देश में गौ रक्षा की बात कहकर दलित-वंचितों को कूपोषित रखने की साजिश की जा रही है। आवश्यकता है कि दलित-बहुजन ब्राह्मणवादी साजिश को समझें और खुद को मजबूत बनाने के लिए मांसाहार करें। ये बातें प्राख्यात सामाजिक चिन्तक प्रो. कांचा आइलैया ने बीते शनिवार को जेएनयू के स्कूल ऑफ़ सोशल साइंसेज के सभागार में आयोजित समारोह में कही। अपनी पुस्तक “हिंदुत्व मुक्त भारत” की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भारत गायों का देश नहीं बल्कि भैंसों का देश है। उन्होंने महात्मा गांधी को जैन बताते हुए कहा कि उत्पादन में तीन जातियों -ब्राह्मण, बनिया और जैनियों की कोई भूमिका नहीं हैं।

उन्होंने कहा कि उपरोक्त तीन जातियों के लोगों को सीमा पर लड़ने के लिए भेजा जाना चाहिए तथा इसके लिए विशेष तौर पर ब्राह्मण रेजिमेंट, बनिया रेजिमेंट और जैन रेजिमेंट का गठन किया जाना चाहिए। प्रो. कांचा ने कहा कि दलित-बहुजनों को संघर्ष करने के साथ लिखने का प्रयास करना चाहिए। “रीड, राइट एंड फाईट” का आह्वान करते हुए उन्होंने शरद यादव को भी अपनी आत्मकथा लिखने का अनुरोध किया। उन्होंने बताया कि वे स्वयं भी अपनी आत्मकथा लिख रहे हैं, जिसका शीर्षक “शेफर्ड ऐज एन एंटलेक्चुअल” है।

कार्यक्रम में प्रथम बी. एन. मंडल स्म्ति सोशल जस्टिस लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किये जाने के बाद राज्यसभा सांसद शरद यादव ने दलित बहुजनों को जाति मुक्त समाज बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि मंडल आन्दोलन का मकसद अलग-अलग जातियों का संगठन नहीं बल्कि वंचितों को एकजुट करना था। लेकिन यह नहीं हो सका है। उन्होंने कहा कि भारत के इतिहास में कबीर जैसा कोई दूसरा विचारक पैदा नहीं हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि पिछड़े वर्ग के लोगों को दलितों के साथ खड़े होना चाहिए। बाबा साहब ने भी महात्मा जोती राव फुले को अपना गुरु माना था जो पिछड़े समाज के थे।

जेएनयू में अफ्रीकन स्टडीज के प्रोफेसर एस. एन. मालाकार की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में शरद यादव को सोशल जस्टिस लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया। इस मौके पर सामाजिक न्याय के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले पांच युवाओं को सम्मानित किया गया। इनमें उड़ीसा के सुमित समुस, टेढ़ी उंगली के शीर्षक से ब्लॉग चलाने वाली लेखिका श्वेता यादव, गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय के छात्र आलोक, युवा साहित्यकार व दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र धर्मवीर गगन और पसमांदा समाज के लिए संघर्ष करने वाले जुबेर आलम शामिल हैं। इस मौके पर पटना विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. शरदेन्दु कुमार, जेएनयू की प्रो. सोना झरिया मिंज सहित अनेक गणमान्य मौजूद रहे।
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