बीते दिनों बुद्ध की धरती पर दो अहम घटनायें घटित हुईं। पहली घटना में अति पिछड़ी जाति परिवारों के तीन मासूमों का अपहरण किया गया। इनमें से एक लोहार और दो तुरी जाति के परिवार के बच्चे थे। इनमें से एक बच्ची की निर्मम हत्या सामुहिक दुष्कर्म के बाद कर दी गयी। दूसरी घटना तीन मुसलमान युवकों को आतंकवादी होने के शक में गिरफ्तार किये जाने से संबंधित है। प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटेकर ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। अपने पत्र में उन्होंने नीतीश सरकार में मंत्री व गया के स्थानीय विधायक डॉ. प्रेम कुमार पर अभियुक्त को बचाने का अारोप लगाया है।

प्रति,
मा. श्री नीतीश कुमार,
मुख्यमंत्री, बिहार
13.02.2018
आशा है आप स्वस्थ होंगे।
यह पत्र दो विशेष घटनाओं संबंधी गया में आपके प्रशासन के बर्ताव व गैरक़ानूनी कार्रवाई संबंधी लिख रही हूँ ताकि आप जल्द हस्तक्षेप करें।
(विदित हो कि मैं जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के बोधगया में आयोजित राज्य सम्मेलन में भाग लेने आयी थी; गया की इस चर्चित दोनों मामले के प्रभावित लोगों के परिजनों से समन्वय के कुछ साथियों के साथ 11 फरवरी की शाम मिलकर बातचीत की थी)
- पहली घटना 7 फरवरी 2018 को गया शहर के गेवालबिगहा अखाड़ा में हुए बर्बर व अमानवीयता से संबंधित है जिसमें एक गरीब संजय कुमार की 8 साल की बच्ची तनिष्का कुमारी उर्फ तन्नू के साथ साजिश करके अपहरण कर बलात्कार करने के उपरांत निर्ममता के साथ बर्बर व घिनौने तरीके से हत्या की गयी, उसके साथ दो नन्हें बच्चों पर पर भी बर्बरतापूर्ण हिंसक हमला करके उन्हें जख्मी किया गया। पूरी बस्ती और पुलिस भी जानते हैं कि यह घिनौना कृत्य छोटू रवानी नाम के एक अपराधी गुंडे ने किया, जो शराबी, नशाखोर, और हिंसाखोर अपराधी व्यक्ति रहा है। 2014 में इनसे संजय कुमार (जो नगर निगम में टेम्पो के ड्राइवर हैं) के घर मोबाइल फ़ोन तथा उनकी छोटी दूकान से महंगी सिगरेट व अन्य सामानों की चोरी करते पकडा गया था और उस समय छोटू के खिलाफ प्रकरण दाखिल हुआ था। इस मामले में जेल भी गया था। इसके अलावा वह अन्य मामलों में अभियुक्त है और जेल जाता रहा है। लेकिन इस बार छोटू के इतना बड़ा अपराध करने पर बस्ती के लोगों की शिकायत पर उसे गिरफ्तार किया लेकिन उसका परिवार भी उसका साथ देता है, तो भी उन्हें गिरफ्तार ना करके छोड़ा गया।
बस्ती के लोग घटना के बाद आक्रोशित थे लेकिन पूर्वतः शांतिप्रिय भी हैं जिसके बाद भी रैपिड एक्शन फोर्स लाकर एस.एस.पी श्रीमती गरिमा मलिक के आदेश पर, घर-घर जा कर तोड़फोड़ मारपीट की गयी। कई कारें, कई आवश्यक सामान, कई पानी की टंकी फोड़ दी गई और इस पुलिस जुर्म के बाद उल्टे मुहल्ला वालों व निर्दोष लोगों पर पुलिस प्रशासन द्वारा कड़ी धाराओं को लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज की गयी है। यह तो और ही बड़ा अत्याचार है। पुलिस प्रशासन के इस घृणित कृत्य के बाद पीड़िता के परिजनों पर संवेदनशीलता दिखाने के बजाय मृत बच्ची के पिता को, हत्या के बावजूद न तो थाने, न निगम कार्यालय पर या अन्य जगह बुला कर, घंटों तक बिठा कर भी उन्हें नहीं सुना गया। आज तक उस परिवार को कोई राहत भी नहीं मिली। पूरा परिवार दहशत में है। घटना के कारण गया के सभी प्रबुद्ध नागरिकों, संगठनों में काफी रोष एवं आक्रोश है। यह बात आप तक पहुंची होगी।
