कोरोना के खिलाफ जंग में केरल पूरे देश में एक आदर्श राज्य के रूप में सामने आ रहा है। वहां इस वैश्विक बीमारी के प्रसार पर लगभग विराम लग चुका है। केरल सरकार द्वारा जारी अद्यतन जानकारी के अनुसार खबर लिखे जाने की तिथि (27 अप्रैल, 2020) को केवल एक नया मामला सामने आया है। वहीं पूर्व से संक्रमित 116 लोगों का इलाज जारी हैं। केरल की यह कामयाबी कितनी महत्वपूर्ण है, इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि वहां कोरोना से होने वाली मृत्यु की दर भारत में सबसे कम और रिकवरी की दर सबसे ज़्यादा है। विश्व स्तर पर मृत्यु दर 5.75 फ़ीसदी है, भारत में 2.83 फ़ीसदी और केरल में यह मात्र 0.58 फ़ीसदी है।
केरल की उपलब्धि कई मायनों में खास है। मसलन, कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित कासरगोड जिला, जहां राज्य में सामने आए कुल मरीजों में 44 फीसदी पाए गए, वहां भी रिकवरी की दर राष्ट्रीय औसत से तीन गुनी अधिक है। अति संवेदनशील समझे जा रहे इस जिले में किसी की मौत नहीं हुई है। अभी तक केरल में कुल 4 कोरोना संक्रमितों की मौत हुई है। यह जानकारी राज्य के मुख्यमंत्री पिनारई विजयन ने ट्विटर के जरिए दी।
#COVID19 Update | April 17 2020
Only 1 new case &10 new recoveries.
Total number of recovered is up at 255.
The State has only 138 active cases.
78980 individuals under observation, 526 of them in hospitals.
18,029 samples tested and 17,279 are negative. pic.twitter.com/41qsF8m7rM
— Pinarayi Vijayan (@pinarayivijayan) April 17, 2020
बताते चलें कि देश के पहले कोविड-19 मरीज की पुष्टि 30 जनवरी, 2020 को केरल में हुई थी। एक समय ऐसा लग रहा था कि केरल इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य बन जाएगा। केरल में स्थितियां भी कोरोना महामारी के प्रसार के लिए अनुकूल थीं. राज्य के करीब 20 लाख लोग अरब मुल्कों में काम करते हैं। इनमें बड़ी संख्या महिला नर्सों व स्वास्थ्यकर्मियों की है। इस प्रकार किसी भी दूसरे राज्य की अपेक्षा केरल में राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय आवागमन ज़्यादा होता है। इस कारण केरल में कोरोना के तेजी से फैलने और इसके भयावह परिणाम होने की संभावना बढ़ने लगी थी। परंतु, ऐसा नहीं हुआ। अब स्थिति यह है कि जहां एक ओर भारत के दूसरे राज्यों में कोविड-19 संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, वहीं केरल ने इस वैश्विक महामारी पर लगभग नियंत्रण प्राप्त कर लिया है।
आखिर केरल ने वैश्विक महामारी कोरोना को कैसे मात दी?
