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‘जाति नहीं, धर्म पूछा था’, किससे कह रहे हैं भाजपाई?

सुरक्षा चूक और आतंकवाद के खात्मे की दावे की पोल खुलने के बाद भाजपा और आरएसएस से जुड़े लोगों ने सामाजिक न्याय तथा धर्मनिरपेक्षता की राजनीति पर हमला बोल दिया। यह इसलिए क्योंकि सामाजिक न्याय की राजनीति ही हिंदुत्व की काट है। बता रहे हैं कुमार दिव्यम

बीते 22 अप्रैल, 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले में 26 नागरिकों की हत्या से कई गंभीर सवाल खड़े हुए। एक सवाल नोटबंदी से भी संबंधित है। नोटबंदी के समय केंद्र सरकार का दावा था कि इससे आतंकवाद पर चोट होगी। ऐसे ही धारा 370 की समाप्ति के समय केंद्र सरकार द्वारा दावे किए गए थे। आतंकी हमले में जिनकी मौत हुई, वे पर्यटक थे। मृतकों में पर्यटकों के अलावा एक स्थानीय कश्मीरी भी शामिल था।

आतंकी हमले के एक पखवाड़े के बाद भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चला कर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और पाकिस्तान में नौ आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करने की बात कही। उसके बाद सीमा पर तनावपूर्ण स्थिति बनी रही और दोनों तरफ से गोलीबारी हुई। कहने की आवश्यकता नहीं कि दोनों मुल्कों को नुकसान उठाना पड़ा, और जानें चली गईं। पाकिस्तानी गोलीबारी में पूंछ जिले में बड़ी संख्या में लोगों को विस्थापित होना पड़ा, जिनके बारे में कहीं कोई चर्चा नहीं की जा रही है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीजफायर करवाने का दावा किया। भारत और पाकिस्तान के बीच अमेरिकी हस्तक्षेप ने भारतीयों को गुस्से से भर दिया है और भारत की संप्रभुता को लेकर बहस छिड़ गई है। इसने नरेंद्र मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। लेकिन भाजपा के लिए भारत की संप्रभुता और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गिरती साख बचाने से ज्यादा बिहार विधानसभा चुनाव जीतना जरूरी है। उसके लिए सामाजिक न्याय की राजनीति को शिकस्त देना ज्यादा जरूरी कार्यभार है। इसलिए भाजपा अब तिरंगा यात्रा निकाल रही है और अपनी सरकार की विफलताओं को राष्ट्रवाद के शोर से ढंकने का प्रयास कर रही है।

दरअसल, तिरंगा यात्र के जरिए भाजपा और आरएसएस ने इस युद्ध की विषम स्थिति को भी अपनी वैचारिक स्वीकार्यता बढ़ाने की सुनियोजित कोशिश की है। आरएसएस ने अपने तंत्रों के जरिए राष्ट्रवाद की चेतना का प्रसार करने और अपनी राजनीति परोसने में कोई कसर नहीं छोड़ा। और तिरंगा यात्रा इसी अभियान का विस्तार है। असल में यह हिंदू राष्ट्र के हिंसक अभियान का आह्वान है।

भाजपा व आरएसएस ने प्रारंभ से ही इस पूरे मसले को मुस्लिम घृणा के प्रचार और सामाजिक न्याय की राजनीति पर हमले के लिए हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया। पहलगाम आतंकी हमले में आतंकवादियों द्वारा धर्म पूछकर मारने की चर्चा का बढ़ावा देते हुए भाजपा ने तुरंत पोस्टर जारी किया, जिस पर लिखा था– “याद रखना जाति नहीं, धर्म पूछा है”।

बिहार की राजधानी पटना में तिरंगा यात्रा निकालते उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी व अन्य

इस तरह बिहार चुनाव के लिए इस आपदा में भी भाजपा ने अवसर खोज निकाला। तमाम सोशल मीडिया पर भाजपा नेताओं तथा सवर्णवादी मीडिया ने सरकार से सवाल पूछने की जगह सामाजिक न्याय की राजनीति के खिलाफ़ मोर्चा खोल दिया और सामाजिक न्याय की राजनीति को विभाजन की राजनीति की संज्ञा दी जाने लगी तथा हिंदुओं के भीतर फूट डालने का तर्क चल पड़ा। नागरिकों की मौत पर विपक्ष से सवाल पूछे जाने लगे। धर्मनिरपेक्षता की बात करने वाले बुद्धिजीवियों को कटघरे में खड़ा किया जाने लगा, जो अब भी जारी है। सुरक्षा चूक और आतंकवाद के खात्मे की दावे की पोल खुलने के बाद भाजपा और आरएसएस से जुड़े लोगों ने सामाजिक न्याय तथा धर्मनिरपेक्षता की राजनीति पर हमला बोल दिया। यह इसलिए क्योंकि सामाजिक न्याय की राजनीति ही हिंदुत्व की काट है।

भाजपा का राष्ट्रवाद अल्पसंख्यकों के निशाने पर रखकर दलितों और पिछड़ों को उनके हक और अधिकार से वंचित करने का राजनीतिक अभियान है। तथाकथित ऊंची जाति के लोगों ने जो तथाकथित नीची जाति के साथ किया है, उसे ही वे मुसलमानों पर लागू करना चाह रहे हैं, और दलित-बहुजनों ने जो थोड़े बहुत अधिकार लड़कर हासिल किया है, उसे फिर से खत्म कर देना चाह रहे हैं।

