“सब लोग वहां नहीं हैं”, इन शब्दों के साथ रवीश कुमार ने प्रथम कुलदीप नैय्यर पत्रकारिता पुरस्कार ग्रहण करने के पश्चात अपने संबोधन को शुरू किया। “वहां” कुछ ही घंटे पहले, योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गयी थी। संयोग से, हिंदुत्व के पोस्टर बॉय के देश के सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने और रवीश कुमार, जो सत्ता के अनाचारों के खिलाफ मीडिया में लगातार आवाज़ उठाते रहे हैं, को कुलदीप नैय्यर फाउंडेशन व गाँधी शांति प्रतिष्ठान द्वारा स्थापित पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित करने वाले कार्यक्रमों में कुछ ही घंटों का अंतर था।

इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित इस कार्यक्रम में लगभग 500 लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम शुरू ही होने वाला था, जब स्वामी अग्निवेश अपने साथियों के साथ वहां पहुंचे और हाल के पिछले हिस्से की तरफ जाने लगे। तभी किसी ने मंच से चिल्लाकर कहा, ‘स्वामीजी, आपकी जगह तो स्टेज पर है। कहाँ जा रहे हो?” पूरे हाल में हंसी की एक लहर दौड़ गयी। अंततः वे मंच पर तो आसीन नहीं हुए परन्तु उनकी गुलाबी पगड़ी आगे की पंक्तियों में बैठे श्रोताओं के बीच नज़र आ रही थी। इसके बाद कुछ गंभीर चर्चा शुरू हुई।

विजय प्रताप ने आपातकाल के घुटन भरे दिनों को याद किया और कहा कि जब भी जेल में उन्हें ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में कुलदीप नैय्यर का कॉलम पढ़ने को मिलता था तो वे बहुत कृतज्ञ महसूस करते थे। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम रवीश कुमार को सम्मानित करने के लिए नहीं बल्कि उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए आयोजित किया गया है, क्योंकि उन्होंने लगातार उन दीवारों पर चोट की है, जो हमें घेर लेना चाहती थीं। पत्रकार और एनडीटीवी में रवीश कुमार के साथी प्रियदर्शन ने कहा कि यह एक मौका है रवीश कुमार को यह बताने का कि हॉल में बैठे और खड़े लोग हमारी संवैधानिक स्वतंत्रताओं को बचाए रखने के रवीश कुमार के अभियान में उनके साथ हैं।

अपने जीवन को पत्रकारिता के लिए समर्पित करने वाले 93 वर्षीय कुलदीप नैय्यर भला इस तथ्य को कैसे नज़रंदाज़ कर सके थे कि मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलने वाले एक व्यक्ति उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री बन गया है। “यह हिन्दुओं का काम है कि भारत के मुसलमानों के मन से डर निकालें ताकि वे यह महसूस कर सकें कि यह देश उनका भी है। यह सही है कि देश के 80 प्रतिशत रहवासी हिन्दू हैं परन्तु हमने यह तय किया है कि इस देश का शासन संविधान के अनुरूप चलेगा और संविधान सभी को विधि के समक्ष समानता देता है और एक व्यक्ति, एक मत के सिद्धांत को मान्यता देता है”।
उत्तरप्रदेश के घटनाक्रम पर चर्चा करते हुए, कुलदीप नैय्यर पुरानी यादों में डूब गए – सियालकोट, पाकिस्तान में बीता उनका बचपन, वहां के उनके मुसलमान मित्र और कैसे विभाजन के बाद भी वे पाकिस्तान में ही रहना चाहते थे, जैसे कुछ मुसलमानों ने भारत में ही रहने का निर्णय लिया था। परन्तु जहाँ भारत की नीति यह थी वह मुसलमानों को पाकिस्तान जाने और भारत में बने रहने का विकल्प देगी वहीँ पाकिस्तान के उनके मित्रों ने उन्हें सलाह दी कि उनका वतन सीमा के उस पार है। “जब मैं सीमा के नज़दीक पहुंचा तो मैंने देखा कि मुसलमानों का एक काफिला उलटी दिशा में जा रहा है। दोनों काफिलों में शामिल लोगों ने एक दूसरे की ओर रुक कर देखा पर हमने कोई बात नहीं की। हम शरणार्थीयों के बीच एक अजीब सा रिश्ता था”

आशीष नंदी ने रवीश कुमार को सम्मानित करते हुए उन्हें शाल ओढ़ाया और एक लाख रुपये का एक चेक और स्मृति चिन्ह भेंट किया। भीड़ में जो बहुत कम महिलाएं शामिल थीं, उनमें रवीश की पत्नी नयना भी थीं। उनसे अनुरोध किया गया कि वे पुरस्कार ग्रहण करते समय रवीश के साथ खड़ी हों। उन्होंने यह अनुरोध स्वीकार कर लिया।
जब रवीश कुमार बोलने के लिए खड़े हुए तो वे दार्शनिक मुद्रा में थे। उन्होंने देश के वर्तमान हालत पर तीखी टिप्पणियां किया। “हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि हम एक खतरनाक दौर से गुजर रहे हैं। हम इतने कुंद हो गए हैं कि कोई हमारे शरीर में सुई घुसा रहा है तब भी हमें पता नहीं चलता”। उन्होंने घटती हुई स्वतंत्रताओं और मीडिया कीं उन पर चुप्पी और यहाँ तक की उनका स्वागत करने की बात कही।
“दरोगा और इनकम टैक्स अधिकारी इन दिनों बहुत सक्रिय हो गए हैं और टेलीविज़न एंकर सबसे ताकतवर थानेदार बन गए हैं”, रवीश ने कहा।
कुलदीप नैय्यर पुरस्कार हर वर्ष हिंदी और देश की अन्य भाषाओँ के सर्वश्रेष्ठ पत्रकार को दिया जायेगा। इस वर्ष के पुरस्कार के लिए गठित चयन समिति में कुलदीप नैय्यर, गाँधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, राजनीति विज्ञानी आशीष नंदी, जनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानवी, वरिष्ट पत्रकार नीरजा चौधरी, संजय पाठक, रिजवान कौसर, अशोक कुमार, जयशंकर गुप्ता, विजय प्रताप और फॉरवर्ड प्रेस के प्रबंध संपादक प्रमोद रंजन शामिल थे।
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