यह घटना आपकी समीक्षा यात्रा के गया से शुरू होने के समय हुई और शायद उसी कारण आपने गया हवाई अड्डे पर ही अपनी समीक्षा सभा की। मुहल्ले के लोगों के कहने के अलावा यह स्वाभाविक भी लगता है कि गया में आपकी सभा नही करा पाने की विफलता के मद्देनजर लोगों पर रैपिड एक्शन फोर्स से अत्याचार कराया गया। उसकी खोज और निष्पक्ष जांच ज़रूरी है। बस्ती के लोगों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के तत्काल खारिज करवा कर छोटू के परिवार के सभी बड़े सदस्यों की गिरफ्तारी भी ज़रूरी है। साथ ही मृतका के परिजनों को समुचित मुआवजा (कम से कम 10 लाख) और दहशत में जी रहे परिजनों को सुरक्षा की गारंटी सरकार को लेनी चाहिए। अन्य दो घायलों के समुचित सरकारी खर्च पर सुविधापूर्ण इलाज व उनके परिजनों को भी सहायता देनी चाहिए। इन घायल बच्चों और मृतका के अन्य भाई-बहनों को भी शहर से बाहर किसी अच्छे आवासीय विद्यालय में पूरी शिक्षा दिलाने की गारंटी भी सरकार को करनी चाहिए।
वहाँ के लोगों के भीतर चल रही आशंका की इस घटना के आरोपी स्वजातीय वरीय नेता, जो आपकी सरकार में विराजमान हैं; ध्यान हटाने के लिए कुछ अनहोनी करा सकते हैं। इस पर सचेत रहना चाहिए । अच्छा रहता कि आप खुद इन निर्मम घटना के पीड़ितों से जाकर मिलते।
- दूसरी घटना, मारूफगंज मोहल्ले में 3 मुस्लिम युवाओं की गिरफ्तारी की है। अनवर उर्फ मुन्ना, शाद अनवर और शमी नाम के इन तीनों युवाओं की गिरफ्तारी सर्वोच्च अदालत के डी.के बासु की केस में घोषित फैसले अनुसार कोई प्रक्रिया का पालन न करते हुए हुई है। न ही कोई अरेस्ट मेमो, न ही कौन सी धाराएँ लगायीं, उसकी जानकारी दी गयी और न ही माता-पिता को यह बताया गया कि उनके बच्चे कहाँ हैं। यह पूर्ण रूप से गैर क़ानूनी है और उन तीनों को इस तरह से गायब करना अपराध है, भले उनका दोष हो या नहीं हो!
इन तीनों युवाओं को ‘आतंकवादी’ यानि आतंकवादियों को मदद देने के संदेह पर जब गिरफ्तार किया गया तब भी बस्ती के तो सभी लोग एक राय रखे थे कि ये तीनों सादगी से, इमानदारी से मोटर/मशीन रिपेयरिंग या पढ़ाई करते हुए जीते थे। उनके परिवार 25 से 45 साल पहले से यहाँ रहते थे और उनमें से किसी का भी न किसी से झगडा था, न ही कोई विवाद। इन तीनों पर पहले कोई प्रकरण दर्ज नही था, तो क्यों न इससे संबंधी जांच पहले शुरू की गयी?
हम जब उनके घर पहुंचे थे, तभी उन्हें मुख्य न्यायिकदंडाधिकारी के घर पेश किया गया। यह गिरफ्तारी के 30 घंटे के बाद ही हुआ। मीडिया में खबर है कि तीनों में से एक शाद अनवर को निजी मुचलके पर कल ही छोड़ दिया गया; पर परिजनों का कहना है कि आज दिन में 11 बजे घर आया और 45 मिनट के बाद पुनः थाने बुलाया गया। शेष दो को जेल भेजा गया। यह सब कुछ संदिग्धता के दायरे में दिखाई देता है।
एस.एस.पी गरिमा मलिक के होते हुए, यह कार्रवाई भी क़ानूनी उल्लंघन बताती है। कश्मीर या और कहीं से उनके सम्बन्ध हैं या नहीं, ठोस अपराध क्या है, इस पर संदेह है। परिवारजन पूर्ण रूप से अंधेरे में क्यों रखे गये हैं? इस की जांच जल्द न्यायिक प्रक्रिया के द्वारा किसी जाने-माने पूर्व न्यायाधीश के द्वारा जांच करवाये जाने का कष्ट करें। आपसे, इस घटना के बाद, अपेक्षा है कि इस प्रकार की घटना फिर से बिहार की सर्वधर्म-समभावी और जनतांत्रिक संघर्ष के लिए मशहूर बिहार में न घटे, यह सुनिश्चित करें। श्रीमती गरिमा मालिक, एस.एस.पी की भूमिका पहले भी संदेह के घेरे में रही है, इसलिए त्वरित तबादला व उनकी भूमिका की जांच भी की जाय।
आपसे न्याय की उम्मीद में,
मेधा पाटकर
जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, नर्मदा बचाओ आन्दोलन
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