– अनिल कुमार
भारत को बेहतर रूप से समझने और इसे नजदीक से देखने के लिए मैं, प्रमोद रंजन, और अनिल वर्गीज 5 जनवरी 2016 को दिल्ली के इंडिया गेट से चले थे। इस बीच हम हरियाणा, राजस्थान, गुजरात पार करते हुए महाराष्ट्र तक पहुँच चुके हैं। लेकिन मेरे मन में अब भी हरियाणा में आकार ले रही एक नए प्रकार की राजनीति गूंज रही है।
हरियाणा पहुँचने पर रोहतक में हमारा स्वागत रोहतक के युवा पत्रकार राजेश कश्यप ने किया था। राजेश कश्यप फॉरवर्ड प्रेस से भी बतौर फ्रीलांस जुड़े रहे हैं। हरियाणा का रोहतक दिल्ली के करीब है, इस कारण वह एक प्रमुख व्यापारिक स्थल भी है।
सबसे पहले हमलोगों का सामना रोहतक के फेमस पराठे से हुआ। हमने शहर के साइन बोर्ड पर लिखा पाया “तीन पराठे खाने पर 11,000 रुपये का इनाम”! हम सबने सोचा कि यह मजाक है। या फिर ट्राई ही कर लिया जाए। इसपर राजेश कश्यप और उनके मित्र पहले थोडा मुस्कुराये और बोले “खिला देंगें, और तीन खाने पर वह 11,000 रुपये इनाम भी देगा”।
“लेकिन पहले चाय पे चर्चा”।
हमारे यात्रा विवरण की जानकारी उनको भी थी फिर भी इसपर चर्चा और बहस हुई। चर्चा सामाजिक और राजनीतिक विमर्शो की तरफ मुड़ी। राजेश कश्यप जी के साथ उनके दो मित्र भी थे। चर्चा फॉरवर्ड प्रेस के योगदान और उसके भविष्य पर भी हुई।
हरियाणा से लगातार आ रहे अत्याचार और उत्पीड़न की खबरों के कारण हम सब हरियाणा के समाज और वहां हो रहे आन्दोलनों को जानना-समझना चाहते थे। हम समझना चाहते थे कि आखिर क्या कारण है कि हरियाणा का जाट समुदाय इस स्थिति में है कि वह कुछ भी करे उसका कोई कुछ नहीं कर सकता।
हरियाणा के वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक बदलाव और आन्दोलनों पर चर्चा के दौरान पता चला कि हरियाणा की राजनीति जाट केन्द्रित है, चाहे वह कांग्रेस हो या भाजपा। यहाँ जाटों की जनसंख्या लगभग 20 प्रतिशत है, जिसके कारण उनको किसी और के वोट की उतनी जरुरत नहीं है। इसके साथ-साथ हरियाणा की अधिकांश जमीनें उनके पास हैं।
व्यक्तिगत संपत्ति के रूप में जमीन एक प्रमुख आर्थिक ताकत है, और सामाजिक संपत्ति रूप में यह प्रमुख आर्थिक ताकत के साथ-साथ राजनीतिक और सामाजिक ताकत है। वर्तमान समय में दूसरी ताकतें भी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उन ताकतों का भी जन्म जमीन की ताकतों से ही हुआ है। जाट समुदाय के पास सामाजिक-राजनीतिक प्रभुत्व बनाने की सीमा तक पूंजी के रूप में जमीनें हैं। यही कारण है कि तमाम आर्थिक और राजनीतिक संसाधनों पर उनका कब्ज़ा है।
अपनी यात्रा के दौरान हरियाणा के शोषित-वंचित समुदायों से बात करने पर पता चला कि जाट समुदाय अनुसूचित जातियों, विशेषकर वाल्मीकि समुदायों का सबसे बड़ा शोषक बनकर उभरा है। अन्य पिछड़ी जातियां भी इनसे त्रस्त हैं। सामाजिक आंदोलनकारियो के अनुसार यही कारण है कि अब अति पिछड़ी अनुसूचित जातियां और अन्य पिछड़ी जातियों के लोग इनके खिलाफ लामबंद हो रहे हैं।
लेकिन साथ ही हरियाणा के लोगों ने सामाजिक विसंगतियों को दूर करने के लिए समाज और सरकार में सामाजिक-राजनीतिक भागीदारी के लिए कर्पूरी ठाकुर (24।01।1924-17।02।1988) का समर्थन किया। यह हरियाणा में लागू भी है।
वहीं दूसरी ओर विभिन्न क्षेत्रो में प्रभुत्व के बाद भी हरियाणा का जाट समुदाय आज आरक्षण मांग रहा है। राजेश कश्यप ने बताया कि फ़रवरी 2016 में हुआ जाट आरक्षण आन्दोलन बहुत ही भयावह था। सड़कों पर आतंक, आगजनी, अपराध के कारण अराजकता को शब्दों में वर्णन करना असंभव है।
राजेश कश्यप ने हरियाणा के वर्तमान सामाजिक राजनीतिक परिस्थिति के बारे में बताया कि “जाट-प्रभुत्व” के कारण “बहुत सी जातियां अपमानित स्थिति में रहने को मजबूर हैं”। यही कारण है कि “हरियाणा में गैर-जाट सामाजिक-राजनीतिक समीकरण तेजी से बन रहे हैं”। “इसके परिणामस्वरूप अब लड़ाई पैतीस बनाम एक की हो गयी है”। अर्थात इस लड़ाई मे छत्तीस समुदायों/जातियों में से सभी पैंतीस समुदाय एक तरफ और जाट एक तरफ हो गया है। हिसार के वाल्मीकि समुदाय को इस नए सामाजिक-राजनीतिक ताना-बाना से बहुत उम्मीद है। वाल्मीकि समुदाय ने बताया कि सरकार से न्याय की आशा तभी की जा सकती है, जब राज्य और केन्द्रीय राजनीति में गैर-जाट समीकरण बनें। इसी तरह की आशा अति और अत्यंत शोषित-वंचित अनुसूचित जातियां और अन्य पिछड़ा वर्ग उत्तर प्रदेश और बिहार में भी कर रहा है।
इसी बातचीत के दौरान रोहतक का प्रसिद्ध पराठा भी खाने के लिए आ गया। इसे हम सात लोग मिलकर भी आराम से नहीं खा सके। यह लगभग असंभव है कि कोई एक व्यक्ति तीन पराठे खाकर 11,000 रुपये का इनाम जीत ले। लेकिन हरियाणा में तो – सामाजिक, राजनितिक, आर्थिक- सभी पराठे एक ही समुदाय खाता और पचाता रहा है। उम्मीद है भूखे और वंचित समुदायों की गोलबंदी इस अन्याय को दूर करने में सक्षम होगी।
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