बीते 30 अप्रैल, 2025 को केंद्रीय मंत्रिपरिषद द्वारा जातिगत जनगणना की मंजूरी दिए जाने के बाद गत 2 मई, 2025 को नई दिल्ली के 24 अकबर रोड स्थित कांग्रेस के राष्ट्रीय मुख्यालय में कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति की विशेष बैठक आहूत थी। इस बैठक की गहमागहमी के बीच कांग्रेस के ओबीसी प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल जयहिंद ने इस मसले पर फारवर्ड प्रेस से विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत है इसका संपादित अंश
जातिगत जनगणना के मामले को लेकर कांग्रेस की एक बैठक हुई। इस बैठक के फलाफल के बारे में बताएं।
हमारे माननीय राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे जी के नेतृत्व में केंद्रीय कार्यसमिति की बैठक हुई। इस बैठक में जातिगत जनगणना के मसले पर विस्तार से चर्चा की गई। बैठक में एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को जातिगत जनगणना के लिए तुरंत आवश्यक वित्तीय प्रावधान करने, जनगणना की पद्धति, इसके प्रत्येक चरण – प्रश्नावली तैयार करने से लेकर आंकड़ों के संकलन तक – की समय सीमा घोषित करने की मांग की गई। इस बैठक में संविधान रक्षक राहुल गांधी भी मौजूद रहे। बैठक में जातिगत जनगणना के लिए उनके द्वारा चलाए गए राष्ट्रीय स्तरीय अभियान की सराहना की गई। इस बैठक में कहा गया कि तेलंगाना में किए गए जातिगत सर्वेक्षण को केंद्र सरकार मॉडल के रूप में अपनाए तथा सभी राजनीतिक दलों को केंद्र सरकार विश्वास में ले।
भाजपा या एनडीए के जो नेता पहले जातिगत जनगणना का विरोध कर रहे थे, अब इसके पक्ष में आ गए हैं। वे इसे सरकार का मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं। कहा जा रहा है कि बिहार के चुनाव में इसका असर पड़ेगा। क्या आज की बैठक में इस बात की भी चर्चा हुई? और यह भी कि कांग्रेस इस बारे में क्या विचार रखती है?
देखिए नवल जी, सिम्पल सी बात है। कांग्रेस के लिए यह देश बनाने का विषय है। देश भर में हमारे कई सारे संविधान सम्मेलन हुए। हर सम्मेलन में राहुल जी जातिगत आरक्षण की आवश्यकता को पुरजोर तरीके से रखा। हालांकि पार्टी के कुछ नेता उनको सलाह भी देते थे कि इससे राजनीतिक नुकसान हो जाएगा। लेकिन राहुल जी कहते थे कि इससे राजनीतिक नफा-नुकसान होगा, मेरे लिए यह महत्वपूर्ण नहीं है। मेरे लिए यह वह आवश्यकता है, जिससे यह देश बनेगा। बाबा साहब ने जो प्रबुद्ध भारत का सपना देखा था, जातिगत आरक्षण उसकी तरफ देश को लेकर जाता है। मैं इसमें लगा रहूंगा। यह विचार की बात है। भाजपा के लिए जातिगत जनगणना विचार की बात नहीं है। यह पहले कभी भी भाजपा और उससे संबंधित संगठनों के लिए महत्वपूर्ण नहीं रहा। वे समता के विरोधी रहे। इतिहास गवाह है कि बाबा साहब ने देश का संविधान 26 नवंबर, 1949 को प्रस्तुत कर दिया था। वह लागू तो दो महीने के बाद 26 जनवरी, 1950 को हुआ। लेकिन इसके पहले ही 26 नवंबर, 1949 को स्वीकृति मिलने के दो-तीन दिनों के बाद आरएसएस के मुखपत्र ‘ऑर्गेनाइजर’ में कहा गया कि इसमें तो मनुस्मृति है ही नहीं। तब से लेकर अब तक वो चाहते हैं कि मनुस्मृति की तरह से संविधान बने। इसलिए मैं कहता हूं कि जातिगत जनगणना का सवाल, जिससे कि इस देश के बहुसंख्यक समाज को उसका हक मिलेगा, भाजपा के लिए वैचारिक नहीं, बल्कि चुनावी प्रश्न है।
