स्तूप के भीतर बुद्ध की भव्य प्रतिमा थी ही, लेकिन डॉ. आंबेडकर के स्मृति अवशेष देखकर लगा जैसे इतिहास सजीव हो गया हो। लोगों की श्रद्धा और उनकी आंखों में चमक देखकर मन भर आया। वहां ज्यादा देर रुकना संभव नहीं था। लेकिन वह क्षण अमूल्य था। पढ़ें, भंवर मेघवंशी का यह यात्रा वृत्तांत