सहारनपुर के शब्बीरपुर को जलाने की योजना पहले से थी। तथ्य तो यही कहते हैं। शब्बीरपुर में जगह-जगह विशेष प्रकार के केमिकल से आग लगने के निशान मिले हैं। पीड़ित प्रत्यक्षदर्शी भी बताते हैं कि आग लगाने में एक विशेष प्रकार के बैलून का प्रयोग किया गया, जिसमें केमिकल

भरा था। इन्हें फेंकते ही आग लग जाती थी। माचिस या किसी प्रकार के आग के औजार की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। आश्चर्य की बात यह है कि कोई भी इस मामले पर गौर नहीं कर रहा है, जबकि यह दंगा एक पूर्व नियोजित साजिश के तहत किया गया प्रतीत होता है।
यदि शब्बीरपुर के घरों को पेट्रोल फेंक कर जलाया गया होता तो उसका कोई निशान नहीं मिलता। अतः स्पष्ट है कि जगह-जगह ये निशान केमिकल के ही हैं। केमिकल बैलून पड़ने से घास-फूस की झोपडि़यां तो आसानी से जल गईं, लेकिन पत्थर और ईंट की दिवारों पर पड़ने से एक प्रकार का दाग रह गया।
शब्बीरपुर में दंगाइयों ने सबसे पहले रविदास मंदिर पर हमला बोला। रविदास और अांबेडकर की मूर्तियां तोड़ दी। केमिकल बैलून भी फेका, जिससे वहां कई स्थानों पर केमिकल के दाग पड़ गए।
शब्बीरपुर गांव के करमवीर सिंह ने रविदास मंदिर में जगह-जगह पड़े केमिकल के दागों को दिखाया। उन्होंने बताया, “दंगाइयों के हाथ में कुछ अजीब तरह की कोई चीज बास्केट बॉल या बैलून की तरह दिख रही थी। ज़मीन पर फेंकते ही तेजी से आग लग जाती थी। माचिस की जरूरत नहीं पड़ती थी।” करमवीर सिंह ने जानकारी दी कि इस घटना में उनके घर के सभी सामान जलकर खाक हो गये हैं।

शब्बीरपुर की एक महिला रोशनी के भी घर को दंगाइयों ने निशाना बनाया। रोशनी के अनुसार, “दंगाइयों के हाथ में गुब्बारा था, जिसमें किसी प्रकार का केमिकल भरा था। दांत से उसका धागा खींचकर घरों पर फेकते थे, और आग लग जाती थी।”
एक और पीड़िता सुशीला के घर में जल्दी ही एक लड़के की शादी हुई थी। सुशीला ने बताया, “शादी में मिला हुआ सभी सामान घर में पड़ा था। बाहर से आए मेहमान कुल 30-35 लोग भी घर पर ही थे। उनके भी कीमती सामान थे। तीन बाईक, सिलाई मशीन, साइकिल, गहना समेत अनेक कीमती सामान, सब कुछ जल गया। कुछ भी नहीं बचा।” घरों के दिवारों पर कई जगह केमिकल के दाग थे। सुशीला ने कहा, “ये किसी प्रकार के केमिकल के दाग हैं। दंगाइयों ने गेंद या गुब्बारे के जैसा कुछ घरों में फेकते थे, जिससे घर में आग लग गई।”

फारवर्ड प्रेस की टीम को शब्बीरपुर के अनिल जाटव ने तमाम घरों के दीवारों पर केमिकल के दाग दिखाए। उनके घर में कुछ दिन बाद लड़के की शादी होने वाली थी। उनके घर में काफी सामान था, सब कुछ जल गया। अनिल के अनुसार, “दंगाइयों के हाथों में एक गेंद थी। उसमें मुंह से फूंकते थे और फेंक देते थे। फेकते ही एकदम से आग लग जाती थी।”
शिमलाना गांव के प्रधान-पति जो राजपूत हैं, ने बताया, “हमें केमिकल बैलून के बारे में कोई जानकारी नहीं है। महाराणा प्रताप जयंती कार्यक्रम में उत्तरांचल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान से भी लोग आए थे। ये सब बाहरी लोग ही लेकर आए होंगे।”

इस पूरे मामले में सहारनपुर के नवनियुक्त एसएसपी बताते हैं कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि केमिकल बैलून या विशेष प्रकार के रसायनों से आग लगाने के संबंध में शब्बीरपुर के दलित जानते भी नहीं होंगे। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि वे इस मामले की विशेष फ़ोरेंसिक टीम से जांच के लिए शीर्ष पदाधिकारियों को पत्र लिखेंगे।
सवाल यह है कि शब्बीरपुर के दंगाइयों के पास केमिकल बैलून कहां से आये? दंगाइयों के बीच इन्हें किसने बांटा? अगर दंगा तुरंत भड़का होता तो केमिकल बैलून से हमला की संभावना कतई नहीं की जा सकती। केमिकल बैलून से घरों को जलाने का मतलब है कि शब्बीरपुर को पहले से जलाने की साजिश रची गई थी। निश्चित तौर पर इतनी बड़ी संख्या में केमिकल बैलून कहां से आये, यह जांच का विषय है। इसी से दंगा भड़काने वाले दोषियों को सजा भी मिल सकेगी।
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