अब देखिए कि कई सारी बातें सामने आ रही हैं। कहा जा रहा है कि आईबी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ओबीसी, एससी और एसटी इस जाति जनगणना के कारण राहुल गांधी जी के साथ लामबंद होना शुरू हो गए हैं। मोदी जी की मुलाकात आरएसएस के सरसंघचालक जी से हुई। उन्होंने भी कुछ संकेत दिया होगा कि उनकी शाखाओं से क्या रिपोर्टें आ रही हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि मोदी सरकार का यह फैसला राजनीतिक फैसला है। उन्हें डर है कि यदि यह नहीं किया गया तो उन्हें नुकसान हो जाएगा।
जबकि कांग्रेस के लिए, खरगे जी के लिए, राहुल जी के लिए यह सैद्धांतिक निर्णय है। जब देश आजादी की लड़ाई लड़ रहा था तो कुछ लोग रायबहादुर बनने में खुश थे। उनको वहां फायदा नजर आ रहा था तो उसके लिए जुगाड़ बैठा रहे थे। तो कुछ लाठियां खा रहे थे, उन्होंने फांसी का फंदा चूमा। यह उनके लिए विचार की बात थी। यहां भी लगभग वही चीज है। दो विचारधाराएं हैं। पहली समतावादी, जिसकी बात हमारा संविधान करता है। दूसरी विचारधारा है विषमतावादी, जो समाज में जन्म के आधार पर ऊंच-नीच करता है। चंद मुट्ठीभर लोगों के हाथ में सारा पैसा है। जैसे कि अडानी और अंबानी। उनके लिए व्यवस्था बना दी जाती है। तो यह दो विचारधाराओं का टकराव है। हमारे लिए चुनावी बात नहीं, हमारे लिए विचार की बात है। सैद्धांतिक बात है। प्रबुद्ध भारत को बनाने की बात है।
इस पूरे मामले में यह साफ दिखा है कि इंडिया गठबंधन के सभी घटक दल श्रेय लेने की होड़ में हैं। यह अंतरविरोध क्यों है?
देखिए, यह राजनीति है। सभी श्रेय लेने की होड़ करते हैं। इसमें कोई गलत बात नहीं है। देखिए इंडिया गठबंधन के लोग तो इस मुद्दे के पक्ष में प्रारंभ से रहे। मोदी जी और उनके सहयोगी जो कल तक तो यह कह रहे थे कि जाति तो होती नहीं है, सिर्फ किसान, जवान और महिला और गरीब होते हैं। वे यह भी कह रहे थे कि जाति की जो बात करता है, वह पापी है, वह अर्बन नक्सल है। आज वे श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हैं। इसलिए कहता हूं कि यह राजनीति है। श्रेय लेने की कोशिश करने में कोई बुराई नहीं है।
एक बड़ा सवाल अति पिछड़ी जातियों का है, जिसमें पसमांदा मुसलमान भी शामिल हैं। इनके संबंध में कांग्रेस की सोच क्या है?
आप जानते हैं कि कांग्रेस पिछले एक साल से देश के कोने-कोने में संविधान सम्मेलन कर रही है। बिहार में गत 18 जनवरी को, तब तक मैं कांग्रेस में नहीं था, संविधान सम्मेलन किया गया। उसमें चर्चा के लिए अलग-अलग पैनल डिस्कसन कराते हैं। उसमें एक पैनल डिस्कसन अतिपिछड़ा वर्ग के हक-हुकूक पर केंद्रित था। मैंने राहुल जी से अनुरोध किया कि यदि आप थोड़ा पहले आएंगे तो अतिपिछड़ाें से जुड़े मुद्दों व उनकी समस्याओं आदि के बारे में सीधे अतिपिछड़ा समाज के लोगों से सुन सकेंगे। वैसे तो आमतौर पर होता है कि नेता आते ही सीधे स्टेज पर जाते हैं। लेकिन मैंने कहा– नहीं। मेरा निवेदन है कि आप श्रोताओं के बीच में बैठकर चर्चा सुने। मेरे इस अनुरोध को राहुल जी ने सम्मानपूर्वक स्वीकार किया। हालांकि उस समय उन्हें बुखार था और गला भी बैठा हुआ था। फिर भी वे श्रोताओं के बीच में पौन घंटे तक बैठे रहे और चर्चा सुनी। वहां स्टेज पर अतिपिछड़े के मुद्दे पर चर्चा हुई। वहां