नई दिल्ली/रायपुर। छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जेल के सहायक जेलर दिनेश ध्रुव को निलंबित कर दिया गया है। ध्रुव द्वारा कही गई जिन बातों के कारण सरकार ने उनके खिलाफ कार्रवाई की है, उनमें मूल रूप से आदिवासी संस्कृति के वे तथ्य हैं जिनके बारे में वैदिक ग्रंथों में चर्चा की गयी है। अंतर केवल इतना है कि वैदिक ग्रंथों में मूलनिवासियों को असुर के रूप में प्रस्तुत किया गया है और दिनेश ध्रुव प्रमाण साहित उन्हें अपना पूर्वज बताते हैं।

गोंड आदिवासी परिवार में जन्मे दिनेश ध्रुव अपनी संस्कृति को लेकर सजग रहे हैं। अपनी संस्कृति को सहेजने का आह्वान आदिवासी युवाओं से करने के लिए वे फेसबुक का इस्तेमाल करते रहे हैं। परंतु जिस तरीके से उनके पोस्ट को लेकर उन्हें निशाना बनाया जा रहा है, वह अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला तो है ही, साथ ही उनके जैसे हजारों लोगों का मनोबल तोड़ने की साजिश भी है।
अपने विभाग के पदाधिकारियों के द्वारा की जा रही कार्रवाई के बाद दिनेश ध्रुव दहशत में हैं। उन्होंने फेसबुक पर पूर्व में प्रकाशित पोस्ट हटा दिया है। फारवर्ड प्रेस से दूरभाष पर बातचीत में उन्होंने कहा कि उन्हें निलंबित कर दिया गया है और 3 अगस्त 2017 को जारी निलंबन पत्र में सरकारी सेवा में रहते हुए सरकार व सरकारी नीतियों की आलोचना करने एवं नक्सलियों के समर्थन में लिखने की बात कही गयी है।
बताया जा रहा है कि दिनेश ध्रुव को उनके फेसबुक पोस्ट ‘हर आदिवासी नक्सली नहीं होता’ को आधार बनाकर निलंबित किया गया है। जबकि उनके इस वाक्य से यह तथ्य स्थापित नहीं होता है कि वे नक्सलियाें का समर्थन करते हैं। इसके विपरीत यह वाक्य आदिवासियों के उत्पीड़न के मुद्दे को उजागर करता है। दिनेश ध्रुव मनुवाद के खिलाफ भी मुखर रहे हैं।

रायपुर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र नई दुनिया के अनुसार – “निलंबन की कार्रवाई के बाद ध्रुव ने अपनी फेसबुक वॉल पर शुभचिंतकों के साथ चैट में बताया है- मैंने अपनी पोस्ट में गृहमंत्री को आर्यावर्त का गृहमंत्री लिखा, क्या गलत लिखा? उन्होंने इसी चैट में अपने ऊपर लगे आरोपों की भी जानकारी दी है। बताया है कि ‘दिकू‘ शब्द को ज्यादा गम्भीरता से लिए हैं।”
नई दुनिया के मुताबिक ही दिनेश कहते हैं कि वे मुझसे ही पूछ रहे थे ये दिकू क्या है? सोचो, यही दिकू मेरी जांच करेंगे। ध्रुव ने अपनी पोस्ट में बताया है कि दूसरा इल्जाम – ‘मैं हिंन्दुओं की धार्मिक भावना को आहत करता हूं। हां, करूंगा। तुम हमारे पेनगढ़ गोत्र बाना को आहत करते हो, हम हमारे भैंसासुर, रावेन, पेन, मेघनाद की पूजा करते हैं, तुम क्यों आहत करते हो आदिवासियों को?’ उन्होंने यह भी कहा है कि मैं आदिवासी हूं। वेतन नहीं मिलेगा तो जंगल की जड़ी-बूटी खा लूंगा, पेड़-पौधे का डारा-पाना चबा लूंगा। ये दिकू क्या करंगे, जब सम्मिलित आदिवासी शक्ति से इनका सामना होगा?
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