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सहारनपुर कांड : स्थानीय प्रशासन का रुख

सहारनपुर की घटना पर जिले के डीएम और एसपी से संजीव चन्दन की बातचीत

सहारनपुर के एक गाँव में दलितों के घर जलाने के बाद दलित युवाओं के संगठन ‘भीम आर्मी’ द्वारा  प्रदर्शन के दौरान फैली हिंसा के घटनाक्रमों को प्रशासन अपने तरीके से हैंडल कर रहा है। जिला के डीएम नागेन्द्र प्रसाद सिंह और एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे के अपने-अपने तरीके हैं इनसे निपटने के। कलक्टर जहां सामाजिक रूप से संवेदनशील रुख ले रहे हैं वहीं एसएसपी का रुख पुलिसिया दवाब वाला है।

प्रस्तुत है दोनों से फोन पर हुई बातचीत के प्रमुख अंश :

डीएम से बातचीत

क्या आप बढ़ते टेंशन को भांप पा रहे हैं?

डीएम : मुझे लगता है कि युवक, चाहे किसी भी जाति के हैं, किसी भी धर्म के, उनका कॉनस्ट्रक्टिव इंगगेजमेंट कम है। बेरोजगारी काफी है। शिक्षित हैं, लेकिन काम नहीं है। दूसरे लोगों को लगता है कि हमारा कुछ छीन रहा है। इनका मनोविज्ञान आहत है। इसकी वजह से सोशल टेंशन हर जगह है हर जगह कनफ्लिक्ट है। नदर्न इंडिया में भी है। जब कोई घटना कहीं हो जाती है, किसी भी कारण से हो जाती है तो चर्चा शुरू हो जाती है, मोवलायाईजेशन करने का एक पॉइंट मिल जाता है।

नागेन्द्र प्रसाद सिंह

हालांकि मैं अभी आया हूँ, 10 दिन पहले मैं ग्रेटर नोएडा में था। मैं रोज सोसायटी के किसी न किसी स्टेक होल्डर के साथ मीटिंग कर रहा हूँ।  कभी प्राइमरी स्कूल के प्रिंसिपल से लेकर डिग्री कॉलेज के प्रिंसपल तक, इंटर कॉलेज, सीबीएससी स्कूल, प्रधान, पूर्व प्रधान, बीडीसी, जिला पंचायत, ऑल पार्टी मीटिंग, प्राइवेट डॉक्टर आदि का एक कैम्पेन शुरू किया है। मैंने पूरे मिशन के मोड में महापुरुषों को जातियों मे क्यों   सीमित कर रहे हो, 45-45 मिनट तक बात करता हूँ, लेक्चर देता हूँ, लोगों को समझता हूँ। लोग आज कल क्यों महापुरुषों को जातियों में बांट रहे हैं। महाराणा प्रताप कोई ठाकुरों के नहीं हैं और न अंबेडकर सिर्फ दलितों के।

संजीव चंदन : राजपूत रेजीमेंट बनने की कोई सूचना है आपके पास?

डीएम : बन क्या रहा है, एक आदमी है, वह कह रहा है कि भीम सेना है तो हमारी भी सेना होनी चाहिए

संजीव चंदन : वह आदमी क्या शेर सिंह राणा है?

डीएम : हाँ रुड़की से आया है वह यहाँ पर। हालांकि न ऐसा रेजिमेंट बना है और यहाँ के लोग न बनने देंगे। क्योंकि यहाँ जितने भी जिम्मेदार लोग हैं समाज के, सब से मेरी बात हो गई। सब इसके पक्ष में नहीं हैं।

संजीव चंदन : मेरी शेर सिंह राणा से बात हुई, वह तो पूरे हिन्दू फोल्ड में बात कर रहे हैं। एक तरफ हिन्दू फोल्ड में बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ राजपूत रेजिमेंट बना रहे हैं।

