सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में दलितों के घरों पर राजपूत समाज के गुंडों ने 5 मई 2017 को दिन में 10 बजे हमला किया था। लेकिन मैं वहां ग्राउंड रिपोर्टिंग के लिए 9 मई को पहुंचा। सोचा था हालात सामान्य हो चुके होंगे! लोगों का दर्द, गुस्सा और तकलीफ कम हुई होगी! प्रशासन के तरफ कोई उनकी मदद के लिए आया होगा, लेकिन मामला इसके उलट ही थे। मैं सबसे पहले सहारनपुर के जिला अस्पताल पहुंचा जहां 13 घायल दलित महिला और पुरुष अस्पताल में भर्ती थे। किसी के हाथ टूटे थे तो किसी का पैर। कुछ लोगों के सिर में दर्जनों टांके लगे हुए थे। घायलों को देखने के बाद मेरी आंखों के सामने वो तस्वीरें बनने लगी थी कि किस तरह 5 मई को हथियार के दम पर तांडव हुआ होगा।
महिला के स्तन काटने की कोशिश हुई
मैंने कई घायलों से बात की। श्याम सिंह नाम के एक बुजुर्ग के पास गया। उनके हाथ टूटे हुए थे। सिर पर टांके लगे थे। उनके अनुसार उनपर तलवार से हमला हुआ था। उन्होंने बताया – “हजारों लोग थे। पुलिस भी थी। लेकिन किसी ने जातीय हमलावरों को रोकने की कोशिश नहीं की।” मैं एक ऐसे शख्स के पास गया जिसकी पीठ पर तलवार से कटने के कई घाव थे। सिर में टांके लगे थे। उसने बताया – “मेरे पांच बच्चे हैं, जिसे बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी। किसी तरह बच्चे को बचाने में कामयाब रहा। लेकिन एक हाथ तोड़ दिया गया।” फिर मैंने एक घायल महिला से बात की, सिर पर टांके लगे थे। उसकी बातों को सुनकर दिमाग सुन्न हो गया। उसके बच्चे का गला जला हुआ था। उसके अनुसार उसपर तलवार से हमला हुआ था। उसने बताया – “जातीय गुंडों ने मेरा स्तन काटने की कोशिश की। किसी तरह खुद को बचा पाई लेकिन गुंडों ने हाथ काट दिए।
पुलिस को साथ लेकर गुंडे कर रहे थे हमला, महिलाओं से की बदसलूकी
अस्पताल परिसर में ही शब्बीरपुर गांव के एक दर्जन दलित युवा थे। वो सब किसी तरह घायलों की तीमारदारी में लगे थे। ये वो युवा थे जो हमले के समय जान
बचाकर किसी तरह वहां से भागने में कामयाब हुए थे। गांव के सरपंच के बेटे ने बताया – “मेरे पिता ने पुलिस को पहले ही खबर दी थी, लेकिन कोई बचाने नहीं आया। हमलावर पुलिस के साथ आए और सुबह दस बजे से शाम पांच बजे तक जमकर आगजनी की। घरों में तोड़फोड़ की। महिलाओं को पीटा और लूटपाट भी की। गांव के ज्यादातर युवक किसी तरह बचने में कामयाब रहे लेकिन हमलावरों ने महिलाओं से जमकर मार-पीट की।” एक लड़की ने बताया – “जातिवाद के जहर से लैस गुंडों ने घंटों महिलाओं से बदसलूकी करते रहे। गांव की दर्जनों लड़कियों को बंधक बनाकर रखा, मारपीट की। जय श्रीराम और आंबेडकर मुर्दाबाद के नारे लगवाए।”
घरों में आगजनी और लूटपाट
मैं शाम करीब 5 बजे शब्बीरपुर गांव पहुंचा। चारों तरफ गांव में सन्नाटा था। महिलाएं अपने टूटे दरवाजों के गेट पर बैठी थीं। गांव में कम ही मर्द थे, सिर्फ बुढ़े और बच्चे दिख रहे थे। पचास से साठ घर होने के बावजूद एक भी युवा नहीं थे। एक या दो युवा दिखे जो किसी दूसरे गांव से मदद के लिए आए थे। मैंने करीब 45 मिनट तक लगातार पूरे दलित मोहल्ले का जायजा लिया। फिर महिलाओं से बात करनी शुरू की जो डरानेवाली थी। महिलाओं ने जो कहा उसपर भरोसा नहीं हो रहा था। वह