तुलसीदास ने लिखा है- “ढाेल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।।’’ ऐसी ही अपमानजनक टिप्पणियों से मनुवादी ग्रंथ भरे पड़े हैं। केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाआें के प्रवेश काे लेकर जो विवाद इन दिनों सुर्खियों में है, उसके पीछे भी इसी तरह का एक मनुवादी ग्रंथ है। इस ग्रंथ के मुताबिक, सबरीमाला मंदिर के भगवान अयप्पा केवल रजस्वला महिलाओं के प्रवेश से ही अपवित्र नहीं होते; बल्कि शूद्रों और पशुआें के प्रवेश से भी उनकी पवित्रता नष्ट होती है।
82 वर्ष पहले हटाया गया था शूद्रों के प्रवेश पर से प्रतिबंध
बताते चलें कि बीते 28 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय खंडपीठ ने सबरीमाला मंदिर में रजस्वला महिलाओं के प्रवेश पर त्रावणकोर देवासम बोर्ड के द्वारा लागाए गए प्रतिबंध को खत्म करने का आदेश दिया था। इसके बाद से ही पूरे केरल में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया जा रहा है। हालांकि, यह पहला अवसर नहीं है कि जब सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध हटाया गया हो। मंदिर परिसर में शूद्रों के प्रवेश पर प्रतिबंध था, जिसे 12 नवंबर 1936 को त्रावणकोर के महाराजा श्री चित्रा थिरूनल बलरामा वर्मा ने हटाया था। यह वह दौर भी था, जब पूरे देश में आजादी के लिए अंग्रेजों से संघर्ष के साथ ही सामाजिक सुधारों के लिए भी पहल की जा रही थी।

प्रतिबंध का आधार ‘तंत्र समुच्यम’
जिस ग्रंथ के आधार पर अयप्पा के पवित्र या अपवित्र होने की बात त्रावणकोर देवासम बोर्ड द्वारा कही जा रही है, उसका नाम है ‘तंत्र समुच्यम’। बताया जाता है कि इसके लेखक चेन्नास नारायण नम्बूदरीपाद थे। उन्होंने करीब 500 वर्षों पहले यह ग्रंथ लिखा था, जिसमें अयप्पा मंदिर के रखरखाव के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी गई है। इसी किताब को त्रावणकाेर देवासम बोर्ड आधार ग्रंथ मानता है और सुप्रीम कोर्ट में उसने इसी ग्रंथ के आधार पर रजस्वला महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाए जाने की बात कहकर इसे जारी रखने की अपील की थी।
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केरल के दलित लेखक, समालोचक व सामाजिक कार्यकर्ता सन्नी एम. कपिक्काड के मुताबिक, ‘‘इस ग्रंथ में स्पष्ट रूप से लिखा है कि यदि सबरीमाला मंदिर को अपवित्र छोड़ दिया जाए, तो भगवान अयप्पा नाराज हो जाएंगे और इसका परिणाम धरती पर तूफान और भूकंप वगैरह आएंगे।’’ वे कहते हैं – ‘‘जब भारत सरकार के हस्तक्षेप के कारण मंदिर में शूद्रों को प्रवेश का अधिकार दे दिया गया, तब अयप्पा नाराज नहीं हुए और न ही कहीं भूकंप या तूफान आया। इसी प्रकार यदि रजस्वला महिलाओं के मंदिर में आने से कोई भूकंप नहीं आने वाला।’’

इन कारणों से अपवित्र माना जाता है सबरीमाला मंदिर
वैसे ग्रंथ के अनुसार, अयप्पा के अशुद्ध होने के कई और कारण भी हो सकते हैं। ग्रंथ के 10वें अध्याय में इसका उल्लेख किया गया है। बताया गया है कि मंदिर परिसर में किसी भी जानवर के जन्म लेने या मृत्यु होने से परिसर अपवित्र हो जाएगा। यहां तक कि इन जानवरों में गाय भी शामिल है। तंत्र समुच्यम में यह भी कहा गया है कि केवल बड़े जानवर ही नहीं, बल्कि बिल्लियां और खरगोश आदि के कारण भी मंदिर अपवित्र हो जाएगा।

इस ग्रंथ के अनुसार, अयप्पा मंदिर के अपवित्र होने के कारणों में रजस्वला महिलाओं का प्रवेश तो शामिल है ही, शूद्रों का प्रवेश भी वर्जित है। इसके अलावा अयप्पा को कुछ खास फूल ही पसंद हैं। तंत्र समुच्यम के 10वें अध्याय में इसकी सूची भी दी गई है। सूची में शामिल फूलों के बदले किसी और फूल चढ़ाने से अयप्पा की पवित्रता को ठेस पहुंचती है।
यदि कोई मंदिर परिसर में पूजा के दौरान मंत्रोच्चारण में गलितयां कर दे, तब भी वे अपवित्र हो जाते हैं।
अपवित्रता को दूर करने को पंचगव्य से लेकर ब्राह्मणों के चरणों का जल भी
दिलचस्प यह भी है कि तंत्र समुच्यम के 10वें अध्याय में ही अयप्पा भगवान को अपवित्र होने पर पवित्र करने के नियम भी बताए गए हैं। मसलन, यदि कोई रजस्वला महिला या शूद्र या जानवर (गाय को छोड़कर) मंदिर में प्रवेश कर जाए तो स्नान करने, अशुद्ध स्थल की मिट्टी हटा देने से पवित्रता फिर से वापस बहाल की जा सकती है। एक उपाय यह भी है कि अशुद्ध स्थल पर गाय खड़ी कर दी जाए। जमीन खुद-ब-खुद पवित्र हो जाएगी।
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मंदिर की पवित्रता वापस बनाने के लिए एक नियम यह भी है कि जिसके कारण मंदिर परिसर अपवित्र हुआ है, वह व्यक्ति पंडितों को भोज कराए और बचा भोजन भी मंदिर परिसर में ही छोड़ दे। यानी उस भोजन पर केवल पंडितों का अधिकार है। अब यदि कोई गरीब व्यक्ति मंदिर में प्रवेश कर जाए और मंदिर की पवित्रता पर संकट आ जाए, तब तंत्र समुच्यम में इसका उपाय भी बताया गया है। इसके मुताबिक, पंचगव्य के छिड़काव से मंदिर परिसर की अपवित्रता एक झटके में दूर हो जाती है। पंचगव्य यानी गाय के मल-मूत्र का मिश्रण। अब किसी कारणवश पंचगव्य का प्रबंध तुरंत न हो, तो एक शार्टकट तरीका भी तंत्र समुच्यम में बताया गया है; वह यह है कि जिस पानी से ब्राह्मणों के पांव धोए जाते हैं, उस जल का अशुद्ध हुए स्थल पर छिड़काव करने से वह शुद्ध हो जाता है।
(कॉपी संपादन : प्रेम)
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