डीएम : संजीव जी, ये कन्फ्यूज्ड लोग हैं। इनको सोशायटी मे जब कोई स्टेटस नहीं मिलता है तो ऐसे ग्राउंड पर ही स्टेटस जेनेरेट करने की कोशिश करते हैं। वह फ्रंट पर तो आया ही नहीं कभी हमलोगों के सामने। लेकिन यह है कि नजर है इंटेलिजेंस की इनकी सारी गतिविधियों पर। अगर डिस्टर्ब करने की कोशिश करेंगे ये तो इनपर कार्यवाई की जाएगी। इंटेलिजेंस निगाह रखे हुए है, पुलिस निगाह रखे हुए है।

संजीव चंदन : एक दो चीजें प्राइमरी इन्फॉर्मेशन के तौर पर समझना चाह रहे थे, जैसे शब्बीरपुर में  हमलोगों ने देखा कि आग जो लगाई गई उसमें केमिकल का इस्तेमाल हुआ है। हो सकता है हमारी समझदारी का मसला हो लेकिन ऐसा लगा जैसे कि केमिकल का इस्तेमाल हुआ हो, एक और दूसरा कि मारे गये लड़के का पोस्टमार्टटम रिपोर्ट कहता है कि वह दम घुटने से मरा था- ये दोनो बात हम कंफर्म करना चाहेंगे।  

डीएम : ऐसा है न संजीव कि कोई कंक्लुसिव रीजन नहीं है। डाक्टर लोग कंक्लुसिव नहीं लिखते हैं, वे लोग संकेत बताते हैं। जैसे दम घुटना कई कारणों से हो सकता है, कोई गिर गया हो, उसके ऊपर चार लोग रौंद दिए हों, जब भीड़ भागी हो तो, तब भी दम घुट सकता है, और वो बहुत सारे कारण हैं, उस पर तो टिप्पणी तभी कर पाएंगे जब इन्वेस्टीगेशन हो जायेगा। हां प्राइमरली उन्होंने ऐसा लिखा है।

संजीव चंदन : और कोई चोट?

डीएम : चोट तो नाक पर थी उसकी।  कोई बड़ी चोट नहीं थी, जिससे कि डेथ का कारण हो। जैसे कोई टीपिकल इंजूरी बाहर से नहीं दिख रही थी।  उनका यह कहना है कि इंजूरी डेथ का एक कारण हो सकती है। एक कारण हो सकता है कि दम घुटा हो। हम कोई टिपण्णी मेडिकल पर नहीं कर सकते हैं। इन्वेस्टीगेशन तो पुलिस कर रही है ना। उस पर हम कोई ऑथेंटिक टिपण्णी नहीं कर सकते।

संजीव चंदन : ये केमिकल वाले प्रसंग में भी आप नहीं कह पाएंगे कुछ?

डीएम : इसके बारे में भी हम नहीं कह पाएंगे क्योंकि पुलिस जांच कर रही है। लेकिन वहां जो प्रत्यक्षदर्शी लोग थे, वे तो मोटरसाइकिल की बात  कर रहे थे। मैं आपको पूरी घटना बताता हूँ। पता नहीं आपको क्या मालूम है, लोगों ने क्या बताया है, लेकिन मैं आपको अपनी जानकारी बताता हूँ, दरअसल हुआ यह था कि शिमलाना, जो शब्बीरपुर से चार किलोमीटर दूर है वहां हमारे एसडीएम से एक अनुमति मिली थी एक सभा की। वहाँ कई गाँव के लोग इकट्ठा हुए थे, ऐसे आयोजनों में कई गाँव के लोग भाग लेने जाते हैं। इस गाँव के भी दस बारह लड़के एक डीजे के साथ वहां भाग लेने जा रहे थे।