अभिव्यक्ति की पूर्ण आजादी थी। एक व्यक्ति ने खुल्मखुल्ला आकर बोल दिया कि आप कहते हैं जितनी ज्यादा संख्या हो, उतनी हिस्सेदारी होनी चाहिए। लेकिन यहां बिहार कांग्रेस में एक जाति की इतनी ज्यादा हिस्सेदारी है, जितनी उसकी आबादी भी नहीं है। उस दिन से लेकर आज तक लगातार हम यह कोशिश कर रहे हैं कि संगठन से लेकर विचार-विमर्श तक में हम अपने कहे को पूरा करें। अभी हाल ही में हमने अतिपिछड़ा समाज के महानायकों को याद करने के लिए पटना में कार्यक्रम किया। उसमें भी राहुल जी मौजूद रहे। उसमें नोनिया समाज के लोग बहुत अधिक संख्या में जुड़े थे। हमने वहां अमर शहीद बुद्धु नोनिया जी को याद किया। ऐसे ही हमने अमर शहीद रामचंद्र प्रजापति जी की कुर्बानी को याद किया जो 1942 के आंदोलन में शहीद हो गए थे। उस आयोजन में हमारे साथ प्रजापति समाज के हमारे बहुत साथी थे। कहार (चंद्रवंशी) समाज के लोग थे। आप पता कीजिए, आपके पास तो सोर्सेज होंगे। पिछले तीन महीने से पटना के सदाकत आश्रम में रोजाना मेला लगा रहता है। वहां जो भीड़ है, उसमें 80 प्रतिशत लोग अतिपिछड़े वर्ग से हैं। देखिए क्या है कि अब दरवाजे खुल गए हैं। नए अध्यक्ष माननीय राजेश राम जी के नेतृत्व में अतिपिछड़े बेधड़क शामिल हो रहे हैं। उन्हें लगता है कि अपना ही राज आ गया। तो इस तरह से भाजपा गठबंधन की राजनीतिक जमीन बिहार में खिसक रही है।

कांग्रेस में यह जो बदलाव आया है, वह बिहार तक ही सीमित रहेगा या पूरे देश में?
देखिए, कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है। जो बदलाव हो रहे हैं, वे क्षेत्रीय बदलाव नहीं हैं। लोग देख रहे हैं कि राहुल जी बेधड़क मनुवाद के खिलाफ बोल रहे हैं, जातिभेद के खिलाफ बोल रहे हैं, पूंजीवाद के खिलाफ बोल रहे हैं। अभी क्या है कि बोलनेवाले के खिलाफ यह जो मनुवादी सरकारी व्यवस्था है, ईडी के मुकदमे लाद देती है। सीबीआई को पीछे लगा देती है। और नतीजा यह हुआ कि बहुत सारे नेता जो सामाजिक न्याय की बात शेर की तरह दहाड़ कर किया करते थे, वे आज डर कर अपने घरों में बैठ गए हैं। उन्होंने बीस-बीस फीट ऊंची चारदिवारी करा दी। मनुवादी व्यवस्था से लड़ना इतना आसान नहीं है। राहुल जी लड़ रहे हैं और जीत रहे हैं। यह सबसे बड़ी बात है।
पसमांदा समाज के बारे में कांग्रेस के रूख में क्या बदलाव आया है?
राहुल जी से प्रभावित होकर हमारे साथी अली अनवर अंसारी, जो कि पसमांदा आंदोलन के पायनियर हैं, ने आगे बढ़कर कांग्रेस की सदस्यता ली। पसमांदा के सवाल पर उनकी एक ऐतिहासिक किताब है– ‘मसावात की जंग’। उससे पहले रांची में आयोजित हमारे संविधान सम्मेलन में वे आए थे। उस समय तो हमारा यह आयोजन गैर-राजनीतिक था। आयोजन के बाद उन्होंने कहा कि मैं कांग्रेस ज्वाइन करूंगा और सप्ताह भर के भीतर 25 जनवरी को उन्होंने सदस्यता ले ली। अभी बिहार चुनाव को लेकर जो हमारा घोषणापत्र बन रहा है, वे इसकी समिति के प्रमुख सदस्य हैं। अब वे घोषणापत्र बना रहे हैं। जाहिर तौर पर पसमांदा समुदाय के सवालों को उनसे बेहतर कौन जानता होगा। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सीटी के समाजविज्ञानी प्रोफेसर खालिद अली अंसारी हमसे जुड़े हुए हैं।
यह तो दो व्यक्तियों की बात हो गई। पसमांदा समाज के लोग हैं, उनको कांग्रेस अपने संगठनात्मक ढांचे में लेने का प्रयास कर रही है?
