बीते 25 दिसंबर को ‘मनुस्मृति दहन दिवस’ पर देश के कई राज्यों सहित बिहार–यूपी में बहुजन संगठनों ने मनुस्मृति के साथ मनुवादी–पूंजीवादी गुलामी थोपने के कानूनों–प्रावधानों–नीतियों का दहन किया। साथ ही, तीनों कृषि कानून, श्रम कानूनों में किए गए संशोधनों, नई शिक्षा नीति-2020 के अलावा ओबीसी आरक्षण में क्रीमी लेयर प्रावधान, सवर्ण आरक्षण और नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) आदि की प्रतियों का दहन तथा निजीकरण व कॉलेजियम सिस्टम का प्रतिकार किया गया।
बिहार के भागलपुर, सीवान, मुंगेर, लखीसराय, बेगूसराय तथा उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में मनुस्मृति दहन दिवस कार्यक्रम आयोजित हुआ। उत्तर प्रदेश में आयोजित कार्यक्रम में आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट (आफस्पा) के साथ उत्तर प्रदेश कंट्रोल ऑफ आर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट (यूपीकोका), उत्तर प्रदेश स्पेशल सिक्यूरिटी फोर्सेस (यूपी एसएसएफ) एक्ट, प्रोहिबिशन ऑफ अनलॉफुल रिलिजियस कनवर्जन ऑर्डिनेंस, 2020, राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) जैसे काले कानूनों का भी दहन किया गया। इस मौके पर रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव ने कहा कि मनुस्मृति भारत के अतीत का मसला नहीं है, यह वर्तमान का मसला भी है। आज भी भारत में मनुसंहिता पर आधारित वर्ण–जाति व्यवस्था का श्रेणीक्रम पूरी तरह लागू है। भारत में बहुसंख्यकों की नियति आज भी इससे तय होती है कि उन्होंने किस वर्ण–जाति में जन्म लिया है। वर्तमान लोकसभा में 21 प्रतिशत सवर्णों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व 42.7 प्रतिशत है। ग्रुप–ए के कुल नौकरियों के 66.67 प्रतिशत पर 21 प्रतिशत सवर्णों का कब्जा है। ग्रुप बी के कुल पदों के 61 प्रतिशत पदों पर सवर्ण काबिज हैं। कॉलेजों–विश्वविद्यालयों में शिक्षक से लेकर प्रिंसिपल–कुलपति तक के पद पर सवर्णों का दबदबा है। न्यायपालिका (हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट) में 90 प्रतिशत से अधिक जज सवर्ण हैं। मीडिया भी सवर्णों के कब्जे में ही है। किसान नेता बलवंत यादव ने कहा कि राष्ट्रीय संपदा में सवर्णों की हिस्सेदारी 45 प्रतिशत है। कुल भूसंपदा का 41 प्रतिशत सवर्णों के पास है। नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से सवर्ण वर्चस्व और बहुजनों की चौतरफा बेदखली का अभियान बढ़ रहा है।

इस अवसर पर एएमयू के छात्र नेता मुज्तबा फराज, किसान नेता बलवंत यादव, संतोष सिंह, इमरान, अधिवक्ता एन.के. यादव, आदिल, बांकेलाल, कासिम अंसारी आदि मौजूद रहे।
वहीं बिहार के भागलपुर में कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. विलक्षण रविदास ने कहा कि 25 दिसंबर, 1927 को डॉ. आंबेडकर ने पहली बार मनुस्मृति में दहन का कार्यक्रम किया था। वे मनुस्मृति को ब्राह्मणवाद की मूल संहिता मानते थे। उनका कहना था कि भारतीय समाज में जो कानून चल रहा है, वह मनुस्मृति के आधार पर है। मनुस्मृति द्विजों को जन्मजात श्रेष्ठ और पिछड़ों, दलित एवं महिलाओं को जन्म के आधार पर दोयम दर्जा देती है। आज भी भारतीय समाज–संस्कृति, अर्थतंत्र व राज व्यवस्था में मनुस्मृति अस्तित्व में है। इसका नाश कर ही नया समाज व नया भारत बनेगा।

इस मौके पर सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) के रिंकु यादव ने कहा है कि वर्तमान में मोदी राज ‘मनु राज’ का पर्याय बन चुका है। संविधान को कमजोर कर मनुविधान थोपा जा रहा है। हालिया कृषि संबंधी तीनों कानून, चार श्रम संहिता व नई शिक्षा नीति-2020 के साथ सीएए व यूएपीए जैसे काले कानून के जरिए मोदी सरकार बहुजनों पर मनुवादी–पूंजीवादी गुलामी को मजबूत कर रही है। आज के दौर में मनुस्मृति दहन दिवस ज्यादा महत्वपूर्ण हो उठा है।
बहुजन स्टूडेंट्स यूनियन (बिहार) के सोनम राव और मिथिलेश विश्वास ने कहा कि नई शिक्षा नीति-2020 सामाजिक न्याय विरोधी–बहुजन विरोधी है। शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा देने वाला है। इस शिक्षा नीति से बहुजन शिक्षा के अधिकार से वंचित होंगे। मोदी सरकार चौतरफा निजीकरण की रफ्तार बढ़ा कर सामाजिक–आर्थिक विषमता को बढ़ा रही है।
संत रविदास महासभा के महेश आंबेडकर और सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) के गौतम कुमार प्रीतम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम का होना मनुस्मृति के अस्तित्व का प्रमाण है। ओबीसी आरक्षण में क्रीमी लेयर प्रावधान के साथ ही मोदी सरकार द्वारा आर्थिक आधार पर सवर्णों को दिया गया 10 प्रतिशत आरक्षण संविधान विरोधी है, मनुवादी वर्ण–जाति व्यवस्था को मजबूत करता है।
इस अवसर पर सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) के अर्जुन शर्मा, अंजनी, विनय संगीत, सौरव राणा, विद्या सागर; बहुजन स्टूडेंट्स यूनियन (बिहार) के अभिषेक आनंद, विभूति, राजेश रौशन, सुशील, तनवीर, ऋषि राज, चंदन, सुमन, अजित, अंगद; बिहार फुले–अंबेडकर युवा मंच के अजय राम, वीरेन्द्र गौतम, सुजीत, कुणाल, मिथुन, सुमन, निरंजन तांती, पिताम्बर कुमार, विभाष दास; संत रविदास महासभा के कपिल देव दास, रणजीत रजक, पुरुषोत्तम गौतम, दिलीप दास, मुकेश कुमार; के साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता सोहिल दास, रमेश पासवान, ललित कुमार, संजय रजक, डीपी मोदी, उमेश यादव, डॉ. अरुण पासवान, डॉ. उत्तम, सहेन्द्र साहू सहित सैकड़ों मौजूद थे।
(संपादन : नवल/अनिल)
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