अब तक जो खबरें प्रकाश में आयी हैं, उनके मुताबिक केरल सरकार ने कोरोना के खिलाफ जंग के लिए बहुआयामी रणनीति को अपनाया। इसमें समाज के सभी वर्गों के लोगों के बीच समन्वय बनाने की रणनीति सबसे अहम रही। इसमें संक्रमण की पहचान करने से लेकर संक्रमण को सीमित करने के लिए जन-पहल का महत्वपूर्ण रहे। सूचना तंत्र का बेहतरीन उपयोग करते हुए सरकार ने लोगों से धैर्य रखते हुए बचाव के तरीके बताए। केरल की अनुशासित जनता ने इसका पालन किया।

केरल की समाजिक-राजनीतिक संरचना
समाज सुधार और आत्मसम्मान के लंबे संघर्ष और आंदोलन की बदौलत दलित और पिछड़ी जातियों ने केरल में राज्य की राजनीति और अर्थव्यवस्था में अपनी स्थिति को प्रभावशाली बनाया है। ईझवा समुदाय (जो पारंपरिक रूप से ताड़ी निकालने का काम करते थे) को श्री नारायणगुरु ने संगठित किया, बाद में उनके शिष्य डॉ. पल्पु ने एनएनडीपी गठित की, जबकि पुलया समुदाय को अय्यांकाली ने संगठित किया था। वर्गवादी बहुजन राजनीतिक चेतना के चलते पिछले दो दशकों में लोगों ने सामाजिक बदलाव में राजनीति की असली भूमिका को भी ठीक से समझ लिया। केरल की वर्तमान वाम मोर्चा सरकार के गठन में मुख्यतः वहां की दलित पिछड़ी जातियों की बड़ी और निर्णायक भूमिका है। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन स्वयं ईझवा समुदाय से है। इसमें दो राय नहीं कि केरल की सरकारी नीतियों और योजनाओं में बहुजन समाज का व्यापक प्रभाव और हस्तक्षेप है।
यही वजह है कि निजीकरण के खिलाफ़ और सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं सार्वजनिक शिक्षा के लिए बहुजन समाज ने केरल में लंबा संघर्ष किया है। बहुजन समाज के प्रभाव के चलते ही केरल सरकार अपने बजट का सबसे बड़ा हिस्सा शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च करती है। इस बात का सबूत है कि नीति आयोग के हेल्थ इंडेक्स (स्वास्थ्य सूचकांक) में केरल देश में सबसे ऊपर है। सरकार ने प्राइमरी हेल्थ सेंटर (पीएचसी) को पब्लिक हेल्थ सिस्टम की सबसे अहम कड़ी के रूप में विकसित किया है। इन प्राइमरी हेल्थ सेंटर में काम करने वाले अधिकांश कर्मी दलित-पिछडे और ईसाई समुदाय से आते हैं।

बताते चलें कि केरल की कुल 3.5 करोड़ आबादी में 23 फ़ीसदी मुस्लिम (बहुसंख्यक) 19 फ़ीसदी ईसाई (बहुलांश आर्थिक-समाजिक पिछड़े वर्गों से धर्मपरिवर्तित) और 22 फ़ीसदी आबादी दलित और पिछड़ी जातियों की है। जबकि कथित ऊंची जाति के नायरों की आबादी लगभग 15 फीसदी है। केरल में सत्तासीन वाम मोर्चा को मुख्यतः इन्हीं दलित और पिछड़ी जातियों का समर्थन मिलता है।
कोविड-19 और केरल : शेष भारत से अलग
केरल ने कोरोना पर नियंत्रण कैसे प्राप्त किया, इसकी जानकारी स्वयं मुख्यमंत्री ने ट्विटर पर दी। उन्होंने लिखा कि जैसे ही पहले कोविड-19 संक्रमण की खबर आई चौबीस घंटे के भीतर युद्ध स्तर पर 300 से अधिक डॉक्टरों और 400 अधिक स्वास्थ्य निरीक्षकों की नियुक्ति की गई। राज्य सरकार द्वारा तत्काल बीस हजार करोड़ रुपए के वित्तीय सहायता के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की गई।
Special Package | #COVID19
₹20,000 Cr package to fight the pandemic.
📜 2000 Cr in loans thru Kudumbashree
👷🏽♂️ 2000 Cr for employment guarantee scheme
👨👩👧👦 ₹1320 Cr for ₹1000 assistance to families not eligible for pensions.
