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‘हम सवर्णों को आरक्षण देते हैं’ : एकलव्य सुपर 50

एकलव्य सुपर 50 की परिकल्पना भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी राम बाबू गुप्ता की है। वे सामाजिक रूप से वंचित विद्यार्थियों को डाक्टर, इंजीनियर बनने के सपने को साकार करने में जुटे हैं। संजीव चंदन की रिपोर्ट :

यह वाक्य चौकाता है कि हम ‘सवर्णों को आरक्षण देते हैं.’ दरअसल इस वाक्य के पीछे एक पृष्ठभूमि है। बिहार की राजधानी पटना में ‘एकलव्य सुपर 50’ नामक संस्थान के आंतरिक नियम की पृष्ठभूमि। ‘एकलव्य सुपर 50’ दलित-आदिवासी-पिछड़े-पसमांदा समुदाय के विद्यार्थियों को मेडिकल और इंजीनियरिंग की फ्री आवासीय कोचिंग देता है। कुछ सवर्ण विद्यार्थी भी वहाँ दाखिल हैं, जिसे ही यहाँ के संचालक ‘आरक्षण’ की संज्ञा दे रहे हैं। हालांकि यह प्रचलित अर्थों में आरक्षण नहीं है, संख्या के आधार पर सवर्णों को भागीदारी देना कहा जा सकता है। इससे इतना तो तय है कि बहुसंख्यक आबादी के लिए, जो बहुजनों की है, बनाई गई इस योजना में संचालक शायद यह बताना चाह रहे हों कि भागीदारी के मसले पर बहुजन समुदाय बहुत उदार है- यह व्यवस्था उलट गई सी दिखती है।

एकलव्य सुपर 50 की बिल्डिंग

जब सूबे में मैट्रिक परिक्षा में एक ही संस्थान से 5 विद्यार्थी टॉप घोषित हुए 

एकलव्य सुपर 50 की परिकल्पना भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी रामबाबू गुप्ता और उनकी पत्नी रति गुप्ता की है, जिन्होंने सामाजिक रूप से पीछे छूट गए और विशेष तौर पर गरीब जाति समुदाय के बच्चों की शिक्षा के लिए 2012 में एकलव्य सुपर 50 की शुरुआत की। पहले चरण में उन्होंने 10वीं की परीक्षा के लिए बिहार के सीतामढी में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। पहली बार तो सभी 50 विद्यार्थियों ने महज तीन महीने की कोचिंग प्राप्त कर फर्स्ट डिवीजन से 10वीं की परीक्षा पास की। इसके दो साल बाद इस प्रयास की ओर पूरे बिहार का ध्यान गया जब सूबे की 10वीं बोर्ड की परीक्षा में टॉप 5 विद्यार्थी इसी कोचिंग से थे। इस चमत्कारिक परिणाम के बाद राज्य के आला अधिकारियों सहित मुख्यमंत्री का ध्यान भी इस ओर गया और उन्होंने सीतामढ़ी आकर उन विद्यार्थियों का सम्मान किया।

विद्यार्थियों के बीच एकलव्य 50 के मेंटर रामबाबू गुप्ता

इसके बाद का चरण पटना में वंचित समुदायों के गरीब विद्यार्थियों को मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी करवाने का है, जिसके तहत दो अलग-अलग सत्रों के लगभग 100 विद्यार्थियों ने दाखिला ले रखा है, इनमें अधिकतम संख्या लड़कियों की है। दिन-रात मेडिकल-इंजीनियरिंग की तैयारी में जुटे ये विद्यार्थी बिहार के विभिन्न जिलों से तो हैं ही, बिहार के बाहर महाराष्ट्र, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तरप्रदेश और सिक्किम तक के छात्र-छात्राएं वहाँ रहकर पढाई कर रहे हैं। रिपोर्ट के सिलसिले में पिछले दिनों इन विद्यार्थियों से मिलना हुआ, जिनमें दलित-ओबीसी-पसमांदा समाजों के विद्यार्थी तो हैं ही थारू जनजाति के विद्यार्थी काफी बड़ी संख्या में हैं।

एकलव्य सुपर 50 के पहले चरण में बिहार स्कूल बोर्ड में पहले टॉप पांच में शामिल विद्यार्थियों को सम्मानित करते सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