देखिए जिन्हें अति पिछड़ा कहा जाता है, बिहार में उनकी आबादी करीब 36 प्रतिशत है। इनमें 12 प्रतिशत पसमांदा है। शेष 24 प्रतिशत पिछड़े हिंदू हैं। हम ईबीसी को प्राथमिकता दे रहे हैं तो इसमें पसमांदा भी शामिल हैं। बहुत जल्दी बिहार में 10-15 दिनों में सम्मेलन होने वाला है। यह इन्हीं समुदायों पर केंद्रित होगा। मुख्य बात यह है कि सबसे ज्यादा अन्याय भी अतिपिछड़ा समुदाय के लोगों के साथ हुआ है तो सबसे ज्यादा फोकस भी उन पर होना चाहिए। इनकी आबादी बहुत है, लेकिन वह फैली हुई है। तो उनको जो राजनीतिक भागीदारी मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिली है। कांग्रेस उनके साथ बातचीत कर रही है। उन्हें अधिक से अधिक भागीदारी कैसे मिले, इसके भी तरीके ढूढ़े जा रहे है। देखिए यह सिंगल डायमेंसनल नजरिया नहीं है कि विधायक बन जाएं या मंत्री बन जाएं। राहुल जी कहते हैं कि जीवन के हर क्षेत्र में इनको भागीदारी मिलनी चाहिए। वे चिंतित रहते हैं कि ये कारपोरेट में क्यों शामिल नहीं हैं।
लेकिन कारपोरेट सेक्टर या कहिए कि प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण का प्रावधान नहीं है। क्या कांग्रेस यह मांग भी उठाएगी?
प्राइवेट सेक्टर तो है ही नहीं इस देश में। यहां तो मनु सेक्टर है। बहुत सिंपल वर्ड है प्राइवेट सेक्टर। असल में यह मनु सेक्टर है। जब इसमें सौ प्रतिशत सवर्ण समाज के लोग हैं तो इस सेक्टर को प्राइवेट सेक्टर कहकर आप गलत नाम दे रहे हैं। इसे मनु सेक्टर नहीं रहने देना है। भारत सेक्टर बनाना है। भारत की जो जनसांख्यिकी है, वह इसमें नजर आनी चाहिए। यहां तक कि उच्च न्यायपालिका में भी। देश को आजाद हुए 77 साल हो गए, तबसे सुप्रीम कोर्ट में 600-700 जज बने, लेकिन आप देखिए कि मैं ओबीसी के जिस समाज से आता हूं – जिसकी आबादी कम नहीं है – उस समाज का एक भी व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट का जज नहीं बना। एक खास वर्ग का कब्जा है। तो यह जो हेजोमोनी है, खत्म होनी चाहिए। भागीदारी सबकी होनी चाहिए। यह राहुल जी का विजन है। यह नहीं कि चार एमएलए बना दिए, एक मंत्री बना दिया। ये भाजपा का विजन है कि एक आदमी को राष्ट्रपति बना दिया तो उससे पूरे समुदाय के सवाल खत्म हो गए। आज क्या सारे आदिवासियों की स्थिति बेहतर हो गई?
क्या कांग्रेस कॉलेजियम सिस्टम का विरोध कर उच्च न्यायपालिका में आरक्षण के लिए आवाज उठाएगी?
कांग्रेस चाहती है कि जीवन के सभी क्षेत्रों में सभी समुदायों की भागीदारी हो। अब यह तो मनुवादी बात हो गई कि आपने अहीर के घर में जन्म लिया है तो आप भैंस ही पालेंगे। अहीर समाज का आदमी सुप्रीम कोर्ट का जज क्यों नहीं बनेगा? क्यों नहीं वह कार्पोरेट वर्ल्ड में जाएगा? क्या सिर्फ एक-दो समाज के लोग ही रहेंगे सभी क्षेत्रों में?
दलित और ओबीसी के बीच में एकता कैसे बने? कांग्रेस की कार्ययोजना क्या है?
जब फ्रांस में क्रांति हुई थी तब वाल्तेयर उसके सबसे प्रेरणास्रोत थे। भारत में वर्ण-व्यवस्था के आधार पर चार वर्ण बनाए गए। आप देखें कि ब्राह्मण एक वर्ण है और उसकी एक जाति है। ऐसे ही क्षत्रिय एक वर्ण है और उसकी एक जाति है। वैश्य भी एक वर्ण है और यह एक जाति है। लेकिन शूद्र एक वर्ण होने के बावजूद इसे तीन हजार से अधिक जातियों में बांट दिया गया। बांटा इसलिए गया कि वे एक होकर अपने हक-हुकूक के लड़ाई न लड़ें। वे आज भी आपस में लड़ते हैं। जिस दिन ओबीसी के सारे लोग एक हो जाएंगे, कुर्मी और नोनिया का भेद मिट जाएगा, इस समाज को कोई नहीं रोक सकेगा। अभी क्या है कि जो अतिपिछड़ा है, वह प्रजापति, नाई और नोनिया आदि में बंटा है। यह बंटवारा खत्म करना होगा। तभी यह लड़ाई जीती जा सकेगी।
लेकिन जब तक सभी को भागीदारी नहीं मिलेगी, यह बंटवारा खत्म कैसे होगा?