👵🏾 2 months welfare pensions in advance pic.twitter.com/4AC6XcZkvt
— Pinarayi Vijayan (@pinarayivijayan) March 19, 2020
इसके अलावा सरकार ने सबसे पहले लोगों के राशनपानी का इंतजाम किया। इसके लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत सभी (एपीएल/बीपीएल दोनों को) के लिए एक महीने का राशन वितरण करने का निर्णय लिया गया। साथ ही आंगनबाड़ी केंद्रों पर भी नौनिहालों के लिए खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित की गयी। इसके अलावा केरल सरकार ने केरल एपिडेमिक डिजीज एक्ट बनाया। कोरोना के खिलाफ लड़ने के लिए अलग कानून बनाने वाला केरल पहला राज्य बना।
केरल ने वैज्ञानिक तरीके से कोरोना का सामना करते हुए अनेक पहल की। मसलन, ब्लड सैंपल लेने के लिए साउथ कोरिया की तर्ज पर कियोस्क स्थापित किये गए। केरल ऐसा अकेला राज्य है जहां सभी पंचायतों में “चैन तोड़ो” अभियान, हाथ धोने और स्वच्छता अभियान और शारीरिक दूरी बनाए रखने के लिए अभियान चलाया। इसी तरह किंडरगार्टन (आंगनवाड़ी) के लिए घर पर मिड्डे मील प्रदान करने की योजना में भी केरल अव्वल रहा। साथ ही राज्य सरकार ने लॉकडाउन के दौरान इंटरनेट बैंडविड्थ और कनेक्टिविटी को सुदृढ़ करने एवं विस्तार करने की दिशा में अहम कदम उठाये।
कासरगोड में काम आयी सरकार की स्पष्ट रणनीति
केरल का कासरगोड हॉटस्पॉट यानी सबसे अधिक प्रभावित जिला बन गया। मार्च के आख़िरी हफ्ते में वहां हर रोज़ 30-40 लोगों का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आ रहा था। इन्हें न केवल क्वारंटीन किया गया बल्कि इनके हर प्राइमरी और सेकेंडरी कॉन्टैक्ट के भी रैपिड टेस्ट किए गए। इनकी रैपिड टेस्टिंग की स्ट्रैटेजी सही साबित हुई। घरों से जाकर सैंपल लेने के लिए मोबाइल वैन स्थापित की गई। आंकड़ों पर बात करें तो अब तक प्रदेश में 22,360 सिम्पल लिए गए है, जो जनसंख्या घनत्व के आधार पर भारत का सबसे अधिक कोविड टेस्टिंग हैं।
#WATCH Ernakulam District Administration has set-up Walk-in Sample Kiosk (WISK) to collect samples from those with COVID19 symptoms. Sample collection for current PCR test & Rapid test, can be done using WISK. (Source: Ernakulam District Administration, Kerala) pic.twitter.com/YIZFnLcES4
— ANI (@ANI) April 7, 2020
एक तरफ आवश्यक व्यवस्थाओं को सुदृढ़ किया गया तो दूसरी तरफ कोरोना को रोकने के लिए पंचायत राज निकायों के माध्यम से सदस्य और जूनियर पब्लिक हेल्थ नर्स और जूनियर हेल्थ इंस्पेक्टर्स जैसे स्वास्थ्य कर्मियों को भी सक्रिय किया। इससे केरल में कोरोना का ग्राफ बढ़ने पर रोक लगी है। नए मामलों में कमी और मरीजों के ठीक होने का सिलसिला यदि इसी तरह दो हफ्ते और जारी रहा तो केरल वैश्विक महामारी के जबड़े से निकलने वाला भारत का पहला राज्य बन सकता है।

असल में केरल सरकार ने कोरोना को दो मोर्चे पर चुनौती दी। पहला तो यह कि सामाजिक और सामुदायिक स्तर पर इसे फैलने से कैसे रोका जाए और दूसरा यह कि जो प्रभावित हो चुके हैं, उनके प्राणों की रक्षा कैसे हो। जमीनी स्तर पर काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मी यहां के चेंजमेकर बने। इन जमीनी कार्यकर्ताओं की मदद से “कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और कंटेनमेंट स्ट्रैटेजी” को सरकार ने अमलीजामा पहनाया। यह सरकार की हेल्थकेयर के विकेंद्रीकरण की नीतियों की वजह से संभव हो पाया। सरकार ने सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति के ज़रिए स्वास्थ्य सेवाओं को प्राइमरी हेल्थ सेंटर्स से ज़िला अस्पतालों और स्थानीय निकायों तक पहुंचाया है।
