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अर्थियों को कंधा दे पाखंड को तिलांजलि दे रही हैं महिलायें

समाज में व्याप्त ब्राह्मणवादी कुरीतियों पर प्रहार करने वाले अर्जक संघ के संस्थापक और उत्तर प्रदेश के पूर्व वित्तमंत्री राम स्वरूप वर्मा का कहना था कि आत्मा का अस्तित्व ही नहीं है, किसी के मरने पर दूसरा जन्म नहीं होता। भाग्य-भगवान श्राप ,नरक आदि काल्पनिक बातों का डर बनाकर कर्मकांड करके शोषण औऱ ठगी होती रही है, साथ ही इन कर्मकांड के माध्यम से महिलाओं को नीचा बनाया गया। बता रहे हैं अर्जक संघी उपेंद्र कुमार पथिक

किसी व्यक्ति के मर जाने पर महिलाओं को न तो कंधा पर शव को ले जाने का अधिकार है और न कर्मकांड में उनकी कोई विशेष भूमिका होती है। महिलाओं को समाज की मुख्यधारा से अलग करने वाली इस परंपरा को अर्जक संघ से जुड़ी महिलायें तोड़ रही हैं। बात केवल इतनी भी नहीं है। अर्जक संघ के तरीके से अंतिम संस्कार भी बड़ी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। बड़ी वजह यह है कि इसमें ब्राह्म्णों को दान देने और भोज के नाम पर भारी खर्च से मुक्ति मिलती है।

पाखंड को तिलांजलि : अर्थी को कंधा देती महिलायें

जबकि ब्राह्म्णवादी परंपरा के मुताबिक ब्राह्मणों को दान करने ,भोज कराने आदि की परंपरा  इतनी खर्चीली है कि लोगों को अपना खेत-खलिहान तक बेचना पड़ जाता है। इसके अलावा 13 दिनों तक समय भी बरबाद करना पड़ता है। इसके विपरीत अर्जक संघ ने अनुसार मृत्योपरांत मात्र एक सप्ताह में  शोकसभा करके कम खर्च में संस्कार करने की परंंपरा कायम कर दी है जो चर्चा का विषय तो बना ही है , समाज में लोकप्रिय भी हो रहा है।

पिछले 10 जुलाई को नवादा जिला के हिसुआ प्रखंड अन्तर्गत कहरिया गांव में महादलित परिवार से जुड़े 95 वर्षीय काली मांझी की मृत्यु हो गयी। मृतक की पत्नी लक्षमीनीयी देवी, बेटी गायत्री देवी. पतोहू रिचु देवी , रेणु देवी, समेत सिया देवी, रिंकु कुशवाहा, आदि महिलाओं ने अर्थी को कंधा देकर श्मशान घाट पहुंचाने में मदद की। शवयात्रा में शामिल महिला -पुरूष ने मिलकर ‘राम नाम सत्य है’ के बदले ‘जन्मना-मरना सत्य है’, ‘अर्जक संघ जिन्दाबाद ,रामस्वरूप वर्मा -जिन्दाबाद’ का नारा लगा रहे थे।

मृतक  के पुत्र मुकेश मांझी ने कहा कि वे दस साल पहले अर्जक संघ के संपर्क में आये थे। इसके बाद कई सभाओं में भाग लिया और अर्जक साहित्य पढ़ने के बाद  मानववाद के रास्ते पर चल पड़े।

अर्जक संघ की परंपरा के मुताबिक ब्रह्मभोज के बदले शोकसभा का होता है आयोजन और सभी मिलकर पाखंड छोड़ने का लेते हैं संकल्प

ध्यातव्य है कि वर्ष 1980 में गया के केनारचट्टी में भुवन महतो की मृत्यु हो गयी थी। उनके पोता उपेन्द्र  कुमार ने  न तो सिर मुंड़वाया और न कोई कर्मकांड किया था। केवल शोकसभा करके अंतिम संस्कार कर दिया था तब समाज केे लोगों ने विरोध भी किया था। पर तब से यह प्रचलन बढ़ता ही चला गया।

