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हिंदू नहीं, आदिवासी रीति-रिवाजों से हो जनजातियों की शादियां, छत्तीसगढ़ सरकार का फैसला

आदिवासियों का धर्म क्या है? क्या वे हिंदू, मुस्लिम या फिर ईसाई हैं? अधिकांश आदिवासी स्वयं को इनमें से कोई नहीं मानते। उनके मुताबिक उनका अपना धर्म और परंपराएं हैं। इन्हीं सवालों से संबंधित छत्तीसगढ़ सरकार के एक फैसले के बारे में बता रहे हैं तामेश्वर सिन्हा

आदिवासियों पर अलग-अलग धर्म थोपे जा रहे हैं। हाल के दशकों में हिंदू धर्म थोपने के प्रयासों में तेजी भी देखी गयी है। आदिवासियों को विभिन्न तरीकों से हिंदू धर्मावलम्बी बताए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इन सबके बीच छत्तीसगढ़ सरकार ने फैसला लिया है कि आदिवासी युगलों की शादी हिंदू रीति-रिवाज के मुताबिक नहीं बल्कि उनकी अपनी परपंरपराओं के अनुसार हो।

इस आशय का एक पत्र महिला एवं बाल विकास विकास विभाग द्वारा बीते 18 जून, 2020 को जारी किया गया है। इसके जरिए सूबे के सभी जिलों के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी व जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना अंतर्गत जनजातियों का विवाह फार्म भरते समय हिन्दू न लिखा जाय। 

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में एक आदिवासी परिवार में शादी के दौरान शामिल लोग और आंगन में की गई तैयार किया गया मंडप

इतना ही नहीं, विभाग ने अपने निर्देश में साफ कहा है कि विवाह के रस्म-रिवाज आदवासियों में प्रचलित पद्धतियों के हिसाब से ही संपन्न कराए जायें। विभाग ने यह निर्देश छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के अधिवक्ता अमृत मरावी द्वारा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के “जन-चौपाल” कार्यक्रम में दिए गए आवेदन के आलोक में जारी किया है। अमृत मरावी ने मांग किया था कि मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना अंतर्गत जनजातियों के विवाह फार्म भरते समय हिन्दू न लिखा जाए एवं विवाह हिन्दू पद्धति से सम्पन्न नही कराया जाय। बल्कि जनजातियों में प्रचलित रीति रिवाज से विवाह संपन्न किया जाए। 

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बताते चलें कि जब छत्तीसगढ़ में रमन सिंह की सरकार थी तब राज्य के गरीब परिवारों की बेटियों के लिए छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री कन्यादान योजना की शुरुआत की गई थी। इस योजना के तहत राज्य के गरीबों की बेटी की शादी के लिए राज्य सरकार की तरफ से सहायता राशि प्रदान की जाती है। पहले इस योजना के तहत पंद्रह हजार रुपए की राशि दी जाती थी। अब भूपेश बघेल सरकार ने इसे बढ़ाकर तीस हजार रुपए कर दिया है।

शादी के एक रस्म को निभातीं महिलाएं

इस योजना के लिए भरे जाने वाले फार्म में हिन्दू शब्द विलोपित करने के सरकार के निर्णय का आदिवासी समाज के लोगों ने स्वागत किया है। सर्व आदिवासी समाज के बस्तर संभाग के अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर बताते हैं कि “हम लोगों ने पूर्ववर्ती रमन सिंह सरकार से कई बार मांग किया था कि सरकार हमारी परंपराओं को संरक्षित करे और हम लोगों के उपर बाहरी संस्कृति न थोपे। लेकिन हमारी मांगों को अनसुना किया गया। अब भूपेश बघेल सरकार ने यह निर्णय लिया है तो हम इसका स्वागत करते हैं। उन्होंने कहा कि हमारी शादियां हमारी परंपराओं के हिसाब से हो न कि हिन्दू परंपराओं के अनुसार। वजह यह कि हम हिंदू नहीं हैं। जबरन यह हमारे उपर थोपा जा रहा है।”

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जारी पत्र की छायाप्रति

प्रकाश ठाकुर आगे बताते है हिन्दू रीति में जो फेरे होते है वैसा हमारे समाज मे नही होता। हमारी परंपरा ही अलग है। हमारी शादी में कोई ब्राह्मण नही होता और न हिंदू विधि के अनुसार कोई पूजा होती है और न उनके जैसे मंत्र पढ़े जाते हैं। हमारे अपने विधान हैं जो प्रकृति से जुड़े हैं।

शादी के एक रस्म के दौरान वर और उसकी मां

वहीं पीयूसीएल, छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान कहते हैं कि देश के संविधान के मुताबिक राज्य द्वारा किसी भी धर्म विशेष को कोई विशेष महत्व नहीं दिया जा सकता। छत्तीसगढ़ शासन ने आदिवासी समुदायों के हस्तक्षेप के पश्चात् मुख्यमंत्री कन्या विवाह कार्यक्रमों में उनके रीति-रिवाज़ और रुढि-प्रथाओं के अनुरूप विवाह संपन्न कराने का आदेश जारी किया है, हालांकि यह भूल सुधार विलंब से जरूर हुआ लेकिन स्वागत योग्य है। 

सरगुजा सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष अनूप टोप्पो का मानना है कि आदिवासियों की मूल पहचान उनकी भाषा-बोली संस्कृति से होती है। आदिवासी शुरू से ही प्रकृति के नियमानुसार अपने समस्त क्रियाकलाप जन्म से लेकर मृत्यु तक करते आए है। हम बहुत पहले से हमारे रुढिगत परंपरा के अनुसार शादियां करने की मांग करते आए है लेकिन पूर्व की बीजेपी सरकार इसकी अनदेखी करती रही। अब जा कर कांग्रेस सरकार ने पत्र जारी किया है। टोप्पो आगे कहते है हमारी परंपरा में किसी सवर्ण ब्राह्मण की जरूरत नही होती। आदिवासी परंपरा में जो फेरे भी होते हैं, वे घड़ी की उल्टी दिशा में होते हैं। 

(संपादन : नवल/गोल्डी)

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लेखक के बारे में

तामेश्वर सिन्हा

तामेश्वर सिन्हा छत्तीसगढ़ के स्वतंत्र पत्रकार हैं। इन्होंने आदिवासियों के संघर्ष को अपनी पत्रकारिता का केंद्र बनाया है और वे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रिपोर्टिंग करते हैं

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