिंदू राष्ट्र का सीधा अर्थ द्विज वर्चस्व की स्थापना था यानी ब्राह्णवाद की स्थापना था। वे हिंदू राष्ट्र को मुसलमानों पर हिंदुओं के वर्चस्व तक सीमित नहीं करते थे, जैसा कि भारत का प्रगतिशील वामपंथी या उदारवादी लोग करते हैं। उनके लिए हिंदू राष्ट्र का मतलब दलित, ओबीसी और महिलाओं पर द्विजों के वर्चस्व की स्थापना था।
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