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पेशाब कांड : पीड़ित आदिवासी से माफी मांगने का ब्राह्मणवादी तरीका अपनाते दिखे शिवराज सिंह चौहान

मुख्यमंत्री खड़े होकर अपने दाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली (कनिष्ठा) के ठीक पहले वाली उंगली (अनामिका) से दशमत के माथे पर पहले चंदन और फिर तिलक लगाते हैं। तिलक लगाने का यह ब्राह्मणवादी तरीका है। इसके बाद बारी आती है एक माला पहनाने की। इस पूरी प्रक्रिया में दशमत प्रतिमावत कुर्सी पर बैठे दिखते हैं

तारीख 6 जुलाई, 2023 और समय दोपहर सवा एक बजे। सोशल मीडिया के लोकप्रिय मंच ट्वीटर पर एक खबर ट्रेंड कर रही थी। यह एक खास हैशटैग से जुड़ा था– #नौटंकी। इस टैग के साथ देश भर से लोग मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के एक वीडियो (एशियन न्यूज इंटरनेशनल द्वारा जारी) को साझा कर रहे थे, जिसमें वह दशमत रावत नामक आदिवासी युवक का पांव धो रहे थे। दशमत मध्य प्रदेश के सीधी जिले का वही आदिवासी युवक है, जिसके ऊपर प्रवेश शुक्ला नामक एक भाजपाई कार्यकर्ता द्वारा पेशाब किए जाने का वीडियो गत 4 जुलाई को वायरल हुआ था। 

ट्वीटर पर लोग तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे थे। कइयों ने तो शिवराज सिंह चौहान के इस वीडियो को 2019 में लोकसभा चुनाव के ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कुंभ मेले के दौरान सफाईकर्मियों का पांव धोने से जोड़ा। इसके लिए दोनों तस्वीरों का कोलाज भी शेयर किया। 

हालांकि ट्वीटर पर यह जानकारी दी गई कि करीब दो घंटा पहले शिवराज सिंह चौहान के आधिकारिक ट्वीटर एकाउंट पर यह वीडियो इस संदेश के साथ साझा किया गया– “यह वीडियो मैं आपके साथ इसलिए साझा कर रहा हूं कि सब समझ लें कि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान है, तो जनता भगवान है। किसी के साथ भी अत्याचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। राज्य के हर नागरिक का सम्मान मेरा सम्मान है।”

गौर तलब है कि सीधी जिले से जुड़ी यह घटना वैसे तो एक साल पुरानी है, लेकिन इसका खुलासा बीते 26 जून को तब हुआ जब किसी ने यह वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया। यह वीडियो अचानक ही 4 जुलाई को ऐसा वायरल हुआ कि राज्य सरकार व भाजपा की चौतरफा आलोचना होने लगी। इसकी वजह भी थी। 

वजह यह कि यह एक प्रमाण था कि एक ब्राह्मण जाति का युवक नशे में एक आदिवासी युवक के ऊपर पेशाब कर रहा था। इसके अलावा यह बात भी साबित हो चुकी है कि आरोपी प्रवेश शुक्ला भाजपा का न केवल कार्यकर्ता था, बल्कि वह भाजपा विधायक का प्रतिनिधि भी है। कहा जा सकता है कि शिवराज सिंह चौहान के ऊपर दो तरह का दबाव था। एक तो सामाजिक दबाव कि एक सवर्ण जाति के युवक ने आदिवासी युवक के साथ मानवता को शर्मसार करनेवाला काम किया और दूसरा यह कि इससे भाजपा व आरएसएस के उस अभियान की पोल खुल जाती कि वे आदिवासियों को अपने जैसा हिंदू मानते हैं।

निस्संदेह यही दबाव रहा होगा, जिसके कारण शिवराज सिंह चौहान ने पीड़ित युवक दशमत को मुख्यमंत्री आवास बुलाकर उसे हिंदू धर्म के रीति-रिवाजों से आदर-सत्कार किया। यह आरएसएस के उस एजेंडे का हिस्सा भी है जिसके तहत वे आदिवासियों को हिंदू साबित करते हैं। वीडियो में यह दिखाया गया है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान देखने में नया शर्ट-पैंट पहने (करीने से बेल्ट लगाए हुए) एक युवक का हाथ पकड़कर मुख्यमंत्री आवास के भीतर ले जा रहे हैं।

