भीम आर्मी के संस्थापक चद्रशेखर ‘रावण’ पर योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) लगाना इस बात का सबूत है कि रामराज इस नए रावण से भयभीत है। वह किसी भी कीमत पर उन्हें जेल से बाहर नहीं आने देना चाहती है, क्योंकि उसे इस बात की आशंका है कि यदि यह दहाड़ता शेर बाहर आकर नौजवानों को ललकारेगा, तो दलित-बहुजन नौजवान उसके पीछे चल पड़ेंगे, और मोदी-योगी के रामराज को खटाई में डाल सकते हैं। दलित-बहुजन बहुत अच्छी तरह समझ चुके हैं कि भारत में रामराज की स्थापना हो चुकी है। वही रामराज जिसमें शंबूक एवं रावण का वध स्वयं राम के हाथों किया गया था। इस राज्य में ‘शबरी’ सुरक्षित रह सकती है, विभीषण को राजपाट मिल सकता है, लेकिन शंबूक और रावण का वध सुनिश्चित है। सीताएं तो राम और उनके अनुयायियों के हाथों बहुत पहले से ही तिरस्कार का दंश झेल रही हैं। इस सारी परिघटना के बीच चन्द्रशेखर ‘रावण’ पर रासुका लगाने के मुद्दे पर दलितों की नेता बसपा सुप्रीमो मायावती जी की चुप्पी सबसे आश्चर्यजनक है।
आप सभी जानते हैं कि 2014 में केन्द्रीय सत्ता पर कब्जा करने के पश्चात् रामराज स्थापित करने के लिए कृतसंकल्पित भारतीय जनता पार्टी ने मार्च 2017 में विधायक न चुने जाने के बावजूद भी उत्तरप्रदेश की कमान अजय सिंह बिष्ट उर्फ आदित्यनाथ योगी उर्फ महन्त आदित्य नाथ को सौंपी। योगी के सत्तारूढ़ होते ही इनके समर्थकों ने अपनी थोपी हुई तथाकथित प्रतिष्ठा पुनः स्थापित करने के लिए 05 मई 2017 को शब्बीरपुर की दलित बस्ती पर तलवार, लाठी-भाले के साथ, 40 पुलिसकर्मियों की उपस्थिति में हमला बोल दिया। राजपूतों का यह ताण्डव दिन के उजाले में 03 घंटे तक चला। दलितों को बुरी तरह मारा-पीटा गया, मोटर साइकिल, टी.वी., फ्रिज, ट्रैक्टर आदि सामान तोड़ दिये गये, जला दिये गए। इस भीड़ में राजपूतों के अत्याचार की शिकार पूर्व सांसद फूलन देवी का हत्यारा भी शामिल था। इस घटना के विरोध में ‘भीम आर्मी’, जो बाबासाहब को अपना आदर्श मानती है तथा उस इलाके में कई तरह की सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय है, ने 9 मई 2017 को सहारनपुर में शांतिपूर्ण बंद का आह्वान किया तथा शब्बीरपुर के दलितों को न्याय दिलाने की मांग की। प्रशासन की अक्षमता के कारण राजपूतों ने शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन को विफल करने हेतु अराजकता फैलायी जिससे संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हुई।
इस घटना की सारी जिम्मेदारी प्रशासन और शासन द्वारा भीम आर्मी के संस्थापक चन्द्रशेखर आजाद ‘रावण’ पर डाली गयी तथा चन्द्रशेखर आजाद ‘रावण’ सहित दर्जनों दलित युवकों को विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया गया। शासन-प्रशासन की इस कार्यवाही से दलितों में जबर्दस्त आक्रोश फैला जिसकी अभिव्यक्ति 21 मई 2017 को जंतर-मंतर पर हुए विरोध-प्रदर्शन में हुई। पुलिस प्रशासन द्वारा भगोड़ा घोषित किये जाने के बावजूद भी जंतर-मंतर पर उपस्थित ‘रावण’ को गिरफ्तार नहीं किया गया। कई दिनों के पश्चात् बड़े ही नाटकीय ढंग से पुलिस ने ‘रावण’ को गिरफ्तार किया। लंबे कानूनी संघर्षों के पश्चात् 02 नवम्बर 2017 को हाईकोर्ट से जमानत मिलने की खबर आते ही, पुलिस ने चन्द्रशेखर रावण को रासुका में निरुद्ध कर दिया। पुलिस की इस कार्यवाही से पूरा दलित समाज स्तब्ध रह गया। रामराज में दलितों का उत्पीड़न होगा, यह तो मालूम था लेकिन इस हद तक होगा, इसकी कल्पना शायद दलितों को नहीं थी।