तब वहाँ के प्रधान ने फोन किया एसडीएम को कि वे लोग डीजे बजा के नहीं जायें। एसडीएम ने फोन किया थाना प्रभारी को। थाना प्रभारी ने वहां जाकर डीजे को रुकवा दिया। डीजे वापस हो गया, लड़के आगे चले गए इन लोगों ने वहाँ से फोन कर दिया कुछ आगे जाकर सभा स्थल पर कि देखो हमारा अपमान किया, महाराणा का डीजे भी नहीं आने दिया। यहाँ से लगभग पचास लड़के मोटरसाइकिल पर थाना प्रभारी से लड़ने आये कि डीजे कैसे नहीं आने दिए। प्राइमरी जो शुरुआत रही होगी कि लोगों को ये लगा कि शायद ये अटैक करने आ रहे हैं। पहले चरण में तो उधर से पत्थर चल गए। थाना प्रभारी को भी लगा, उसकी जीप पर भी पत्थर लगा। थाना प्रभारी भी शेड्यूल्ड कास्ट था, लेकिन दलितों को नहीं मालूम था। वह लिखता था एन. पी. सिंह। शायद उनलोगों को यह लगा कि ठाकुर ही है ये, तो उन्होंने पत्थर मारा। थाना प्रभारी को भी लगा उसकी जीप पर भी लगा। और उसी में एक लड़के को भी लगा था, जिसकी मौत हुई है न बाद में। तो हमें लगता है कि जो पत्थर चला तो लड़के भागे, ऐसा ही प्रभारी बताता है, और ये लड़का गिरा। लोग इसके ऊपर से चढ़ कर चले गये, जो भागने वाले थे। दो लड़के बाद में इसे हॉस्पिटल लेते गये। हॉस्पिटल जाते हुए ही उसकी मौत हो गई। हॉस्पिटल तक 10 मिनट का रास्ता है। इसके बाद लड़कों लोगों ने फोन-वोन कर दिया कि दो मर गए, तीन मर गए-अफवाह फैलाया, कुछ तो सही ही था, कुछ ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर बोले। वहीं से, शिमलाना में चूकि फंक्शन था ही, वहां इकठ्ठे थे लोग, तो वहां से फिर इन लोगों ने अटैक किया, मैं तो तांडव कहूँगा, बहुत ही बुरा, निंदनीय है।

थाना प्रभारी ने शुरू में खदेड़ दिया, चले गए लोग उस समय। उसने इन्हें खदेड़ दिया था, पत्थर वालों को भी खदेड़ दिया था। उसने फोन कर दिया एसएसपी को कि सब ठीक है। लेकिन जब तक दुबारा ये लोग बीस पच्चीस मिनट बाद पहुँच गए। प्रभारी वहीँ था तब भी लेकिन। और थोड़ी बहुत तोड़ -फोड़ की थी वहां। उसे कॉंफिडेंट हो गया था कि वेचले गए सब। नालायक को यह अंदाजा नहीं था कि शिमलाना में कार्यक्रम है तो उकसा सकते हैं लोग। दिमाग नहीं लगा पाया। फिर वे लोग पहुँचने लगे, तब मुझे फोन किया। यहाँ  से पैतालीस मिनट का रास्ता  है।  मैं तुरंत गाड़ी में बैठा और एसएसपी को ले कर पहुँच गया। तब तक इन लोगों ने घर के आगे  भूसा-उसा में आग लगाया और घरों की ओर बढ़ गए थे। लेकिन वह तो ईश्वर की कृपा कहिये, संयोग कहिये की मैं पहुँच गया। फिर बिना हेलमेट के कूद गया और इसके बाद मैंने कहा कि आगे बढ़ोगे तो मैं शख्ती करूँगा। लाठी और गोली भी चल सकती है। फिर किसी तरह धकेल कर सौ मीटर बाहर कर दिया, फिर दो सौ मीटर।  इसके बाद हमने फायरब्रिगेड रोक रखा था, तो धक्का मार के, थोड़ा सा बल यूज़ कर के फायरब्रिगेड को आगे बढ़ाया।  ये जरुर था कि मैं मौके पर नहीं पहुँच गया होता, या 10 मिनट की देर हो जाती तो सच है कि ये सब घरों को जलाते अभी तो मान लो उस तरह से जला था-छप्पर जला या एक दो घरों की छत टूटी। इस तरह से जला नहीं।  हम अगर आधे घंटे लेट होते तो जिस तरह के थे वे, जिस तरह से धकेला था उन्हें, मुझे याद है चेहरा इन लोगों का, वे सही में घरों को जला देते।  