शिवराज सिंह चौहान पीड़ित आदिवासी युवक का सम्मान करते हुए (तस्वीर : शिवराज सिंह चौहान के आधिकारिक ट्वीटर एकाउंट पर जारी पोस्ट से साभार)

एक हॉलनुमा कक्ष में इंदौर स्टेट की शासक रहीं अहिल्याबाई की प्रतिमा के ठीक नीचे एक कुर्सी रखी गई थी, जिसे विशेष कुर्सी की संज्ञा दी जा सकती है, जिसके ऊपर हाथ साफ करने के लिए सफेद रंग का तौलिया पहले से रखा था।

अगला दृश्य कुछ यूं है कि शिवराज सिंह चौहान दशमत को कुर्सी पर बैठने को कहते हैं और उसके बैठने के बाद ही स्वयं एक पीढ़ा (जिसके ऊपर मलमल का कपड़ा) पर बैठते हैं। उसी तरह का एक पीढ़ा उस कुर्सी के नीचे दिखता है, जिसके ऊपर दशमत बैठे दिखाई देते हैं। 

इस पूरे वीडियो में एक खास दृश्य तब सामने आता है जब मुख्यमंत्री आवास का एक कर्मी पीतल का परात मुख्यमंत्री को देता है और इसके बाद स्टील का एक जग जिसमें पानी रखा गया है। यहां यह सवाल उठाया जा सकता है कि जग स्टील का ही क्यों, पीतल या फिर चांदी का क्यों नहीं? खैर, मुख्यमंत्री दशमत को अपना पांव परात में रखने को कहते हैं और दशमत पहले इंकार करता है। सनद रहे कि इन दृश्यों में सिर्फ कैमरों के क्लिक की आवाजें आती हैं। दशमत के इंकार की आवाज सुनाई नहीं देती।

अगले दृश्य में शिवराज सिंह चौहान कुछ कहते हैं और दशमत अपना दायां पैर परात में रखता है। शिवराज सिंह चौहान उसका पैर धोते हैं और फिर इसी तरह बाएं पैर की बारी आती है। मुख्यमंत्री दशमत का पैर धोने के बाद उसी पानी को अपने माथे से लगाते हैं। बताते चलें कि हिंदू धर्म में ब्राह्मणों का पैर पूजने की परंपरा रही है। इस परंपरा के तहत पैर धोने के बाद उसी पानी को प्रसाद के रूप में ग्रहण भी किया जाता है, जिसके कारण उसे चरणामृत कहा जाता है। चूंकि दशमत आदिवासी है, इसलिए उसके पैर का धोवन चरणामृत कैसे हो सकता है, संभवत: यही कारण रहा कि शिवराज सिंह चौहान ने उसे पीया नहीं, केवल अपने माथे से लगाकर छोड़ दिया।

पैर धोने के इस दृश्य के बाद मुख्यमंत्री का सहयोगी उन्हें स्टील की थाली देता है, जिसमें कुछ फूल और अक्षत व चंदन आदि रखा गया है। मुख्यमंत्री खड़े होकर अपने दाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली (कनिष्ठा) के ठीक पहले वाली उंगली (अनामिका) से दशमत के माथे पर पहले चंदन और फिर तिलक लगाते हैं। तिलक लगाने का यह ब्राह्मणवादी तरीका है। इसके बाद बारी आती है एक माला पहनाने की। इस पूरी प्रक्रिया में दशमत प्रतिमावत कुर्सी पर बैठे दिखते हैं।

माला पहनाने के बाद मुख्यमंत्री एक सफेद चादर, जिसे पॉलिटिकल गलियारे में चादर ओढ़ाना भी कहा जाता  है, दशमत के कंधे पर ओढ़ा देते हैं और इस दरमियान दशमत केवल मुख्यमंत्री का चेहरा देखते हैं, जिसके ऊपर वह श्रद्धा नहीं है, जैसा अमूमन हिंदू धर्मावलंबी द्वारा किसी ब्राह्मण का आदर-सत्कार करते समय होती है।

