h n

किसान आंदोलन के समर्थन में बहुजन समाज ने निकाला ‘माटी संकल्प मार्च’

‘माटी संकल्प मार्च’ में शामिल दलित-बहुजन अपने साथ डेढ़ सौ मीटर लंबा बौद्ध धम्म ध्वज और तिरंगा, लेकर चल रहे थे। वहीं कई बैनरों पर “साझी विरासत और साझी शहादत” के नारे थे। इस दौरान लोगों ने ‘जय भीम’ के नारे के साथ ‘जय किसान’ और ‘जय जवान’ के नारे लगाए। बता रहे हैं सुशील मानव

दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन को दलित-बहुजन समाज के लोगों ने समर्थन दिया है। इस क्रम में बीते 17 जनवरी, 2021 को रोहित वेमुला की शहादत की बरसी पर बहुजन समाजवादी मंच की ओर से माटी संकल्प मार्च निकाला गया। यह मार्च उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के डाबर चौक, कौशाम्बी स्थित बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की प्रतिमास्थल से ग़ाज़ीपुर किसान धरना स्थल तक पहुंचा। 

मार्च में शामिल लोग अपने साथ डेढ़ सौ मीटर लंबा बौद्ध धम्म घ्वज और तिरंगा लेकर चल रहे थे। वहीं कई बैनरों पर “साझी विरासत और साझी शहादत” के नारे थे। इस दौरान लोग ‘जय भीम’ के नारे के साथ ‘जय किसान’ और ‘जय जवान’ का नारा लगा रहे थे। इस मार्च की खासियत यह रही कि इसमें बड़ी संख्या में बुद्धिजीवियों और मजदूरों के अलावा महिलाएं और बच्चे भी शमिल थे। 

मार्च में शामिल दलित-बहुजन

माटी संकल्प मार्च के लिए बहुजन समाज के लोग चार राज्यों (उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और हरियाणा) के 25 जिलों से मिट्टी लेकर आये थे और मार्च के गंतव्य स्थल पर पहुंचने पर यह मिट्टी गाजीपुर सीमा पर आंदलन कर रहे किसानों को समर्पित किया गया। कार्यक्रम के आयोजकों ने फारवर्ड प्रेस को बताया कि माटी संकल्प का ध्येय था कि हम 25 जिलों के लोग अपने खेत-खलिहानों की मिट्टी का संकल्प लेते हैं कि हम किसान आंदोलन को पूरा समर्थन देते हैं और आनेवाले दिनों में आंदोलन के साथ बहुजन समाज पूरी भागीदारी निभाएंगे। 

बहुजन समाजवादी मंच के संस्थापक सदस्य संजीव माथुर ने बताया कि बहुजन समाज मौजूदा किसान आंदोलन को केवल किसानों तक सीमित करके नहीं देख रहा है। यह एक बड़ी लड़ाई की शुरुआत है और इस लड़ाई में बहुजन समाज अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर रहा है। 

यह भी पढ़ें : किसानों की मुकम्मिल जीत जरूरी है

माटी संकल्प मार्च कार्यक्रम का आयोजन बहुजन समाजवादी मंच और समाजवादी लोक मंच सहित अनेक संगठनां ने किया। समाजवादी लोक मंच के सदस्य और प्रवक्ता धर्मेंद्र प्रधान ने बताया कि “किसान अपनी जायज मांग के लिए आंदोलन कर रहे। एक समाजिक मंच और प्राणी होने के नाते इस आंदोलन को समर्थन देने की एक वाजिब वजह बनती है कि हम उनकी सही मांग का समर्थन करें।”

कृषि क़ानूनों को दलित बहुजन विरोधी बताते हुए धर्मेंद्र प्रधान ने आगे कहा कि “ये तीनों कृषि क़ानून सिर्फ़ किसानों के खिलाफ़ नहीं हैं। इस क़ानून का सबसे ज़्यादा गाज सदियों से हाशिए पर डाले गये दलित और बहुजन समाज के लाेगों पर ही गिरने वाली है। इन क़ानूनों के बाद सार्वजनिक राशन वितरण प्रणाली का जो सरकारी तंत्र है, वह धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा। हमें इस बात की आशंका है कि जब सरकार सबकुछ कारपोरेट के ऊपर छोड़ देगी तो सरकार शायद ही अनाज की खरीद करेगी और शायद ही सरकार अनाज का भंडारण करेगी। जब सरकार भंडारण ही नहीं करेगी तो वितरण कहां से और कैसे करेगी। उस स्थिति में दलित-बहुजन के लोग जो आज सरकारी राशन पीडीएस दुकानों से प्राप्त कर लेते हैं, उन्हें अनाज के लिए मुक्त बाज़ार की ओर देखना पड़ेगा। इस प्रकार इसका सबसे ज़्यादा प्रभाव बहुजनों पर होगा। इन कारणों से भी हम कृषि क़ानूनों का विरोध और किसान आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं।”    

(संपादन : नवल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

संबंधित आलेख

पसमांदा मुसलमानों को ओबीसी में गिनने से तेलंगाना में छिड़ी सियासी जंग के मायने
अगर केंद्र की भाजपा सरकार किसी भी मुसलमान जाति को ओबीसी में नहीं रखती है तब ऐसा करना पसमांदा मुसलमानों को लेकर भाजपा के...
क्या महाकुंभ न जाकर राहुल गांधी ने सामाजिक न्याय के प्रति अपनी पक्षधरता दर्शाई है?
गंगा में डुबकी न लगाकार आखिरकार राहुल गांधी ने ज़माने को खुल कर यह बताने की हिम्मत जुटा ही ली कि वे किस पाले...
यूपी : विधानसभा में उठा प्रांतीय विश्वविद्यालयों में दलित-बहुजन शिक्षकों के उत्पीड़न का सवाल
कुलपतियों की नियुक्ति में वर्ग विशेष के दबदबे पर सवाल उठाते हुए डॉ. संग्राम यादव ने कहा कि “विभिन्न राज्य विश्वविद्यालयों में एक ख़ास...
एससी, एसटी और ओबीसी से जुड़े आयोगों को लेकर केंद्र की नीयत में खोट : जी. करुणानिधि
सामान्य नीतिगत मामले हों या ओबीसी वर्ग की समस्याओं से जुडे मामले, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने प्रभावी ढंग से उनका प्रतिनिधित्व नहीं किया...
‘कुंभ खत्म हो गया है तो लग रहा है हमारे दुख कट गए हैं’
डेढ़ महीने तक चला कुंभ बीते 26 फरवरी, 2025 को संपन्न हो गया। इस दौरान असंगठित क्षेत्र के मजदूरों, जिनमें दिहाड़ी मजदूर से लेकर...