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फुले-शाहू-आंबेडकर की साझा विरासत पर फ़िल्म तैयार, निर्देशक को है मदद की दरकार

फिल्म निर्देशक शैलेश नरवड़े की अनूठी फिल्म ‘जयंती’ लगभग बन चुकी है। फिल्म में सभी निवेशकर्ता और कलाकारों सहित पूरी टीम के अधिकांश सदस्य दलितबहुजन हैं। फिल्म को रिलीज़ के लिए तैयार करने के लिए कुछ और धन की ज़रुरत है, जिसके लिए नरवड़े क्राउडफंडिंग का सहारा ले रहे हैं

यह सन 2015 की बात है. 43 वर्षीय शैलेश नरवड़े एक दिन अचानक सोचने लगे कि आखिर आंबेडकर अपनी 125वीं जयंती को कैसे मनाया जाना पसंद करते। उस समय तक भारतीय जनता पार्टी, जो कि केंद्र और महाराष्ट्र में सत्ता में थी, ने आंबेडकर का गुणगान शुरू कर दिया था। परन्तु वे आंबेडकर और उनके विचारों का तोड़ा-मरोड़ा गया संस्करण प्रस्तुत कर रहे थे। महाराष्ट्र सरकार ने आंबेडकर की 125वीं जयंती मनाने के लिए बजट आवंटित कर दिया था। नरवड़े, जो मुख्यधारा के मीडिया में काम कर चुके थे और अपने कॉलेज के दिनों से ही रंगमंच पर सक्रिय थे, ने मराठी फीचर फिल्म बनाने हेतु अनुदान के लिए आवेदन किया। उनका इरादा एक ऐसे युवक पर केन्द्रित फिल्म बनाने का था जो आंबेडकर के असली विचारों की खोज करता है। सरकार ने उनकी अर्जी मंज़ूर नहीं की। इसके बाद उन्होंने क्राउडफंडिंग का सहारा लेने का निर्णय लिया। परन्तु इसमें भी उन्हें कोई ख़ास सफलता हासिल नहीं हो पाई। तब तक इतना समय गुज़र चुका था कि नरवड़े के लिए आंबेडकर की 125वीं जयंती – 14 अप्रैल 2016 तक – फिल्म बनाकर उसे रिलीज़ करना संभव नहीं था।   

यह अधूरे सपनों की एक दुखांत कथा हो सकती थी, परन्तु इस बीच फिल्म के निर्माण में मदद कर सकने वालों से नरवड़े की चर्चा में एक नया विचार सामने आया। नरवड़े को सलाह दी गई कि उन्हें फिल्म के कथानक को विस्तार देते हुए उसमें बहुजन विचारधारा, आंबेडकरवादी आंदोलन और आंबेडकर की सोच पर जोतीराव फुले, सावित्रीबाई फुले और शाहूजी महाराज के प्रभाव को भी शामिल करना चाहिए। बात नरवड़े को पसंद आ गयी और उन्होंने दो घंटे की अपनी फिल्म की पटकथा को दोबारा लिखा।  

नरवड़े कहते हैं, “अगर मैंने केवल आंबेडकर पर फिल्म बनाई होती तो शायद ऐसा लग सकता कि वह केवल एक जाति विशेष के लिए है। परन्तु फुले दंपत्ति और शाहूजी महाराज को शामिल करने से फिल्म को एक बड़ा दर्शक वर्ग मिल जाएगा। तीनों ने जाति प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और तीनों का राष्ट्रव्यापी प्रभाव है। फुले को आंबेडकर अपना गुरु मानते थे और शाहूजी महाराज ने आंबेडकर की उनका पहला अखबार शुरू करने में मदद की थी। इस तरह यह फिल्म उनकी साझा विरासत पर है।”  

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नागपुर और मुंबई के दलितबहुजन साथियों ने मिलकर सहयोग किया। सभी के सहयोग से फिल्म की शूटिंग का पूरा खर्च निकल गया। शूटिंग फरवरी, 2020 में ख़त्म हो गयी। संपादन का काम भी हो हो गया। अलबत्ता कुछ भुगतान किया जाना बाकी है। नरवड़े और उनके साथियों ने एक बार फिर ऑनलाइन क्राउडफंडिंग का सहारा लिया।

नरवड़े और उनकी टीम 2021 के अप्रैल में फिल्म रिलीज़ करना चाहते हैं। अप्रैल वह महीना है जिसमें हम फुले और आंबेडकर, दोनों की जयंती मनाते हैं। परन्तु इसके लिए यह ज़रूरी है कि फिल्म का पोस्ट-प्रोडक्शन काम इस साल अक्टूबर तक ख़त्म कर लिया जाय।

‘जयंती’ के सेट्स पर शैलेश नरवड़े

नरवड़े कहते हैं, “शुरू से ही हमारी इच्छा थी कि केवल दलितबहुजन इस फिल्म में निवेश करें। परन्तु अब, जबकि हम शेष खर्च के लिए क्राउडफंडिंग कर रहे हैं, हमारे पास यह सुनिश्चित करने का कोई तरीका नहीं है।” अब तक क्राउडफंडिंग के ज़रिए उन्हें करीब 9.5 लाख रुपए मिल चुके हैं जबकि पोस्ट-प्रोडक्शन पर लगभग 50 लाख रुपये का खर्च संभावित है। नरवड़े का इरादा महाराष्ट्र में करीब 200 स्क्रीन्स पर फिल्म रिलीज़ करने का है। साथ ही वे इस फिल्म को विदेश में भी रिलीज़ करना चाहते हैं। 

उनका कहना है कि उनकी टीम में फ़िल्मी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कलाकार व अन्य लोग शामिल हैं और उन्होंने बेहतरीन उपकरणों का उपयोग किया है। वे इस मान्यता को तोड़ना चाहते हैं कि दलित बहुजन अच्छी फिल्में नहीं बना सकते हैं।  उनके अनुसार फिल्म के परदे पर और परदे के पीछे जो लोग हैं उनमें से 90 प्रतिशत दलितबहुजन हैं।

फिल्म के निर्माण के बारे में और अधिक जानने अथवा उसमें अपना योगदान देने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें : 

https://gocrowdera.com/jayantiafilm/

(अनुवाद: अमरीश हरदेनिया, संपादन : नवल)


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लेखक के बारे में

अनिल वर्गीज

अनिल वर्गीज फारवर्ड प्रेस के प्रधान संपादक हैं

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