अगले दृश्य में शिवराज सिंह चौहान दशमत के हाथ में एक श्रीफल रखते हैं। श्रीफल असल में नारियल ही होता है, जिसे हिंदू धर्म में नरबलि के विकल्प के रूप में मान लिया गया है। हिंदू धर्म के आधुनिक रीति-रिवाज में इसे समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है, जिसे दशहरा के माैके पर दुर्गा की स्तुति में हवन कुंड में जला दिया जाता है। इस तरह का श्रीफल ब्राह्मणों व हिंदू व्यापारियों के यहां आसानी से देखा जा सकता है। 

दशमत को श्रीफल देने के बाद मुख्यमंत्री उसे गणेश की एक प्रतिमा देते हैं। और फिर अगले ही दृश्य में वह शर्ट-पैंट का कपड़ा जैसा कुछ उसके हाथ पर रखते हैं।

वीडियो के अगले हिस्से में एक कुर्सी और लाई जाती है, जो कि विशेष कुर्सी नहीं है और निस्संदेह सामान्य कुर्सी कही जा सकती है। मुख्यमंत्री स्वयं साधारण कुर्सी पर बैठते हैं और इस तरह का भाव अघोषित रूप से व्यक्त करते हैं कि उन्होंने अपनी कुर्सी पर दशमत को जगह दी। ठीक इसी तरह का एक दृश्य तब सामने आया था जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2006 में दशरथ मांझी को अपनी कुर्सी पर बिठाया था। 

कुर्सी पर विराजमान शिवराज सिंह चौहान दशमत को अपने हाथों से मिठाई खिलाते हैं। इसके बाद वे दशमत से संवाद करते हैं और आचर्श्यजनक रूप से वीडियो में बातें साफ-साफ सुनाई देने लगती हैं। मुख्यमंत्री दशमत से उसके घर-परिवार के बारे में पूछते हैं। वे उससे पूछते हैं कि बच्चों को छात्रवृत्ति मिलती है या नहीं मिलती। दशमत इसका सकारात्मक जवाब देता है। इस बीच वे उससे यह भी पूछते हैं कि कोई और तरह की परेशानी तो नहीं। इसके जवाब में दशमत कहता है कि उसे कोई परेशानी नहीं है। इसके बाद मुख्यमंत्री यह पूछते हैं कि वह स्वयं क्या करता है। जवाब में दशमत उसे बताता है कि वह कुबेरी हाट में गल्ला (अनाज) ढोने का काम करता है। 

वीडियो के अंत में शिवराज सिंह चौहान उससे यह कहते हुए देखे जाते हैं– “मैंने वह वीडियो देखा। मुझे बहुत दुख हुआ। मुझे माफ कर दें। लोग मेरे लिए भगवान के समान हैं।”

और इस तरह यह वीडियो समाप्त हो जाता है और कई सवाल छोड़ जाता है। सबसे महत्वपूर्ण तो यह माफी मांगने का तरीका था या एक आदिवासी को हिंदू बनाने की कोशिश? निस्संदेह इस वीडियो के जरिए शिवराज सिंह चौहान यही संदेश देने की कोशिश करते हैं कि सभी आदिवासी हिंदू हैं। फिर बेशक कोई हिंदू उनके ऊपर पेशाब करने जैसा घिनौना अपराध कर दे। क्या यह केवल इसलिए कि इस साल के अंत में होनेवाले राज्य में विधानसभा चुनाव और अगले साल होनेवाले लोकसभा चुनााव में उनका वोट भी चाहिए?

बहरहाल, शिवराज सिंह चौहान द्वारा दशमत रावत के इस तथाकथित सम्मान पर अपनी प्रतिक्रिया में गोंड साहित्यकार उषाकिरण आत्राम का कहना है कि इस तरह से किसी आदिवासी का सम्मान नहीं किया जाता है। उसे गणेश की प्रतिमा देकर मुख्यमंत्री क्या साबित करना चाहते हैं। आदिवासी गणेश को अपना देवता नहीं मानते। दूसरी बात यह कि जिस आदमी के शरीर पर पेशाब कर दिया गया हो, क्या उसके मन की पीड़ा केवल पैर धोने से दूर हो जाएगी? रही बात क्षमा मांगने की तो मुख्यमंत्री और उस आरोपी युवक को पूरे आदिवासी समाज के सामने माफी मांगनी चाहिए थी।

(संपादन : राजन/अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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