h n

आखिर क्यों नहीं लड़ा गया मुस्लिम साम्राज्य के खिलाफ कोई स्वतंत्रता संग्राम?

उन्नीसवीं शताब्दी में 1857 के विद्रोह को प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम कहने का क्या अर्थ है? यह उन मूर्खों का आलाप था, जो सिर्फ हिन्दुओं की स्वतंत्रता चाहते थे, और इस बात से उन्हें कोई मतलब नहीं था कि यदि 1857 का विद्रोह, यदि दुर्भाग्य से सफल हो जाता, तो अलग-अलग रियासतों की स्वतंत्र सत्ताएं उन्हीं व्यवस्थाओं को जीवित रखतीं, जिनमें अछूत को समस्त मानवाधिकारों से वंचित थे। बता रहे हैं कंवल भारती :

1857 का विद्रोह और बहुजन

1857 के गदर को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम बताया जाता है। यह मत भारत के ब्राह्मण वर्ग के विद्वानों का है, और उन लोगों का है जो हिन्दुत्ववादी थे और भारत में सामंती शासन चाहते थे। यह वह वर्ग था, जो अपनी धर्म-व्यवस्था पर मुग्ध था और उसमें कोई परिवर्तन नहीं चाहता था। मुसलमान शासकों ने अपने आठ सौ साल के साम्राज्य में ब्राह्मणों की धर्म-व्यवस्था को नहीं छुआ, क्योंकि हिन्दुओं को उनकी धर्म-व्यवस्था पर चलने की पूरी आजादी दी। इसलिये मुस्लिम साम्राज्य के खिलाफ एक भी स्वतंत्रता संग्राम भारत में नहीं लड़ा गया।

पूरा आर्टिकल यहां पढें :  आखिर क्यों नहीं लड़ा गया मुस्लिम साम्राज्य के खिलाफ कोई स्वतंत्रता संग्राम?

 

लेखक के बारे में

कंवल भारती

कंवल भारती (जन्म: फरवरी, 1953) प्रगतिशील आंबेडकरवादी चिंतक आज के सर्वाधिक चर्चित व सक्रिय लेखकों में से एक हैं। ‘दलित साहित्य की अवधारणा’, ‘स्वामी अछूतानंद हरिहर संचयिता’ आदि उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। उन्हें 1996 में डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार तथा 2001 में भीमरत्न पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

संबंधित आलेख

त्रिवेणी संघ के एजेंडे आज सेंटर स्टेज में हैं : महेंद्र सुमन
2005 में जब बिहार में नीतीश कुमार की जीत हुई थी तो ‘सामाजिक न्याय की मृत्यु’ विषयक लेख लिखे जाने लगे थे कि यह...
त्रिवेणी संघ, हिंदी पट्टी का पहला बहुजन संगठन, कायम है जिसके बिगुल की गूंज
बिहार के शाहाबाद जिले के करगहर में 30 मई, 1933 को गठित त्रिवेणी संघ के मूल में देशी साम्राज्यवादियों के धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक और...
त्रिवेणी संघ : पृष्ठभूमि, परिप्रेक्ष्य और वर्तमान
वंचित समुदायों की आज जवान हो रही पीढ़ी को यह जानकर कुछ हैरत तो होगी ही कि आज से सौ साल पहले उनके पूर्वजों...
एक नहीं, कई रामायण हैं देश में
रामायण पर ऐतिहासिक, मानवशास्त्रीय और साहित्यिक शोधों से साफ़ है कि इसके कई संस्करण हैं और यह भी कि भारत के आदिवासियों और महिलाओं...
यात्रा संस्मरण : जब मैं अशोक की पुत्री संघमित्रा की कर्मस्थली श्रीलंका पहुंचा
पर्यटन के दृष्टिकोण से एक पहाड़ी पर रावण का महल भी बता दिया गया है और लिख भी दिया गया है। वैसे ही अनुराधापुर...