बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने 12 नवम्बर को बाल्मिकीनगर की एक सभा में कहा कि आर्य बाहर से आये थे. उन्होंने यह भी कहा कि ‘सवर्ण इस देश के मूल निवासी नहीं हैं, मूल निवासी तो आदिवासी हैं.’ उनके इस बयान पर मीडिया में शोर हुआ तो अपने बयान को और स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि- ‘सवर्ण मूल निवासी नहीं हैं. वे बाहर से आकर बसे हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि कि वे हमारे दुश्मन हैं. तीन चार सौ साल पहले आने वाले भी अब यहां के निवासी हो गये हैं. इस देश में दलित, आदिवासी और कुछ अतिपिछड़ा वर्ग के लोग ही मूल निवासी हैं. इतिहासकारों से पूछ लें.’ उन्होंने आदिवासियों का आह्वान किया, ‘तुम अपना अस्तित्व खो चुके हो इसलिए अपने बारे में जानकारी नहीं है. तुम ही इस देश के मूल निवासी हो, जागो और हर विकास कायोज़्ं में अपना स्थान लो.’
उनके इस बयान पर उनकी ही पार्टी के विधायक उन पर टूट पड़े. भुमिहार विधायक अनंत सिंह और सुनील पांडेय ने उनकी खिंचाई की. अनंत सिंह ने तो मांझी को पागल तक कहा और कांके (झारखंड स्थित मनोचिकित्साालय) में भर्ती कराने की सलाह भी दी. विधायक सुनील पांडेय ने मांग की कि चूँकि नीतीश कुमार को जनादेश मिला था, इसलिए मांझी को हटाया जाए. रोचक यह यह है कि एक अकादमिक और बौद्धिक बहस वाले इस मुद्दे पर बयान जारी करने वाले वाले अनंत सिंह और सुनील पाण्डेधय न सिर्फ ‘बाहुबली’ माने जाते हैं और हत्याा के दर्जनों मामले इन पर चल रहे हैं। अनंत सिंह ने तो बिहार विधान सभा की वेबसाइट पर भी अपनी ‘शैक्षणिक योग्यता’ ‘साक्षर’ बतायी है!
इन बाहुबली विधायकों के अतिरिक्त, नीतीश कुमार के चहेते नेता संजय झा ने मांझी के बयान को ‘बर्दाश्त से बाहर’ बताया. जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि मांझी इतिहास की समीक्षा न करें और यह कि उनके बयान से पार्टी को बहुत नुकसान हुआ है. बिहार के अलग-अलग हिस्सों में इस बयान को लेकर मांझी के खिलाफ मुकदमे भी किये गए. पश्चिमी चंपारण के बेतिया में संजय कुमार मिश्रा और समस्तीपुर में विजय मिश्रा ने मुकदमे दर्ज किये हैं.
बहरहाल, सवाल यह है कि जिस तरह ‘भूराबाल (भूमिहार, राजपूत, ब्राहमण, लाला) हटाओ’ जैसे नारों से लालू प्रसाद को ताकत मिली थी, उसी तरह ‘सवर्ण बाहरी हैं’ जैसे बयान से जीतनराम मांझी को ताकत मिलेगी?
आर्य कहां से आए?
आर्य कहां से आए, इसको लेकर इतिहासकारों में मतभेद है. एक मत यह है कि आर्य आक्रमणकारी थे और इस देश में बाहर से आकर बसे. यहां के लोगों से उन्होंने युद्ध किये. विदेशी आक्रमणकारियों ने सिंधु सभ्यता के नगरों को तहस नहस किया. इतनी बड़ी नागरी-सभ्यता के पतन के कई कारणों में एक आर्य आक्रमण को भी माना ही जाता है. मोहनजोदड़ों में इसके प्रमाण मिल चुके हैं.
आर्यों के बारे में इतिहासकारों में, कुछ को छोड़कर, प्राय: सहमति है कि वे भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर से थे. मैक्समूलर व जे.जी रीड ने मध्य एशिया में बैक्ट्रिया को आर्यों का मूल निवास बताया. पेन्का ने जर्मनी को आर्यों का मूल निवास माना तो गाइल्स ने यूरोप में डेन्यूब नदी की घाटी को उनका मूल निवास बताया.
ओल्डेनवर्ग, एडवर्ड मेयर और कीथ ने मध्य एशिया के पामीर इलाके को आयोज़्ं का मूल स्थान माना तो बाल गंगाधर तिलक ने उत्तरी ध्रुव को. सवाल यह है कि इतिहास का सच बोलने पर मीडिया ने मुख्यमंत्री पर हमला क्यों किया? क्या मीडिया पर सवर्ण वर्चस्व ने इसकी सामान्य बौद्धिक क्षमता को भी नष्ट कर दिया है? या उसे एक दलित मुख्यमंत्री बर्दाश्त नहीं है?
के सी श्रीवास्तव ने अपनी किताब ‘प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति’ मे लिखा है- ‘हमें अब तो मान ही लेना चाहिए कि भारत आर्यों का मूल निवास स्थान नहीं था और वे यहां आक्रांता के रूप में ही आए थे. सैंधव सभ्यता, आर्य सभ्यता से भिन्न एवं इससे अधिक प्राचीन थी. यदि आर्य भारत के निवासी होते तो वे सर्वप्रथम अपने ही देश का आर्यीकरण करते. दक्षिणी भारत आज तक आर्यभाषा-भाषी नहीं है. उत्तर पश्चिम में बलूचिस्तान में ब्राहुई भाषा बोली जाती है, जो द्रविड़ परिवार की भाषा थी. यह इस बात का सूचक है कि संपूर्ण भारत अथवा कम से कम उसका एक बड़ा भाग, अनार्य था. यह आर्यों के भारतीय मूल के सिद्धांत के विरूद्ध सबसे प्रबल प्रमाण है.’ (वेदिक एज, पेज 206)
(फारवर्ड प्रेस के दिसम्बर 2014 अंक में प्रकाशित)
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