इस रामराज में दलितों के उत्पीड़न की कुछ अन्य घटनाओं का जिक्र यहां आवश्यक है। बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती को, जो उत्तरप्रदेश की चार बार मुख्यमन्त्री रह चुकी हैं, ‘राज्यसभा’ में बोलने नहीं दिया गया। इससे क्षुब्ध होकर उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। प्रो. कांचा अलैया ने 2009 में एक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में उन्होंने दलितों, पिछड़ों की खराब आर्थिक परिस्थितियों तथा भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्यों के कब्जे का विश्लेषण किया। इसलिए 2017 में उनको धमकियां दी गयीं, उन पर जानलेवा हमला हुआ, प्रशासन द्वारा नजरबन्द किया गया तथा मानहानि का मुकदमा दर्ज कर दिया गया है।
यहां पर जिन घटनाओं का जिक्र किया गया है वे सभी घटनायें राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में रही हैं। दलितों के साथ इस तरह की अनगिनत घटनायें प्रतिदिन घटित होती हैं, जो स्थानीय समाचारपत्रों में भी स्थान नहीं बना पाती हैं। इन घटनाओं से भारतीय जनता पार्टी के नाम पर शासन चलाने वाले नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली पर भारतीय कम्युनिस्टों में भले ही मतभेद हो कि वर्तमान भारतीय राजसत्ता फासीवादी तरीके से चलायी जा रही है या नहीं, लेकिन भारतीय दलित बहुत अच्छी तरह समझ चुके हैं कि भारत में ‘रामराज्य’ की स्थापना हो चुकी है। चन्द्रशेखर ‘रावण’ पर रासुका लगाने के विरोध में अधिकांश दलित नेता और दलित बुद्धिजीवियों का बयान तक नहीं आना, इस बात का सबूत है कि दलित समझ गया है कि यदि जबान खोली तो उसकी हालत ‘रावण’ जैसी हो सकती है। दलित बुद्धिजीवियों का डर जाना थोड़ा चकित तो करता है लेकिन स्वाभाविक भी है। क्योंकि उनकी जान-माल को खतरा उत्पन्न हो सकता है। लेकिन बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती की चुप्पी और डर समझ से परे हैं। चन्द्रशेखर को रासुका जैसे मानवाधिकार विरोधी कानून के अन्तर्गत निरुद्ध करने की राज्य सरकार की कार्यवाही की उन्हें कड़े शब्दों में घोर निंदा करनी चाहिए। आज भारत के करोड़ों दलितों की निगाहें मायावती पर टिकी हुई हैं। सिर्फ दलितों का वोट लेना ही नहीं, उनको संरक्षण देना भी मायावती जी की जिम्मेदारी है। यदि इस जिम्मेदारी का निर्वहन पूरी शिद्दत से मायावती नहीं करती हैं तो दलितों का जो होना होगा, होगा ही, लेकिन मायावती को इतिहास कभी माफ नहीं करेगा। साथ ही साथ दलित बुद्धिजीवियों को भी अन्याय के खिलाफ लड़ना ही होगा क्योंकि अन्य कोई रास्ता नहीं है।
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