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साहित्‍य

गोपाल प्रसाद का खंडकाव्य ‘सूर्पणखा’
वास्तव में सूर्पणखा के साथ बलात्कार ही हुआ था, जिसे ब्राह्मण लेखकों ने छिपाने का काम किया। लोक भाषा में इसे ‘नाक कटना’ ही कहा जाता है। निश्चित रूप से बलात्कार की वास्तविकता का उद्घाटन...
आंखन-देखी हाल बतातीं रजत रानी मीनू की कहानियां
रजत रानी मीनू की कहानियां यथार्थवादी हैं। वह घटनाओं का उसी रूप में चित्रण करती हैं, जिस रूप में वे घटती हैं। वह उनको अपने अनुकूल ढालने का प्रयास नहीं करतीं। बता रहे हैं कंवल...
मिहनतकशों के साहित्यकार रेणु
रेणु ने हिंदी में रिपोर्ताज विधा को जिस शिखर पर पहुंचाया, उसकी बराबरी आज तक कोई नहीं कर सका है। अपने पहले ही रिपोर्ताज ‘बिदापत नाच’ में उन्होंने दलित समाज की गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत की...
हरियाणवी समाज के प्रदूषक लोक कवि लखमी चंद
लखमी चंद की रागनियां पूरी तरह ब्राह्मणवादी और सामंतवादी आचार-विचारों और मूल्यों की स्थापना करती हैं। वह वेद-शास्त्रों, पुराणों और खासकर मनुस्मृति के अनुसार लोक जीवन को चलाना चाहते थे। बता रहे हैं कंवल भारती
भाषा और साहित्य के विकास में पिछड़ों-दलितों का अहम योगदान
उल्लेखनीय है कि लिपियों का आविष्कार विद्वानों ने नहीं, चित्रकार और मूर्तिकारों ने किया। भारत ही नहीं, दुनिया...
क्रांतिकारी परंपरा को बढ़ातीं रजत रानी मीनू की कविताएं
दलित कविता की ताकत वही चेतना है, जिसमें बाबासाहेब की बताई हुई राह और दृष्टि है। वह कहते...
राजेश कुमार का नाटक : कह रैदास खलास चमारा (अंतिम भाग)
नाटककार ने यज्ञोपवीत में विश्वास दिखाकर रैदास का विश्वास भी जनेऊ में दिखा दिया है। इस प्रकार निर्गुण...
बस कंडक्टर से अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता व साहित्यकार बने तेजपाल सिंह ‘तेज’ की आत्मकथा
तेजपाल सिंह ‘तेज’ का डॉ. आंबेडकर की विचारधारा से प्रभावित होना किसी से छिपा नहीं है। वे उनके...
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