यह आवश्यक है कि हिंदी को जबरन न थोपा जाए। हर राज्य का निवासी जब अपनी भाषा में पढ़ेगा तो अच्छा रहेगा। लेकिन यह याद रखा जाना चाहिए कि हमें अपनी भाषाओं में ज्ञान कोश बढ़ाना है और उन्हें सांस्कृतिक तौर पर मजबूत करना है। बता रहे हैं विद्या भूषण रावत
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बुद्धकालीन चिकित्सा प्रणाली की बात करें तो यह युग जिस प्रकार वर्णव्यवस्था के प्रतिकूल दिखाई देता है, चिकित्सा प्रणाली के एकदम अनुकूल दिखाई पड़ता है। बुद्ध की यह उद्घोषणा कि “जो मेरी सेवा करना चाहे, वह रोगी की सेवा करे”, स्पष्ट करती है कि इस काल में भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद न होकर आयुर्विज्ञान की तरह फूली-फली होगी। पढ़ें, द्वारका भारती का यह आलेख
अगर सोनिया गांधी चाहती हैं कि कांग्रेस एक ताकत के साथ सत्ता में आए और समाज के हाशिए पर पड़े लोगों के लिए काम करे तो उन्हें अपनी पार्टी के दरवाजे दलित, आदिवासी, पिछड़े और अकलियत के लिए सच्चे मन से खोलने होंगे। बता रहे हैं अभय कुमार
यदि हम आदिवासी जीवन पद्धति को उसके मूल्यों, विशेषकर उसके लोकतांत्रिक मूल्यों, के परिप्रेक्ष्य से देखें तो हमें यह स्पष्ट समझ में आ जाएगा कि यह अतीत का अवशेष न होकर भविष्य की राह दिखाने वाली है। आदिवासी समाजों में लोकतांत्रिक जीवन की समृद्ध परंपरा हमारे लिए आशा और प्रेरणा का स्रोत हो सकती है। बता रहे हैं ज्यां द्रेज
If we think of the Adivasi way of life in terms of values, especially democratic values, then there is no reason for it to be a relic of the past rather than the wave of the future. The rich tradition of democratic living in Adivasi societies is a useful source of hope and inspiration, writes Jean Drèze
डॉ. आंबेडकर की इतिहास की दृष्टि विश्व समेत भारत के इतिहास की घटनाओं का समुचित आकलन करने में न सिर्फ समर्थ थी, वरन् उन्होंने इतिहास के ब्राह्मणवादी दृष्टिकोण को बिल्कुल पलट कर रख दिया। बता रहे हैं देवेंद्र शरण
जगदीश पंकज ऐसे ही नवगीतकार हैं, जिनके नवगीतों में न केवल उनका समय पूरी शिद्दत से रेखांकित हुआ है, बल्कि धर्म, जाति, समाज, राष्ट्र और सत्ता की परख भी उनके मानवीय और लोकतांत्रिक विवेक से हुई है। बता रहे हैं कंवल भारती
यह गठबंधन ऐसा गठबंधन साबित हुआ, जिसने एक झटके में ही पिछड़ी और दलित राजनीति को उम्मीद से भर दिया। ऐसा लग रहा था कि कांशीराम और मुलायम सिंह यादव ने मिलकर ऊंची जातियों के राजनीतिक वर्चस्व को ख़त्म कर दिया है। लेकिन इन दोनों के समर्थकों का चरित्र, हृ्दय और मिज़ाज एक-दूसरे से काफ़ी भिन्न थे। बता रहे हैं जनार्दन गोंड
शिक्षा मंत्रालय (पूर्व में मानव संसाधन विकास मंत्रालय), भारत सरकार ने सीयूईटी के माध्यम से प्रवेश परीक्षा करवाने का दायित्व राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) को दिया है। सीयूईटी का पूरे देश में विरोध हो रहा है और इसे बंद करके पहले जैसी प्रणाली को लागू करने की मांग की जा रही है। इस संबंध में बता रहे हैं राघवेंद्र यादव
“मैं क्रिकेट खिलाड़ी बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए कड़ी से कड़ी मेहनत करने को तैयार हूं।” यह कहना है प्रहलाद का। रोज़ कमाने-खाने वाले उसके पिता बड़ी मुश्किल से पांच सदस्यों के अपने परिवार का पेट पाल पाते हैं। लेकिन आर्थिक तंगी के बावजूद प्रहलाद अपने लक्ष्य को पाने के लिए दृढप्रतिज्ञ है। बता रहे हैं मनीष राज
‘I am ready to work hard to fulfil my dream of becoming a cricketer,’ Prahlad said. His father is a daily-wage worker and earns barely enough for their family of five. But the lack of finances won’t deter him