h n

कबीर : रूढियों को चुनौती देनेवाले बेबाक समाजशास्त्री

कबीर जयंती के मौके पर कमलेश वर्मा बता रहे हैं कि जाति के प्रश्नों पर विचार करते हुए कबीर का न्यारापन सामने आता है. वे जाति-व्यवस्था का विरोध करते हैं, लेकिन जाति-आधारित सामाजिक संरचना को सबसे ज्यादा व्यक्त भी करते हैं. वे जाति के अनुसार निर्धारित कर्मों को अस्वीकार भी करते हैं और भक्ति की ज़मीन से उन कर्मों को रूपक के रूप में प्रकट भी करते हैं

कबीर जंयती पर विशेष

भक्ति आन्दोलन के प्रमुख कवियों में कबीर और तुलसी ने अपनी कविताओं में जाति के प्रश्नों पर विचार किया है. अन्य कवियों की कविताओं में जातियों का जिक्र कम ही मिलता है. मलिक मुहम्मद जायसी, सूरदास, मीराबाई आदि ने छिटपुट रूप से किसी-किसी जाति का उल्लेख किया है; मगर उनके लिए यह मुद्दा कुछ विशेष नहीं है. हिन्दी आलोचना में कबीर और तुलसी के बारे में यह बात होती रही है कि इन दोनों कवियों ने वर्णाश्रम के विचारों का समर्थन या विरोध किया है. कबीर ने वर्णाश्रम का विरोध किया और तुलसी ने समर्थन किया!

पूरा आर्टिकल यहां पढें : कबीर : रूढियों को चुनौती देनेवाले बेबाक समाजशास्त्री

लेखक के बारे में

कमलेश वर्मा

राजकीय महिला महाविद्यालय, सेवापुरी, वाराणसी में हिंदी विभाग के अध्यक्ष कमलेश वर्मा अपनी प्रखर आलोचना पद्धति के कारण हाल के वर्षों में चर्चित रहे हैं। 'काव्य भाषा और नागार्जुन की कविता' तथा 'जाति के प्रश्न पर कबीर' उनकी चर्चित पुस्तकें हैं

संबंधित आलेख

नागरिकता मांगतीं पूर्वोत्तर के एक श्रमिक चंद्रमोहन की कविताएं
गांव से पलायन करनेवालों में ऊंची जातियों के लोग भी होते हैं, जो पढ़ने-लिखने और बेहतर आय अर्जन करने लिए पलायन करते हैं। गांवों...
नदलेस की परिचर्चा में आंबेडकरवादी गजलों की पहचान
आंबेडकरवादी गजलों की पहचान व उनके मानक तय करने के लिए एक साल तक चलनेवाले नदलेस के इस विशेष आयोजन का आगाज तेजपाल सिंह...
ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविताओं में मानवीय चेतना के स्वर
ओमप्रकाश वाल्मीकि हिंदू संस्कृति के मुखौटों में छिपे हिंसक, अनैतिक और भेदभाव आधारित क्रूर जाति-व्यवस्था को बेनकाब करते हैं। वे उत्पीड़न और वेदना से...
दलित आलोचना की कसौटी पर प्रेमचंद का साहित्य (संदर्भ : डॉ. धर्मवीर, अंतिम भाग)
प्रेमचंद ने जहां एक ओर ‘कफ़न’ कहानी में चमार जाति के घीसू और माधव को कफनखोर के तौर पर पेश किया, वहीं दूसरी ओर...
अली सरदार जाफ़री के ‘कबीर’
अली सरदार जाफरी के कबीर भी कबीर न रहकर हजारी प्रसाद द्विवेदी के कबीर के माफिक ‘अक्खड़-फक्कड़’, सिर से पांव तक मस्तमौला और ‘बन...