अर्जक संघ के मुताबिक अर्थी को कंधा देने का रिवाज इसलिए बनाया गया ताकि बेटा-बेटी में भेदभाव समाप्त हो। आज जब कोई बेटी अपनी ही मां से भाई को देखकर कोई बढ़िया भोजन, कपड़ा आदि की मांग करती है तो मां कहती है कि तुम क्या हमें मरने पर कंधा दोगी? मुंह में आग दोगी? इस प्रकार मां औऱ परिवार के दूसरे सदस्य पुत्र-पुत्री में भेदभाव करते हैं। इसे मिटाने के लिए ही महिलाओं के द्वारा अर्थी को कंधा दिलाने का प्रयास किया गया ताकि महिलाओं को सम्मान और इनका हक मिल सके।  

बहरहाल नवादा जिला के कुजैला,पोक्सी,शेरपुर,देदौर, हाजीपुर कहरिया,बेनीपुर,पैजुना, अंधरबारी, मुरहेना आदि गांव, गया जिला के केनारचट्टी, रजवारा, औरैल, बाराचट्टी, चेरकी, शेरघाटी, इमामगंज, डुमरिया  आदि सैंकड़ों गांव में अर्जक पद्धति से शोकसभा कर अंतिम संस्कार करने की परंपरा लोकप्रिय हो गयी है। इस संबंध में गया कालेज में कार्यरत भूगोलवेत्ता प्रो. राम कृष्ण प्रसाद यादव कहते हैं कि कहीं भी न तो स्वर्ग होता है और न नरक,और न वैतरणी,भय और लोभ पैदा करके कर्मकांड के नाम ठगी होती है। अर्जक संघ इसे रोकना चाहता है। अर्जक संघ की इस परंपरा को राजनेतओं ने भी अपना समर्थन दिया है। मसलन पूर्व मंत्री बसावन भगत, भगवान सिंह कुशवाहा, पूर्व विधायक कृष्णनंदन यादव, मुन्द्रिका सिंह यादव, समेत राघवेन्द्र नारायण यादव आदि दर्जनों राजनेता हैं जिनके यहां शादी, श्राद्ध अर्जक पद्धति से ही होता रहा है।

बहरहाल समाज में व्याप्त ब्राह्मणवादी कुरीतियों पर प्रहार करने वाले अर्जक संघ के संस्थापक और उत्तर प्रदेश के पूर्व वित्तमंत्री राम स्वरूप वर्मा का कहना था कि आत्मा का अस्तित्व ही नहीं है, किसी के मरने पर दूसरा जन्म नहीं होता। भाग्य-भगवान श्राप ,नरक आदि काल्पनिक बातों का डर बनाकर कर्मकांड करके शोषण औऱ ठगी होती रही है, साथ ही इन कर्मकांड के माध्यम से महिलाओं को नीचा बनाया गया। उनका कहना था कि दान-दक्षिणा की परंपरा कायम करके धूर्तों ने बगैर मेहनत के जीविकोपार्जन का साधन बना लिया है जिसका विरोध जरूरी है।

वहीं अर्जक संघ के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अरूण कुमार गुप्ता बताते हैं कि गया, नवादा, औरंगाबाद, रोहतास , जहानाबाद अरवल, पटना, वैशाली, मुजफ्परपुर, खगड़िया, पुर्णिया आदि करीब तीस जिलों में अर्जक रीति रिवाज से शादी और श्राद्ध होना शुरू हो गया है। जबकि संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस.आर. सिंह का कहना है कि अर्जक संघ का उद्देश्य श्रम की महत्ता देना ,श्रमशील कौम की एकता बनाना, ,वैज्ञानिक सोच पैदा करना, मानववादी विचारों को बढ़ावा देना है। इन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बंगाल, उत्तराखंड, हरियाणा.पंजाब, आदि दस राज्यों में संघ का गठन कर दिया गया है जहां ब्रहा्मणवादी व्यवस्था की जगह मानववादी व्यवस्था कायम करने के लिए संघ के कार्यकर्ता सक्रिय है।


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लेखक के बारे में

उपेन्द्र पथिक

सामाजिक कार्यकर्ता व पत्रकार उपेंद्र पथिक अर्जक संघ की सांस्कृतिक समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं। वे बतौर पत्रकार आठवें और नौवें दशक में नवभारत टाइम्स और प्रभात खबर से संबद्ध रहे तथा वर्तमान में सामाजिक मुद्दों पर आधारित मानववादी लेखन में सक्रिय हैं

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