h n

बिहार की इस दलित-बहुजन महिला रग्बी खिलाड़ी ने बढ़ाया देश का मान

बहुजन समाज की एक और बेटी स्वीटी ने देश का परचम पूरी दुनिया में फैलाया। उसे रग्बी इंटरनेशनल यंग प्लेयर ऑफ द ईयर का सम्मान दिया गया है। उन्होंने यह मुकाम किन हालातों में और कैसे हासिल किया है तथा उनके सपने क्या हैं, इस बारे में नवल किशोर कुमार ने दूरभाष पर उनसे खास बातचीत की

“मैं खेलना चाहती हूं। खूब नाम कमाना चाहती हूं और इतने पैसे कि मैं अपने माता-पिता को खुश रख सकूं। लेकिन यहां (बिहार) खेल का माहौल नहीं है। सरकार कोई सुविधा नहीं देती है। यहां तक कि ग्राउंड भी नहीं है जहां हम लड़कियां खेल सकें। मजबूरी में हमें एएनएस कॉलेज, बाढ़ (बिहार) के मैदान में खेलना पड़ता है, जहां आए दिन लफुए (मनचले) फब्तियां कसते हैं। वे हमारा मजाक उड़ाते हैं। लेकिन हमें उनकी फब्तियों की परवाह नहीं है। हमें तो देश के लिए खेलना है। अपने समाज के लिए खेलना है।” यह कहना है उस दलित बहुजन महिला रग्बी खिलाड़ी स्वीटी कुमारी की, जिसने पितृसत्ता व सामंती वर्चस्व वाले इलाके बाढ़ (पटना का एक अनुमंडल) में रहकर न केवल एक सपना देखा बल्कि उसे हकीकत भी बनाया। स्वीटी को इस वर्ष इंटरनेशनल यंग प्लेयर के खिताब से नवाजा गया है।

मल्लाह समाज की हैं स्वीटी

मल्लाह (अति पिछड़ा वर्ग) समाज की स्वीटी पूछने पर बताती हैं कि उनके पिता दिलीप कुमार चौधरी सहारा इंडिया में एजेंट हैं तथा उनकी मां पुष्पा देवी आंगनबाड़ी सेविका हैं। पांच बहनों और दो भाईयों में 19 वर्षीया स्वीटी अपने माता-पिता की पांचवीं संतान हैं। घर की हालत अच्छी नहीं है। किसी तरह उसके माता-पिता अपना और अपने बच्चों की परिवारिश कर पाते हैं। ऐसे माहौल में खेलने की प्रेरणा कैसे और कब मिली, यह पूछने पर स्वीटी ने बताया कि वह बचपन से ही दौड़ती थीं। स्कूल में होने वाले दौड़ प्रतियोगिताओं में वह हमेशा अव्वल आतीं। लेकिन तब यह विचार कभी नहीं आया कि खेलना भी है। लेकिन पिता दिलीप कुमार चौधरी हमेशा कहते कि तुम्हें अब और आगे खेलना चाहिए। वर्ष 2014 में अपने गांव नवादा में हुए एक प्रतियोगिता में जब स्वीटी ने 100 मीटर की दौड़ 11.58 सेकेंड में पूरा किया तब मौके पर मौजूद पंकज कुमार ज्योति जो रग्बी एसोसिएशन ऑफ बिहार के सचिव हैं, ने रग्बी खेलने को कहा।

अपने माता-पिता के साथ स्वीटी

टूट गई नाक, लेकिन नहीं टूटी हिम्मत

स्वीटी के मुताबिक, यहीं से शुरू हुआ रग्बी के प्रति जुनून। लेकिन स्वीटी को केवल दौड़ना आता था। थोड़े से प्रशिक्षण और नियमों की जानकारी के बाद स्वीटी ने दुबारा पीछे मुड़कर नहीं देखा। पहले राज्य स्तर पर खेला और फिर राष्ट्रीय स्तर पर। सोपान-दर-सोपान स्वीटी सफलता की ओर बढ़ती गईं। लेकिन 2016 में उन्हें बड़ा झटका लगा। जब मुंबई में कैंप के दौरान उनकी नाक टूट गई। यह कैंप पेरिस में होने वाले चैंपियनशिप के लिए था। सर्जरी के कारण घर वापस आना पड़ा। लेकिन स्वीटी ने हार नहीं मानी।

अमेरिकन कोच ने सिखाए गुर

वह बताती हैं कि 2017 में एक बार फिर उनका चयन राष्ट्रीय टीम में हुआ और दुबई में आयोजित प्रतियोगिता में उन्होंने देश को जीत दिलायी। उनकी तेजी और चपलता के कारण टीम के अन्य सदस्य उन्हें स्कोर मशीन के नाम से बुलाती हैं। स्वीटी बताती हैं कि अमेरिकन कोच माइक फ्राइडे ने उनकी बड़ी मदद की। उन्होंने गुर बताए कि कैसे बॉल को अधिक से अधिक समय तक अपने पास रखना है और कैसे आगे बढ़ना है।

रग्बी खेलेतीं स्वीटी कुमारी (बाएं)

सरकार से उम्मीद

बहरहाल, स्वीटी का कहना है कि बिहार में महिला खिलाड़ी हैं और सब अच्छी हैं। लेकिन उन्हें माहौल नहीं मिल रहा है। राज्य सरकार खेल के प्रति उदासीन है। उनका कहना है कि जैसे सरकार खेल कोटे के तहत खिलाड़ियों को नौकरी देती है, वैसे ही उसे भी नौकरी दे तो वह अपना खेल जारी रख सकती हैं। यहां तक कि उसे कोई स्पांसर भी मिल जाए तो उसे सहायता मिलेगी। इन विषमताओं के बावजूद स्वीटी अपने सपनों के प्रति कृतसंकल्प हैं। उनका कहना है कि विषमताओं पर विजय पाना ही तो विजय है।

(संपादन : अनिल/सिद्धार्थ)

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

संबंधित आलेख

जब राहुल गांधी हम सभी के बीच दिल्ली विश्वविद्यालय आए
बातचीत के दौरान राहुल गांधी ने विश्वविद्यालयों में दलित इतिहास, आदिवासी इतिहास, ओबीसी इतिहास को पढ़ाए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि 90...
प्रधानमंत्री के नए ‘डायलॉग’ का इंतजार कर रहा है बिहार!
बिहार भाजपा की परेशानी यह है कि आज की तारीख में ऐसा कोई नेता नहीं है जो चुनाव में पार्टी का नेतृत्व कर सके।...
कौन बैठे हैं उच्च न्यायालयों में शीर्ष पर? (संदर्भ पटना व झारखंड उच्च न्यायालय)
सवर्ण जातियों में सबसे श्रेष्ठ मानी जानेवाली ब्राह्मण जाति के जजों की पटना उच्च न्यायालय में हिस्सेदारी 30.55 प्रतिशत है। जबकि राज्य की आबादी...
क्यों दक्षिण भारत के उच्च न्यायालयों के अधिकांश जज ओबीसी, दलित और आदिवासी होते हैं तथा हिंदी पट्टी में द्विज-सवर्ण?
जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस खन्ना के कार्यकाल में देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में हुई जजों की नियुक्तियों में पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग,...
बिहार के गांवों में पति का प्रभुत्‍व और जाति की दबंगता दरकी, लेकिन खत्‍म नहीं हुई
रोहतास और औरंगाबाद जिले में सर्वेक्षण के मुताबिक, पिछले 35 वर्षों में ग्रामीण सत्‍ता में सवर्णों के आधिपत्‍य को यादव जाति ने चुनौती दी...