कह रही थीं – “पुलिस आगे-आगे चल रही थी। हमलावर पेट्रोल बम से घरों में आग लगा रहे थे। जानवरों के चारे तक में आग लगाई गई। हर घर में किमती सामान जैसे टीवी, गोदरेज, बाइक और बेड को तोड़ दिया गया था। यहां तक की अनाज को भी मिट्टी में मिला दिया।” हर घर में बेड, कपड़े और अन्य सामान जले हुए थे। मोहल्ले का कोई घर ऐसा नहीं था जिसका दरवाजा टूटा हुआ नहीं हो। बाइक को जानबूझकर डैमेज किया गया था। देखकर ऐसा लग रहा था मानों एकदम आराम से किसी कबाड़ी वाले ने अपने अनुसार पीट-पीटकर सामान को सहेजने की कोशिश की है। महिलाओं के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे। उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे। किसी के कमर पर तो किसी के हाथ पर तो किसी के छाती पर डंडे और तलवार से हमले के निशान थे। किसी के घर शादी के गहनों की लूट हुई थी तो किसी के पैसे तक लूट लिए गए थे। हर घर में टीवी को तोड़ दिया गया था।
जातिगत श्रेष्ठता बना हमले का कारण
जब मैंने गांववालों से हमले की वजह पूछा तो बताया गया – “दरअसल शब्बीरपुर का सरपंच दलित है। गांव की आबादी में राजपूतों की संख्या ज्यादा है। कई उम्मीदवार खड़े होने की वजह से दलित सरपंच चुनाव जीत गया। इसको लेकर काफी रंजिश थी। वहीं दलित समाज ने रविदास मंदिर बना लिया था। उसी परिसर में वह अंबेडकर की मूर्ति लगाना चाहते थे। इससे राजपूत गुस्से में थे। दलितों को सबक सिखाना चाहते थे। इसी वजह से दलितों पर हमला हुआ। महाराणा प्रताप जयंती तो सिर्फ बहाना था।”
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। डॉ. आम्बेडकर के बहुआयामी व्यक्तित्व व कृतित्व पर केंद्रित पुस्तक फारवर्ड प्रेस बुक्स से शीघ्र प्रकाश्य है। अपनी प्रति की अग्रिम बुकिंग के लिए फारवर्ड प्रेस बुक्स के वितरक द मार्जिनालाज्ड प्रकाशन, इग्नू रोड, दिल्ल से संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911फारवर्ड प्रेस बुक्स से संबंधित अन्य जानकारियों के लिए आप हमें मेल भी कर सकते हैं । ईमेल : info@forwardmagazine.in
Mai chahata Hu Ki dalit log sangathit hokar in raajpooto ka mukabala kiya jaye
ऐसा अब मुमकिन नहीं नजर आता है प्रशासन अब नजर रखे है जनाब
वैसे इस झगडे को टाल पाना मुश्किल काम रहा होगा और पुलिस की कार्यप्रणाली पे ऊँगली उठाना भी अनुचित रहेगा क्योंकि अब पुलिस को आम जनता कुछ समझती ही नहीं है सारे डर तो निकल गए हैं लोगों के दिमाग से पुलिस के प्रति जो होते थे और अब दलित अपने आप को सवर्ण से भी अगड़ी जाति का समझने लगे हैं जिससे इस झगडे को दंगे का रूप मिल गया जिसमें सबसे पहले एक सवर्ण जाति की हत्या दलितों द्वारा कर दी गयी तो बदले की भावना और भी विकराल ही गयी
अब बहुत ही जल्द ये हिन्दु धर्म अल्पसंख्यक होने वाला है। इनकी इस निचता और कायरता के लिए इन्हें शर्म आनी चाहिए। जिस हिन्दु धर्म में इतना जातीवाद हो एेसे धर्म में रहने का क्या फायदा जिसमें गाय को माता पर इंसान को इंसान नहीं समझता। थु है एेसे धर्म पर..
जय भीम जय भारत”🙏
Right ekdam sahi thu hai aise dharm pr jo insan ko insan nahi samjta isse achha to hamara dharm hai jo insaniyt ko janta hai
Bahujan hitay bahujan sukhay