युद्ध के विषम काल में सोशल मीडिया पर एक बात और सामने आई। दलितों और पिछड़ों के भीतर भी इस मौके पर राजनीतिक और वैचारिक अस्पष्टता देखने को मिली। भाजपा के बनाए गए युद्ध उन्माद के शिकार वामपंथी, समाजवादी और आंबेडकरवादी भी खूब हुए। युद्ध के पक्ष में खड़े और सरकार की विफलता को ढंकने के लिए मीडिया के द्वारा बनाए गए युद्ध और उन्माद की फर्जी स्थिति में फंसते नजर आए। शांति की बात करना उन्हें पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा होना लग रहा था। पहलगाम हमले की जांच की मांग, सुरक्षा चूक जैसे सवाल उन्हें भी गैरजरूरी लगने लगे थे। राष्ट्रवाद के नाम पर युद्ध के पक्ष में खड़े सामाजिक न्याय के लोगों को यह समझना पड़ेगा कि भाजपा के राष्ट्रवाद के खिलाफ़ वैचारिक लड़ाई सामाजिक न्याय का इस दौर में जरूरी कार्यभार है। भाजपा का राष्ट्रवाद पूंजी और ब्राह्मणवाद के गठजोड़ से चल रहा है। यह राष्ट्रवाद सामाजिक न्याय के खिलाफ़ है। यह जातिभेद के उन्मूलन के विषय में विमर्श नहीं करता। इसमें लैंगिक असमानता का विरोध नहीं है। इसके बरअक्स यह सवर्ण वर्चस्व वाले उग्र हिंदुत्व के विचार को स्थापित करने के लिए संघर्ष की बात करता है।

गौरतलब है कि सोशल मीडिया पर शांति की बात करने वाले लोगों को ट्रोल किया गया और सवाल पूछने वाले चैनलों को ब्लॉक कर दिया गया। यहां तक कि सीजफायर का ऐलान करनेवाले विदेश मंत्रालय के सचिव विक्रम मिसरी को भी ट्रोल किया गया। और मध्य प्रदेश सरकार के एक मंत्री ने भारतीय सेना की प्रवक्ता कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर घृणास्पद टिप्पणी की।

इन सबके परे यह एक सच्चाई कि युद्ध उन्माद से भाजपा और आरएसएस ने सामाजिक न्याय के सवालों को दरकिनार करने में सफलता हासिल कर लिया है। दलित-पिछड़ों में भी उसने अपनी राजनीतिक स्वीकृति बढ़ा ली है। लेकिन यह ध्यान देने की बात है कि राष्ट्रवाद का शिगूफा बिहार चुनाव में सामाजिक न्याय की राजनीति के खिलाफ़ लाया गया है। यह सामाजिक न्याय के विरोध में खड़ा है।

बहरहाल, भाजपा जाति उन्मूलन की जगह धर्म के नाम पर एकता की बात करती है। यह इसलिए कि भाजपा की सांप्रदायिक फासीवाद की जड़ें ब्राह्मणवाद में धंसी हुई हैं। सिर्फ हिंदू एकता की बात करने पर दलित-पिछड़ी जातियां कभी भी भाजपा के साथ नहीं आ सकती हैं। इसलिए राष्ट्रवाद का चोला पहना कर भाजपा उसे परोस रही है।

भाजपा सवर्ण सामंतों की सत्ता की पैरोकार है। ‘जाति नहीं, धर्म पूछा’ किसे संबोधित करके कहा जा रहा है? असलियत तो यही है कि यह दलितों, आदिवासियों, और पिछड़े तबके को संबोधित किया जा रहा है। खुद ही हिंदू समुदाय के लोगों को जातियों में बांटने वाले लोग जाति में नहीं बंटने की अपील कर रहे हैं। यह अपील उससे कर रहे हैं जो खुद जाति उन्मूलन के लिए संघर्ष कर रहे है। हाल ही में समाजवादी पार्टी के दलित सासंद के राणा सांगा के संबंध में दिए गए एक बयान पर जिस तरह से एक जाति की सेना ने खुलेआम हथियार लहराते हुए प्रदर्शन किया, उसके बारे में भाजपा की चुप्पी साफ तौर पर देखी गई। यह एक तरह की सहमति ही थी। ऐसे ही ‘फुले’ फिल्म के बारे में ब्राह्मणों ने जब आंख दिखाया तब भाजपा खामोश बनी रही। बिहार के आरा में सवर्ण जाति के भाजपा के नेता के द्वारा यादव और कुशवाहा जाति के लोगों को गोली मारी गईं। यह घटना इसका सबूत है कि आज भी इस मुल्क में जाति पूछकर लोगों को मारा जा रहा है। स्मरण रहे कि भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने जाति पूछकर नरसंहार करने वाले ब्रह्मेश्वर मुखिया की तुलना गांधी से की थी।

कुल मिलाकर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ़ नफरत के माहौल से जो हिंदू समाज तैयार हो रहा है, वह ब्राह्मणवादी समाज है। यह समाज मनुस्मृति का पैरोकार है। इस समाज में जाति आधारित शोषण से मुक्ति की जगह जाति-व्यवस्था को और मजबूती मिलेगी।

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

कुमार दिव्यम

लेखक पटना विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में स्नातकोत्तर छात्र व स्वतंत्र लेखक हैं

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