बहुजन साप्ताहिकी
राज्याधीन मेडिकल संस्थानों में अखिल भारतीय कोटे के तहत पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के अभ्यर्थियों को 27 फीसदी आरक्षण देने संबंधी केंंद्र सरकार के निर्णय पर संकट के बादल छाए हैं। दरअसल, बीते 29 जुलाई, 2021 को केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी किये जाने के बाद इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अनेक याचिकाएं दायर की गई हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई आगामी 7 अक्टूबर, 2021 को हाेनी है। इस संबंध में तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर मांग की है कि चूंकि इस मामले में राज्य शामिल हैं तो सभी राज्यों को अपना पक्ष रखने का अवसर मिलना चाहिए। डीएमके की ओर से सांसद आर एस भारती ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया और केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू को पत्र लिखकर केंद्र सरकार से उसके अपने निर्णय का बचाव करने की अपील की है। आर एस भारती ने दूरभाष पर बताया कि यह पत्र उन्होंने सरकार से यह अनुरोध करने के लिए लिखा है ताकि वह मामले की गंभीरता को समझे और ओबीसी के हितों की रक्षा करे।
झारखंड-उड़ीसा की सीमा पर आदिवासियों ने की सुरमी-दुरमी पुस्तकालय की शुरूआत
आगामी 3 अक्टूबर, 2021 को झारखंड और उड़ीसा की सीमा पर बसे एक गांव हरिबेड़ा में एक ऐसे पुस्तकालय का उद्घाटन होगा, जिसमें सरकारों की कोई भूमिका नहीं है। इस पुस्तकालय को सुरमी-दुरमी पुस्तकालय सह अध्ययन केंद्र का नाम दिया गया है। तकनीकी रूप से हरिबेड़ा झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के तांतनगर प्रखंड के कसेया पंचायत का हिस्सा है, लेकिन इस पुस्तकालय में झारखंड और उड़ीसा के सीमावर्ती इलाके के आदिवासी बच्चे पढ़ेंगे। इस पुस्तकालय का निर्माण ग्रामीणों ने स्वयं किया है। इसके लिए ग्रामीण सतीश बारी ने अपनी जमीन दान में दी है। वहीं ग्रामीणों ने चंदा कर आवश्यक धनराशि जमा किया तथा श्रमदान से पुस्तकालय के लिए भवन का निर्माण किया है। बताते चलें कि यह हो समुदाय बहुल इलाका है। हो समुदाय की परंपराओं में ‘सुरमी-दुरमी’ का उल्लेख है। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने श्रम से गांव में विशाल तालाब का निर्माण किया था ताकि सभी जीव-जंतू पानी पी सकें।
राजस्थान में आदिवासी युवक को जज बनाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने लगायी रोक
बीते 25 सितंबर, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के एक आदिवासी अभ्यर्थी को जूनियर डिविजन जज बनने से रोक दिया। यह मामला 2003 का है जब राजस्थान सरकार द्वारा जूनियर डिविजन जजों की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किए गये थे। इस मामले में कुल 12 अभ्यर्थियों के आवेदन पर विचार किया गया था। लेकिन एक आदिवासी युवक के आवेदन पर केवल इसलिए विचार नहीं किया गया क्योंकि उसके खिलाफ चार मुकदमे दर्ज हुए थे और वह भी तब जब उसने आवेदन फार्म भी नहीं भरा था। आवेदक ने राजस्थान हाई कोर्ट में याचिका दायर की तब वर्ष 2005 में हाई कोर्ट ने एक कमेटी का गठन किया था और बाद में कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद आवेदक के आवेदन को खारिज कर दिया गया। हालांकि आवेदक ने न्यायालय को यह जानकारी दी थी कि चार मुकदमों में से दो मुकदमे झूठे पाए गए थे तथा दो अन्य मुकदमे मामूली मारपीट के थे व समझौते के आधार पर कोर्ट द्वारा खारिज किए जा चुके थे।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के. एम. जोसेफ और न्यायाधीश पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ ने 25 सितंबर, 2021 को अपना फैसला देते हुए राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सर्वोच्च नैतिक आधार रखने वाले न्यायाधीश न्याय देने की व्यवस्था में जनता के विश्वास का निर्माण करने में लंबा सफर तय करते हैं और न्यायिक अधिकारी की साख और पृष्ठभूमि के बारे में आम आदमी की धारणा महत्वपूर्ण है। खंडपीठ ने कहा कि किसी भी स्तर पर न्यायिक अधिकारी के पद पर सबसे सटीक मानदंड होते हैं।
साक्षात्कार को लेकर सोशल मीडिया पर बवाल
हाल में घोषित यूपीएससी परीक्षा परिणामों में बिहार के शुभम कुमार ने पूरे देश में टॉप किया है। इसके साथ ही उन्हें प्राप्त अंकों को लेकर सोशल मीडिया पर बवाल छिड़ा है। स्थानीय अखबारों में प्रकाशित परिणामों में बताया गया है कि शुभम कुमार को लिखित परीक्षा में 878 अंक मिले जबकि साक्षात्कार में उन्हें 176 मिले। वहीं दूसरी स्थान पर रहनेवाली जागृति अवस्थी को लिखित परीक्षा में 859 तथा साक्षात्कार में 198 अंक मिले। फेसबुक पर उठ रहे सवालों में यूपीएससी पर सवाल उठाया गया है कि जातिगत भेदभाव के तहत दलित व पिछड़े वर्ग (शुभम कुमार ओबीसी समुदाय से आते हैं) के अभ्यर्थियों को साक्षात्कार में कम अंक दिए जाते हैं। जबकि सवर्ण जातिसूचक सरनेम वाले अभ्यर्थियों को अधिक अंक देकर आगे बढ़ाया जाता है।
(संपादन : अनिल)