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साहित्‍य

नेपथ्य के नायक : संघर्ष और समर्पण के 25 वृतांत
इस खंड की कुछ उपलब्धियां तो इतनी अनूठी हैं, जिससे इसे ऐतिहासिक दस्तावेज का दर्जा हासिल हो चुका है। पल्टू कहार, गुंडाधुर धुर्वा, विट्ठल लक्ष्मण कोतवाल जैसे चरित्र नायक, इनके बारे में पाठकों ने अन्यत्र...
नगरों के अंदर कैद एक महानगर : कलकत्ता (अब कोलकाता)
आपको आश्चर्य होगा, इस फुरसतहीन नगर में रुककर जुलूस देखने वाले लोग किस कोने से आए! यहां सब कुछ होने का विद्रोह है– ‘चोलबे ना!’ और कहीं कुछ न हो पाने का विद्रोह है– ‘आमार...
ग्रेस कुजूर की नायिकाओं से सीखें हिंदी दलित-बहुजन साहित्यकार
यह कविता संकलन आज के साहित्यकारों, खासकर दलित-बहुजन साहित्यकारों के लिए एक उदाहरण है कि हमें अपने बिंबों की तलाश के लिए दूसरे समाजों के आसरे रहने की आवश्यकता नहीं है और न ही उनके...
आदिवासी विरासत को दिकू वसीयत बनाए जाने के विरुद्ध चेताती पुरखौती कविताएं
सावित्री बड़ाईक अपनी कविताओं के जरिए तथाकथित सभ्‍य लोगों को भी चेताती है कि विकास के नाम पर उनके जल-जंगल-जमीन पर हमले करना बंद करके उनके वैकल्पिक जीवन दर्शन और स्‍वायत्‍त जीवन-शैली का सम्‍मान करना...
प्रेमचंद के समकालीन दलित विमर्श : एक अवलोकन
प्रेमचंद के समय में दलितों (तब अछूतों) पर केंद्रित कई तरह की क्रांतिकारी और असाधारण कहानियां लिखी गईं।...
महाश्वेता दी ने कहा था– ‘भूख से बढ़कर कोई पढ़ाई नहीं होती’
एक बार सिंहभूम के आदिवासियों के साथ महाश्वेता दी खाने बैठीं। पत्तल पर भात के साथ नमक-मिर्च रखा...
फूलन देवी की आत्मकथा : यातना की ऐसी दास्तान कि रूह कांप जाए
फूलन जाति की सत्ता, मायके के परिवार की सत्ता, पति की सत्ता, गांव की सत्ता, डाकुओं की सत्ता...
इतिहास पर आदिवासियों का दावा करतीं उषाकिरण आत्राम की कविताएं
उषाकिरण आत्राम इतिहास में दफन सच्चाइयों को न सिर्फ उजागर करती हैं, बल्कि उनके पुनर्पाठ के लिए जमीन...
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