संजीव चंदन : तो आपको क्या प्रिप्लान लग रहा है सब। 

डीएम : सच बताऊँ संजीव प्राइमा फेशाई तो यह प्रिप्लैंड नहीं लगता है। लेकिन अब कहा भी नहीं जा सकता है, क्योकिं बहुत सारे लोग स्टेक होल्डर हैं पॉलिटिक्स के। कुछ लोग यह कहते हैं कि जब प्रधान ने मना किया डीजे बजाने को तो यह सब हुआ। वैसे बताऊँ मना करने को कुछ था भी नहीं। बस चार किलोमीटर दूर फंक्शन में अगर डीजे के साथ जा ही रहा था, तो निकल जाता दस पांच मिनट में।

संजीव चंदन : दलितों का कहना था कि जब उनके समय में डीजे का परमिशन नहीं था तो अब क्यों?

डीएम : उनका डीजे का थोड़े परमिशन नहीं मिला था। वे तो चाहते थे आंबेडकर की मूर्ति लगाना। हम तब नहीं थे यहाँ। मूर्ति लगाने पर  सुप्रीमकोर्ट ने रोक लगा रखी है। सुप्रीमकोर्ट ने कहा है कि सार्वजनिक जगहों पर मूर्तियाँ नहीं लग सकतीं। और कहीं लगेगी तो बिना गवर्नमेंट के परमिशन के नहीं लगेगी। उस समय उन लोगों ने कोशिश की थी पर प्रशासन ने मना किया था। सुप्रीमकोर्ट से इस समय सख्त ऑर्डर है कि इस तरह मूर्तियाँ मत लगाओ। तो इनको डाउट था कि यहाँ के ठाकुरों ने विरोध किया। दोनों में फिर भी डिफरेंस था भी, तटस्थ होकर देखता हूँ, तो अगर डीजे का मामला था तो ये कहते कि 10 मिनट में जाओ भाई। अगर महापुरुषों के प्रति इन लोगों के दिमाग में, दोनों के दिमाग की बात कर रहा हूँ सम्मान होता तो।

मैं कहता हूँ कि अपनी बिरादरी तक सीमित करके महापुरुषों का इज्जत नहीं, अपमान कर रहे हो।  …और आप इस आधार पर आपस में घृणा कर ये जो तांडव कर रहे हो, देश का नुकसान कर रहे हो। चाइना पाकिस्तान की दुश्मनी जैसा कर रहे हो। मैंने किसी तरह धिक्कार कर एक समिति बनवा दी हैं। एक-दो राउंड दोनो पक्षों की बात भी हो गई है। आप दो चार दिन में पूरी शांति देखेंगे।

संजीव चंदन : एक हो सकता है आपके लिए यह फर्स्ट इनफोर्मेसन हो, या आपके पास पहले से सूचना हो, घड्कौली से जब हम लोग आये, तो वहां पता चल रहा है कि जो बोर्ड का विवाद रहा है, साल भर पहले, जो काफी चर्चा में आया था, ‘द ग्रेट चमार बोर्ड’ उस बोर्ड को फिर से हटाने के लिए एक पंचायत हुई और यह कहा गया कि हटाइए नहीं तो हम हटा देंगे।  

डीएम : इस गाँव में नहीं हुई पंचायत, बहार हुई।  

संजीव चंदन : मैंने थानेदार से पूछा तो उन्होंने कहा कि हमरे पास कोई शिकायत नहीं थी।  

डीएम : नहीं-नहीं इन लोगों से ज्यादा हमें मालूम होता है। ये उस दिन पंचायत नहीं हुई। अलग से कुछ लोगों ने एसएसपी से और हमको बोला। लेकिन हमलोगों ने समझाया था कि ये सब चक्कर में मत पड़िये। कोई अपने को ग्रेट या कुछ भी कहते हैं तो क्या परेशानी है। अगर कोई अपने को ग्रेट कह रहा है तो क्या फर्क पड़ता है, इसमें आपको आपत्ति क्या है?