लक्ष्य का संधान और सामाजिक दायित्व

एकलव्य सुपर 50 के तहत सामाजिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि के विद्यार्थियों, खासकर लड़कियों के लिए समर्पित इस योजना के संचालक राम बाबू कहते हैं कि ‘हमारी कोशिश होती है कि यहाँ पढने वाले विद्यार्थी ज्यादातर पठन-पाठन में ही लगे हों, इसीलिए चाहकर भी सामाजिक जागरूकता के कोई कार्यक्रम, आदि संस्थान इनके लिए आयोजित नहीं करता.’ इस स्वीकारोक्ति के बावजूद यह भी सच है कि विद्यार्थियों की अपनी सामाजिक पृष्ठभूमि उन्हें अपने परिवेश से जोडती है-कई लड़कियों-लड़कों ने हमसे बातचीत करते हुए कहा कि पढ़-लिख कर डाक्टर बनकर हम अपने गाँव में या किसी भी गाँव में सेवा देना चाहेंगे.’ एकलव्य अवधारणा से संचालित इस संस्थान के संचालकों को सामाजिक जिम्मेवारी का अहसास भी है, भले की किसी प्रत्यक्ष सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम को वे कम समय में परीक्षा पास करने के लक्ष्य के कारण आयोजित नहीं करते, लेकिन परोक्षतः सामाजिक समता का प्रबंधन वे जरूर करते हैं, इसीलिए लड़कियों या लड़कों के छात्रावासों में उनके रहने की व्यवस्था सचेत रूप से इस तरह की जाती है कि विद्यार्थियों के भीतर बैठी जातीय श्रेणीबद्धत़ा टूटे। बहुत कम संख्या में ही सही, लेकिन जो भी विद्यार्थी सवर्ण समाज से हैं, उन्हें कई सवर्णेत्तर विद्यार्थियों के साथ रहना होता है।

एकलव्य 50 के क्लास में विद्यार्थी

विद्यार्थियों से बातचीत कर यह स्पष्ट हो जाता है कि वे लक्ष्य केन्द्रित हैं, शायद ही अखबार पढ़ते हों, खबरें सुनते हों या अन्य गतिविधियों से जुड़ते हों, लेकिन उन्हें अपने सामाजिक-संवैधानिक अधिकार और दायित्वों का बोध है। इसके बावजूद एक कमी खलती है, छात्रावासों से लेकर क्लासरूम तक सामाजिक न्याय के प्रणेताओं, मसलन महात्मा फुले, सावित्रीबाई फुले, डा.अंबेडकर, बिरसा मुंडा या अन्य महापुरुषों की तस्वीरों का न होना। जिस योजना और अभियान के साथ एकलव्य सुपर 50 संचालित है, उसके तहत क्लासरूम में सामाजिक न्याय का परिवेश बनाना भी संचालकों का दायित्व है। इस ओर ध्यान खीचने पर संचालकों ने जल्द ही ऐसे वातावरण के निर्माण का आश्वासन दिया।

छात्रावास में विद्यार्थी

मानवसंसाधन विकास मंत्री (राज्य) उपेन्द्र कुशवाहा का जुडाव

इस संस्थान में मानवसंसाधन विकास मंत्री भी विशेष रुचि रखते हैं। उनके संसदीय क्षेत्र काराकाट से कम से कम एक दर्जन विद्यार्थी, खासकर लडकियां यहाँ मेडिकल, इंजीनियरिंग की तैयारी कर रही हैं। उनके संसदीय क्षेत्र में मारे गये उनके एक कार्यकर्ता, जिनकी हत्या अपराधियों ने कर दी थी, की बेटी रागिनी कुमारी भी आईआईटी की तैयारी कर रही है। कुशवाहा ने रागिनी की परवरिश की जिम्मेवारी खुद ले रखी है। दरअसल काराकाट के नबीनगर में रागिनी के पिता की ह्त्या के बाद कुशवाहा उसके परिवार से मिलने पहुंचे। पिता की मृत्यू के बाद तीन बहनों और उसकी मां की देखभाल के लिए कोई नहीं रह गया था। कुशवाहा ने उस परिवार की परवरिश की जिम्मेवारी अपने ऊपर ले ली।


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लेखक के बारे में

संजीव चन्दन

संजीव चंदन (25 नवंबर 1977) : प्रकाशन संस्था व समाजकर्मी समूह ‘द मार्जनालाइज्ड’ के प्रमुख संजीव चंदन चर्चित पत्रिका ‘स्त्रीकाल’(अनियतकालीन व वेबपोर्टल) के संपादक भी हैं। श्री चंदन अपने स्त्रीवादी-आंबेडकरवादी लेखन के लिए जाने जाते हैं। स्त्री मुद्दों पर उनके द्वारा संपादित पुस्तक ‘चौखट पर स्त्री (2014) प्रकाशित है तथा उनका कहानी संग्रह ‘546वीं सीट की स्त्री’ प्रकाश्य है। संपर्क : themarginalised@gmail.com

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