हिंदू संस्कृति स्त्री के किस रूप को गौरवान्वित करती है, किस रूप को निकृष्ट ठहराती है, किन स्त्रियों को महान और आदर्श स्त्रियों के रूप में पेश करती है, किन्हें कुलटा और राक्षसी ठहराती है, स्त्रियों को आदर्श या कुलटा या राक्षसी ठहराने का आधार क्या है?
संघ की पाठशाला के पाठ्यक्रम का यह एक महत्वपूर्ण हिस्सा स्त्री संबंधी विचार हैं। संघ की आधारभूत सैद्धांतिक पु्स्तक इनके दूसरे सरसंघचालक गोलवलकर की ‘विचार नवनीत’ को माना जाता है। वैसे तो यह पुस्तक पूरी तरह ‘हिंदू पुरूष’ को संबोधित करके ऐसे लिखी गई है, जैसे स्त्रियों का अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व ही न हो लेकिन पुरूषों के कर्तव्य बताते हुए स्त्रियों की चर्चा की जाती है। सौन्दर्य प्रतियोगिताओं की चर्चा करते हुए गोलवरकर ने सीता, सावित्री, पद्मिनी (पद्मावती) को भारतीय नारी का आदर्श बताया है। इनमें सीता, सावित्री पतिव्रता स्त्री हैं, तो पद्मिनी, पतिव्रता के साथ-साथ ‘जौहर’ करने वाली क्षत्राणी हैं। साथ ही नारीत्व के आदर्श से गिरी हुई बुरी स्त्रियां भी हैं, जिसे हिंदू संस्कृति और हिंदुत्ववादी विचारधारा में ‘कुलटा’, ‘राक्षसी’, ‘डायन’ आदि कहा जाता है।
पूरा आर्टिकल यहां पढें : जानें क्या है आरएसएस की नजर में पवित्र स्त्री की परिभाषा?