कहै कबीर सुनहु रे संतो भ्रमि परे जिनि कोई।
जस कासी तस मगहर ऊसर हिरदैं राँम सति होई।।[1]
हिन्दी के विद्वानों ने कबीर साहेब की मृत्यु को लेकर भी विवाद पैदा किया है और इस बात को लेकर भी, कि वे अपनी मुक्ति का श्रेय काशी को देना नहीं चाहते थे, इसलिये मगहर जाकर मरे थे। ये विद्वान दरअसल कबीर को समझना ही नहीं चाहते, इसलिये वे भ्रमित ही कर सकते थे। उनका कहना है कि कबीर अन्तिम समय में काशी छोड़कर इसलिये मगहर चले गये थे, क्योंकि वे काशी में मरना नहीं चाहते थे। उनके मगहर जाने के पीछे जो कहानी गढ़ी गयी, वह बाबू श्याम सुन्दर दास के शब्दों में इस प्रकार है।
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