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‘हमें हथियार दो, मुआवजा नहीं’

राबड़ी देवी ने एक महिला को बुलाया और उससे कुछ पूछना चाहा। गुस्से से तमतमायी उस महिला के शब्द अब तक मैं नहीं भूल पाया हूं। उसने कहा, 'हमको आपका पैसा नहीं चाहिए। हम लोगों को हथियार दीजिए, निबट लेंगे

पटना से औरंगाबाद जाने वाली सड़क पर, वलिदाद के नजदीक, एक छोटी नहर के उस पार शंकर बिगहा जाने के लिए हम लोगों को कुछ दूर पैदल चलना पड़ा। यह गांव रणवीर सेना की सामंती क्रूरता की दुखद कहानी कह रहा था। एक झोपड़ी में चार शव पड़े थे और उनके बीच एक नन्ही बच्ची (करीब चार साल की) अल्युमिनियम की थाली में भात खा रही थी। शायद मौत के पहले, रात में, मां ने बच्चों के लिए थाली में भात परोसा था। उसके परिवार में अब कोई नहीं बचा था। यह दृश्य देख हम पत्रकार अंदर से कांप गये। डबडबायी आंखों से सब एक-दूसरे की ओर देख रहे थे, लेकिन मुंह से कोई शब्द नहीं निकल रहा था। वह बच्ची कभी कैमरे की ओर देखती तो कभी अपनी थाली की ओर।

dsc01773इस घटना में जो 23 लोग मारे गये थे, उनमें पांच महिलाएं और सात बच्चे थे। यह वहशीपन की पराकाष्ठा थी कि दस माह के एक बच्चे और तीन साल के उसके भाई को भी नहीं बख्शा गया।

हम सब आगे बढ़े, एक जगह चांर-पांच शव खटिया पर रखे हुए थे – लाल झंडे में लिपटे हुए।

भाकपा-माले के नेता रामजतन शर्मा, रामेश्वर प्रसाद, संतोष, महानंद समेत कई अन्य सुबह ही वहां पहुंच चुके थे। जब मुख्यमंत्री (तत्कालीन) राबड़ी देवी और लालू प्रसाद गांव पहुंचे, तब शव के दूसरी तरफ खड़े लोगों ने नारे लगाने शुरू कर दिये : ‘रणवीर सेना मुर्दाबाद। मुआवजा नहीं, हथियार दो’। लालू प्रसाद ने समझाने की गरज से कुछ कहा, तो शोर और बढऩे लगा। तब तक राबड़ी देवी ने एक महिला को बुलाया और उससे कुछ पूछना चाहा। गुस्से से तमतमायी उस महिला के शब्द अब तक मैं नहीं भूल पाया हूं। उसने कहा, ‘हमको आपका पैसा नहीं चाहिए। हम लोगों को हथियार दीजिए, निबट लेंगे।’ तब तक हल्ला हुआ कि पुलिस ने बबन सिंह नामक व्यक्ति को पकड़ा है। गांव के लोग उसे उनके सुपूर्द करने की मांग करने लगे। बोले, हम खुद सजा देंगे। डीएम-एसपी ने बड़ी मुश्किल से लोगों को शांत किया। मौके पर लालू प्रसाद व राबड़ी देवी ने विशेष कोर्ट का गठन कर छह माह में अपराधियों को सजा दिलाने का एलान किया।

गांव के एक व्यक्ति रामनाथ ने हमें बताया था कि यदि बगल के धेवई और रूपसागर बिगहा के लोगों ने ‘गोहार’ (हल्ला) नहीं किया होता, तो मरने वालों की संख्या और भी ज्यादा होती। शंकर बिगहा के पूरब में धोबी बिगहा गांव है, जहां के 21 लोग इस जनसंहार में अभियुक्त बनाये गये थे। पूरे गांव में एक को छोड़ बाकी सभी मकान कच्चे या फूस के थे, जो यह बता रहा था कि मारे गये सभी गरीब और भूमिहीन थे। आततायी, ललन साव का दरवाजा नहीं तोड़ पाये, क्योंकि एकमात्र उनका ही मकान ईंट का था, जिसके दरवाजे मजबूत थे. उन्होंने पत्रकारों को बताया – ‘मैंने तीन बार सीटी की आवाज और फिर रणवीर बाबा की जय का नारा सुना।’

ऐसी चर्चा थी कि शंकर बिगहा में नक्सलवादी संगठन पार्टी यूनिटी का काम-काज था, इसीलिए रणवीर सेना ने इसे निशाना बनाया। एक चर्चा यह भी थी कि यह नवल सिंह, जो मेन बरसिम्हा हत्याकांड का अभियुक्त था, की हत्या का बदला था। वह दौर मध्य बिहार के इतिहास का एक दुखद व काला अध्याय था, जिसमें राज्य ने शंकर बिगहा के पहले और बाद में भी कई जनसंहारों का दर्द झेला।’

(फारवर्ड प्रेस के मार्च, 2015 अंक में प्रकाशित )


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लेखक के बारे में

रजनीश उपाध्याय

रजनीश उपाध्याय हिंदी दैनिक 'प्रभात खबर' में समाचार संपादक हैं। सोलह साल पहले उन्होंने शंकर बिगहा नरसंहार को कवर किया था। गाँव की उनकी उस यात्रा का उनका संस्मरण 'प्रभात खबर' में 14 जनवरी, 2015 को प्रकाशित हुआ। लेख के चुनिन्दा अंश 'प्रभात खबर' से साभार।

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