वर्चस्ववादी द्विज परंपराओं का विकल्प हैं अर्जक परंपराएं। यह कहना है बिहार के शीर्ष नक्सली नेता विजय कुमार आर्य की। बीते 11 जुलाई 2019 को उन्होंने अपनी बेटी की शादी अर्जक पद्धति के अनुसार की। बिहार जैसे प्रांत में जहां द्विज वर्ग अपना सांस्कृतिक वर्चस्व बाजारवाद के सहयोग से बरकरार रखने में कामयाब हैं और इसकी गिरफ्त में वे वामपंथी भी होते जा रहे हैं जो स्वयं को कथित रूप से प्रगतिशील बताते रहते हैं। इस लिहाज से विजय कुमार आर्य द्वारा अर्जक पद्धति में विश्वास महत्वपूर्ण है।
गौरतलब है कि विजय कुमार आर्य की छवि नक्सलवादी विचारधारा मानने वाले बड़े जननेता की रही है। वे अंतराष्ट्रीय माओवादी संगठन रिवॉल्यूशनरी इंटरनेशनलिस्ट मूवमेंट (रीम) और कोआर्डिनेशन कमिटी ऑफ माओइस्ट पार्टीज एंड आर्गेनाइजेशन ऑफ साउथ एशिया (कम्पोसा) के संस्थापकों में शामिल रहे हैं।
दरअसल, वर्चस्ववादी चारवर्णी जाति व्यवस्था में एक प्रमुख वैचारिक धारा के रूप में अर्जक संघ का प्रचार-प्रसार तेजी से हुआ है। संघ ने विवाह से लेकर श्राद्ध तक की अपनी पद्धति विकसित की है, जिसमें ब्राह्मण की जरूरत नहीं पड़ती है। अर्जक पद्धति में हर काम कर्मकांडविहीन होता है और सभी तरह के संस्कार संपन्न कराये जाते हैं।
इसी पद्धति से 11 जुलाई 2019 को विजय कुमार आर्य की पुत्री 19 वर्षीया पुत्री सुधा का विवाह गया जिले के कोंच प्रखंड के सोमरबिगहा निवासी श्यामदेव यादव के पुत्र नवल किशोर कुमार के साथ हुआ। गया शहर के माड़नपुर स्थित महात्मा गणिनाथ सेवाश्रम में अर्जक पद्धति से संपन्न हुए विवाह समारोह में विभिन्न दलों और संगठनों के नेता, पत्रकार, शिक्षाविद, संस्कृतिकर्मी आदि ने शामिल थे और सभी ने वर-वधु को आशीर्वाद और मंगलकामनाएं दीं।

फारवर्ड प्रेस से बातचीत में विजय कुमार आर्य ने कहा कि उनके परिवार में तीन पीढि़यों से अर्जक पद्धति से सामाजिक जीवन के संस्कार संपन्न हो रहे हैं। उनके पिता और चाचा भी अर्जक संघ के प्रमुख नेता थे और इसके प्रचार-प्रसार में प्रमुख भूमिका का निर्वाह कर रहे थे। उनकी बड़ी पुत्री का विवाह भी अर्जक पद्धति से हुआ और दूसरी पुत्री का विवाह भी इसी पद्धति से हुआ। उन्होंने कहा कि अर्जक पद्धति द्विजवादी पद्धतियों के खिलाफ विद्रोह है, एक बेहतर विकल्प है। द्विजवादी पद्धति सामाजिक संस्कारों को संपन्न कराने में ब्राह्मणों की श्रेष्ठता स्थापित करती है, जबकि अर्जक पद्धति मानवतावादी है और मानव-मानव के बीच समानता के संदेश का संचार करती है। द्विजवादी पद्धति में लड़का पक्ष को श्रेष्ठ और लड़की पक्ष को कमजोर माना जाता है। इसके विपरीत अर्जक पद्धति में दोनों पक्ष को समान माना जाता है और उसी आधार पर वैवाहिक रीतियों का निर्वाह किया जाता है। समाज के अन्य लोगों को भी अर्जक परंपराओं को अपनाकर एक बेहतर समाज के निर्माण में योगदान देना चाहिए। एक ऐसा समाज जिसमें सभी के लिए सम्मान हो और बराबरी की हिस्सेदारी हो।
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विवाह में वर-वधु दोनों को प्रतिज्ञान अर्जक संघ सांस्कृतिक समिति के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र पथिक ने कराया। फारवर्ड प्रेस से बातचीत में उन्होंने बताया कि अर्जक संघ की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। समाज के सभी वर्गों का समर्थन मिल रहा है। हर वर्ष सैंकड़ों शादियां अर्जक पद्धति से हो रही हैं। इस विवाद पद्धति में शपथ पत्र का पाठ, जयमाला और मंगलकामना महत्वपूर्ण विधि होती है। इसमें किसी प्रकार का वैदिक कर्मकांड का सहारा नहीं लिया जाता है।

बहरहाल, विजय कुमार आर्य की बेटी की शादी के मौके पर आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व विधायक और गया कॉलेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. कृष्णनंदन यादव ने की( जबकि संचालन भूगोल के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं अर्जक संघ के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो. राम कृष्ण प्रसाद यादव ने किया। इस अवसर पर रामेश्वर यादव, मुन्द्रिका सिंह नायक, बीरेन्द्र कुमार अर्जक, बालेश्वर प्रसाद, जितेन्द्र यादव, रामबली यादव, रामलखन अर्जक आदि के अलावा बड़ी संख्या में ग्रामवासी भी मौजूद रहे।
(कॉपी संपादन : नवल)
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