संजीव चंदन : लेकिन विवाद का एक माहौल बन रहा है। आपको हमारी शुभकामनायें होंगी। आप उसको ठीक कर लें।  

अगर विवाद का माहौल नहीं होता तो मैं दस दिनों से दस-बारह घंटों से कम्युनिटी सौहार्द के लिए काम नहीं करता।

संजीव चंदन : एक और सवाल जो आपके शहर से लगा हुआ है सड़क दुधौली। 

सड़कदुधौली के बा रे में फ्रेंकली बताऊँ तो पुराणी घटना हुई, उसके बारे में मैं उतना तो नहीं जनता हूँ पर कार्यवाइयाँ हुई थी, वे जेल में ही हैं। वहां भी दलित और मुस्लिम में आपस में मीटिंग कराया था उनका आपस में कोई विवाद नहीं है।

संजीव चंदन : लोग शब्बीरपुर गाँव में तो बैठकें करने की तैयारी में हैं ।

डीएम : मैंने पहल की थी। मैंने ही भेजा था। हमने कहा कि भाई जो गलती करे उसपर कार्यवाई हो और शेष लोग आपस में बैठ के, एक गाँव में रहते हैं, आपस में संवाद करें। उस गाँव में मैं चार बार जा चुका हूँ घर-घर घुमा हूँ। मैंने 79 परिवारों को खाने का पैकेट दिलाया था, एक-एक लाख रूपया स्वीकृत किया है पीड़ित परिवारों के लिए। दरअसल वहाँ फायनांशियल कम भावनात्मक लॉस ज्यादा है। वास्तव में उन्होंने अपमान ज्यादा किया, तांडव ज्यादा किया। अख़लाक़ का जब मामला आया था तो उसको मैंने ही डील किया था। मीडिया के लोग जान रहे होंगे, मैं सोशल कंफ्लिक्ट के बारे में सेंसिटिव रहता हूँ मुझे नहीं लगता कि पुलिस ही आख़िरी समाधान है। मुझे लगता है कि अलग-अलग सामाजिक समूहों के बीच की केमिस्ट्री को मजबूत करना ही इसका समाधान है।

संजीव चंदन : लेकिन यह तो समता के आधार पर होगा न?

डीएम : समता के साथ ही कर रहा हूँ मैं और कैसे करेंगे हैंडल!

संजीव चंदन : हमारी शुभकामनायें। अभी तो लगातार चीजें जिस तरह से हो रही हैं, सत्ता बदलने के बाद भी, कुछ- कुछ असर आता है न, हो सकता है एक असर उसका भी हो।

डीएम : नहीं, वो जो तलवार लेकर घूमते थे न, मैंने वो सब बंद करा दिया है। ये जो तलवार ले कर घूमते थे लोग, वे आइडेंटीफाई हो गये हैं। उनमे से दस गिरफ्तार भी हो गए हैं, बाकी भी गिरफ्तार हो जायेंगे। और मैं रिटेन ऑर्डर दिया है कि कोई भी दिखता है तलवार के साथ तो उसे बंद करो आर्म्स एक्ट के साथ, मैंने क्लियर ऑर्डर कर रखा है।

एसएसपी से बातचीत

संजीव चंदन : शब्बीरपुर में जो आग लगी है क्या उसमें किसी केमिकल का इस्तेमाल हुआ है?

कोई भी आग, मतलब भूसे और कंडे की आग, अगर चौबीस घंटे तक न भी बुझाई गई हो तो बुझ जाती है। वो गाँव है, मैं भी गाँव का ही रहने वाला हूँ। गाँव में कच्चे घर होते हैं, छप्पर के नीचे खाना बनता है। गाँव में प्रतिदिन कूड़े भी जलाये जाते हैं। पांच तक के धुंए आपको अठारह-उन्नीस तक नहीं दिखेंगे।

सुभाष चंद्र दुबे

संजीव चंदन : नहीं मैं तो केमिकल के दाग के बारे में पूछ रहा हूँ

एसपी : वह तो धुंआ हो सकता है। मान लीजिये किसी दीवाल पर कोई जलने का दाग है और आपने दुबारा चूना नहीं लगाया तो पांच साल तक बना रहेगा कालापन।