देखिए मुख्य बात यह है कि जितनी आबादी, उतना हक। यदि तीन हजार जातियों को अलग-अलग अधिकार देना असंभव हो तो उसका सिस्टम बनना चाहिए। यदि उन्हें उनको तीन-चार कैटेगरी में विभाजित किया जाता तो हम उसका समर्थन करते। तेलंगाना में अभी हमने देखा कि शिड्यूल कास्ट की तीन कैटेगरी बन गई। प्रैक्टिकली तो तीन हजार जातियों की अलग-अलग कटेगरी बनाना संभव नहीं है। लेकिन ध्यान रखा जाना चाहिए कि सबको लाभ जरूर मिले।
तो आप उपवर्गीकरण के पक्षधर हैं?
हां, हम इसका पुरजोर समर्थन करते हैं।
तो आप यह मांग करते हैं कि रोहिनी कमीशन की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए?
रोहिनी कमीशन का आधार जातिगत जनगणना नहीं था। जब तक जातिवार गणना नहीं होगी तब तक हम कैसे लागू कर सकते है। मान लीजिए कि एक की आबादी दो प्रतिशत और दूसरे की आबादी बीस प्रतिशत है तो पहले वाले के मुकाबले दूसरे को दस गुना देना पड़ेगा। इसलिए तो उपवर्गीकरण आवश्यक है। मैं आपको बताऊं कि तेलंगाना में जो जातिगत सर्वेक्षण हुआ, वह इसलिए भी बेहतरीन है, क्योंकि इसमें इन सभी सवालों को शामिल किया गया है। साढ़े तीन करोड़ आबादी से कुल 54 आयामों पर प्रश्नों के माध्यम से माइक्रो लेवल तक का आंकड़ा जुटाया गया है। इसके लिए सभी भागीदारों की सहायता से प्रश्न तैयार किए गए हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता भी इस पर काम कर रहे हैं। यह इतना जबरदस्त है। गुजरात मॉडल एक फर्जी और काल्पनिक मॉडल था। तेलंगाना मॉडल फ्यूचर इंडिया को बनाएगा। मैं पेशे से चिकित्सक हूं। अब इसको ऐसे समझिए कि मेरे पास चार रोगी आते हैं और कहते हैं कि उन्हें कमजोरी है तो मैं सभी को यह तो नहीं कहूंगा कि आप च्यवनप्राश खा लें। मैं सभी रोगियों की जांच करूंगा और देखूंगा कि यदि उन्हें कमजोरी महसूस हो रही है तो उनके शरीर में किस तत्व की कमी है। फिर मैं उसके हिसाब से उन्हें दवा दूंगा। ऐसे ही यह जातिगत जनगणना है। इससे सभी आयाम खुलेंगे। पता चलेगा कि किस जाति की क्या समस्या है। यदि कोई बिजनेस में कमजोर है उसे बिजनेस में आगे बढ़ाया जा सकता है। वह भी अडानी-अंबानी बन सकता है। सभी जातियों को मौका मिलना चाहिए। और एक बात यह कि जातिगत जनगणना से केवल बीमारी का पता चलेगा। असल बात है जांच के आधार पर इलाज।
आप तेलंगाना में हुए जातिगत सर्वेक्षण को खास क्यों बता रहे हैं?
बिल्कुल। देखिए वहां सरकार ने तीन महीने का समय तय किया था। सबकुछ समय पर हुआ। सारे प्रश्न फ्रेम हो गए थे। डाटा संकलित कर लिया गया। अब वह डाटा बहुत बड़ा है। उसका गहरा विश्लेषण चल रहा है। आप इंतजार करें। उससे जो जानकारियां सामने आएंगी, उससे देश भर के लोग हैरान होंगे। यह सर्वेक्षण पूरी दुनिया के लिए एक नजीर बनने जा रही है। दुनिया इससे सीखेगी। यह बाबा साहब के सिद्धांतों पर आधारित है, जिन्होंने विशेष अवसर का सिद्धांत दिया और जिसे दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला ने आगे बढ़कर लागू किया। सामाजिक न्याय चाहने वाले जो लोग हैं, वे इससे बहुत खुश होंगे।
(संपादन : समीक्षा साहनी/राजन/अनिल)
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