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इसके अलावा राज्य सरकार ने हर जिले में कम से कम दो कोविड स्पेशलिस्ट अस्पताल स्थापित किए। साथ ही बीमारियों से ग्रस्त 60 साल से ज्यादा उम्र वाले लोगों को, जिनकी संख्या 71.6 लाख है, को इस महामारी के आरंभिक दिनों से ही अलग किया गया। उन्हें टेलीमेडिसिन के जरिए अपने डॉक्टरों से संपर्क रखने की योजना बनाकर उसे अंजाम दिया गया। ऐसे वरिष्ठ नागरिकों की मदद के लिए राज्य के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के द्वारा वॉलंटियर कॉर्प्स नियुक्त किए गए। इसके अतिरिक्त परामर्श प्रदान करने वाले विशेषज्ञों की नियुक्ति की गई।
इसके अलावा केरल राज्य में टोल फ्री नंबर दिया गया है। इस पर ज़िला मेडिकल ऑफ़िसर के यहां होने वाली शिकायतों या इन्क्वायरीज़ के बारे में बताते है। आइसोलेशन और क्वारंटाइन के साथ एक महत्वपूर्ण समस्या मानसिक संकट है। इससे निपटने के लिए केरल सरकार ने 241 काउंसिलिंग कॉल सेंटर स्थापित किए हैं, जो अब तक 24 हजार काउंसलिंग सत्र आयोजित कर चुके हैं ताकि मौजूदा स्थिति में डर से निपट सके।
इसके अलावा अलग-अलग स्पेशियलिटीज से लिए गए नौ डॉक्टरों की टीम के कॉनवल्सेंट प्लाज़्मा थेरेपी के इस्तेमाल से कोरोना वायरस के मरीजों का इलाज करने पर लिखे गए पेपर को इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने एप्रूव किया है। इस विधि के प्रयोग कर कोविड-19 के रोगियों का इलाज करने वाला केरल पहला राज्य हैं। अब भारत के अन्य राज्यों में भी प्लाज़्मा थेरेपी की शुरुआत हुई है।
शारीरिक दूरी, सामाजिक एकता
राज्य सरकार ने प्रथम चरण में सतर्कता के सारे उपाय किये। जैसे ही यह जानकारी सामने आई कि वायरस सतहों पर देर तक टिका रहता है और हवा के माध्यम से भी फैलता है, राज्य सरकार हैंड सैनिटाइज़र और मास्क बनाने में जुट गई। सार्वजनिक क्षेत्र की एक कंपनी ने हैंड सेनिटाइज़र का उत्पादन शुरू किया। युवा मूवमेंट डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (डीवाईएफआई) और अन्य संगठनों ने भी हैंड सैनिटाइज़र का उत्पादन करना शुरू कर दिया, जबकि महिलाओं की सहकारी समिति कुडुम्बश्री (45 लाख सदस्य) की इकाईयां मास्क बनाने के काम में लग गईं।
स्थानीय प्रशासन ने आपातकालीन समितियों का गठन किया और सार्वजनिक स्थलों को स्वच्छ करने और रखने के लिए समूह बनाए। ये सामूहिक सफाई अभियान समाज पर एक शैक्षणिक-वैज्ञानिक प्रभाव डालते हैं, इसके जरिए ही वोलंटियर्स “चैन तोड़ो” अभियान की सामाजिक ज़रूरत के बारे में लोगों को समझाने में सफल हुए।
इन सबके अलावा डीवाईएफआई के वालंटियर, पुलिस, सामाजिक व धार्मिक संगठन और अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा कम्युनिटी किचन में भोजन बनाकर घर-घर पहुंचाया जा रहा है। प्रवासी श्रमिकों के लिए 19,764 कैंप व शिविर की व्यवस्था की गयी है, जहां 3.5 लाख प्रवासी मजदूरों की दैनिक आवश्यकताओं को पूरा किया जा रहा हैं।
जहां देश भर में कोरोना को मुसलमानों द्वारा फैलाया जाना साबित करने के लिए कोरोना जेहाद जैसे टैग और नैरेटिव बनाए जा रहे हैं वहीं केरल के मुख्यमंत्री पिनारई विजयन ने कहा कि “शारीरिक दूरी, सामाजिक एकता- इस समय हमारा नारा होना चाहिए।”
(संपादन : गोल्डी/नवल/अमरीश)