संजीव चंदन : नहीं हमें तो लगा कि। 

एसपी : नहीं ऐसा कुछ नहीं है यह पूरी तरह हैपोथेटिकल चीज है। शब्बीरपुर तो हम 7 बार गये हैं 5 से 12 तक।

संजीव चंदन : नहीं मैं तो धुंए की बात नहीं कर रहा हमें लगा कि पेट्रोल या डीजल की जगह किसी केमिकल का

एसपी : नहीं ऐसा कुछ नहीं है।

संजीव चंदन : पोस्टमार्टम रिपोर्ट क्या कहती है, एक मौत को लेकर?

एसपी : दम घुटने से मौत हुई है। बाकी उसे चोट है सर पर, लेकिन उसे मृत्यू का कारण नहीं माना गया है, कारण दम घुटना माना गया है।

संजीव चंदन : घडकौली के बारे में क्या रिपोर्ट है आपको? वहाँ जो ‘द ग्रेट चमार बोर्ड’ है उसे हटाने को लेकर कोई धमकी दी गई है क्या?

एसपी : कुछ भी लगा लें, द ग्रेट चमार लगा लें, द ग्रेट पंडित लगा लें, द ग्रेट राजपूत लगा लें, क्या फर्क पड़ता है। वहाँ जब विवाद हुआ था तो इसी आदमी ने ( वे चन्द्रशेखर की बात कर रहे हैं) बाबा साहब अम्बेडकर की प्रतीमा पर खुद कालिख लगाई थी और सारा हंगामा कराया था, इंटेलिजेंस की रिपोर्ट मौजूद है। ये केवल उसका जो अपना शातिर दिमाग है उसी की उपज है। हिंसा-प्रतिहिंसा उसी का खुराफात है।

संजीव चंदन : आप चंद्रेशेखर की बात कर रहे हैं?

एसपी : हाँ, और किसी को क्या मतलब है।

संजीव चंदन : अभी तो आप काफी तनाव में होंगे 21 तारीख को जंतर-मंतर पर चन्द्रशेखर की सभा है।

एसपी : नहीं तनाव में क्या होंगे? क्या होगा ? होना क्या है। मुट्ठी भर लोग भी सहारनपुर से नहीं जा रहे हैं। सारी राजनीतिक पार्टियों ने पल्ला झाड लिया है। बीएसपी ने बयान दिया है कि ऐसे अराजक तत्वों से हमारा कोई लेना-देना नहीं है। यह न कोई रजिस्टर्ड संगठन है, न तो इसका कहीं पेपर में या कहीं अस्तित्व है। ऐसे आदमी को लेकर तनाव क्यों? हमलोगों ने वेलफेयर कमिटी बनवा रखी है। एक गाँव का तनाव दूसरे गाँव में नहीं फैलने दिया क्या यह हमारी उपलब्धि नहीं है।

संजीव चंदन : हालांकि कई गांवों में तनाव तो है

एसपी : हाँ, हमने उसे फैलने नहीं दिया। जब तक ऐसा एलीमेंट बाहर है, जो न्यूसेंस बना सकता है, वह अंदर चला जाएगा, तनाव अपने आप खत्म हो जाएगा।


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

संजीव चन्दन

संजीव चंदन (25 नवंबर 1977) : प्रकाशन संस्था व समाजकर्मी समूह ‘द मार्जनालाइज्ड’ के प्रमुख संजीव चंदन चर्चित पत्रिका ‘स्त्रीकाल’(अनियतकालीन व वेबपोर्टल) के संपादक भी हैं। श्री चंदन अपने स्त्रीवादी-आंबेडकरवादी लेखन के लिए जाने जाते हैं। स्त्री मुद्दों पर उनके द्वारा संपादित पुस्तक ‘चौखट पर स्त्री (2014) प्रकाशित है तथा उनका कहानी संग्रह ‘546वीं सीट की स्त्री’ प्रकाश्य है। संपर्क : themarginalised@gmail.com

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