प्रचुर खनिज संपदा वाले छत्तीसगढ़ प्रदेश में किसान, मज़दूर, बहुजन, आदिवासियों पर सरकारी दमन की घटनाएँ बढती जा रही हैं। जल, जंगल और ज़मीन से आदिवासी दूर किये जा रहे हैं। अपने हक-हुकूक के लिए वे लगातार संघर्षरत हैं। सूबे में हाल के महीनों में घटित कुछ घटनाओं पर नजर डालें तो स्थिति की भयावहता का अनुमान सहज ही संभव है।
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पहला उदाहरण कांकेर जिले के पखांजूर ब्लाक के परतापुर का है। यहां के पारम्परिक ग्राम सभा के सदस्यों, सभापति/अध्यक्ष, सचिवों के खिलाफ नक्सली जैसे गंभीर आरोपों में मामले दर्ज कर दिए गए हैं। जबकि ग्रामीण ग्रामसभा की अधिकरों के प्रति जागरूक होकर संवैधानिक फैसले लेने लगी थी। 12 दिसम्बर 2017 को दर्ज एफआईआर के अनुसार जान से मारने का प्रयास, विस्फोटक रखने व इस्तेमाल करने के तहत ग्रामसभा के अध्यक्ष राजाराम कोमरा और सभापति श्यामलाल कोमरा को आरोपी बनाया गया है। हालांकि पुलिस ने अभी तक दोनों को गिरफ्तार नही किया है। इस संबंध में जांच करने की बात कही जा रही है।
दूसरा मामला विस्थापन की लड़ाई से जुड़ा है। वेदांता कम्पनी को छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले अंतर्गत बारनवापारा अभ्यारण्य क्षेत्र को खनन के लिए आवंटित किया गया है। कंपनी ने काम करना शुरू कर दिया है और इसके लिए इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों को मारपीट कर भगाया जा रहा है। एक आदिवासी परिवार ने इसके खिलाफ आवाज उठाया तब कंपनी के शह पर वन विभाग के अधिकारियों द्वारा उनके साथ मारपीट किया गया और उनके खिलाफ कई मुकदमे दर्ज किये गये। पुलिस ने भी कार्रवाई करते हुए परिवार के मुखिया राजकुमार कौंध को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। हालांकि 11 दिन बाद ही न्यायालय ने उन्हें जमानत दे दिया।
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तीसरी घटना बीते फरवरी महीने में मूंगेली जिले के पथरिया थाना क्षेत्र की है। ढोढापुर निवासी एक दलित महिला के साथ ठाकुरों ने सामूहिक बलात्कार को अंजाम दिया। जब पीड़िता ने पुलिस में मामला दर्ज कराना चाहा तो उसे भगा दिया गया। बाद में सामाजिक कार्यकर्ताओं के हस्तक्षेप के बाद पुलिस को मामला दर्ज करना पड़ा और आरोपियों की गिरफ्तारी करनी पड़ी। सामाजिक कार्यकर्ता विजय शकंर परते इस मामले के बारे में बताते हैं कि गैंगरेप के आरोपियों को भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अथवा विधायक मंत्री ने संरक्षण दिया था और पुलिस पर कार्रवाई न करने का दबाव बनाया था। जब मैंने इस पूरे मामले को लेकर सवाल उठाया तो बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने धमकाते हुए मेरे खिलाफ थाने में शिकायत कर दी। वहीं इस मामले में स्थानीय थानेदार ने जांच प्रक्रिया जारी रहने की बात कही है।
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आदिवासियों के अधिकारों को लेकर लगातार संघर्ष करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार के मुताबिक छत्तीसगढ़ में आदिवासियों पर फर्जी मुकदमों की बाढ़ आ गई है। वे कहते हैं कि दुनिया के 62 देशों में आदिवासियों को समाप्त कर दिया गया है। अस्ट्रेलिया में तो आदिवासियों की लाशों के बदले साम्राज्यवादी ताकतें लोगों को पैसा देती थी। उसी प्रकार से छत्तीसगढ़ में सरकार आदिवासियों को झूठे मुकदमों में फंसाने और एनकाउंटर के नाम पर उनकी हत्या करने पर नकद इनाम दे रही है। हिमांशु कुमार ने बताया कि आज छत्तीसगढ़ के जेलों में सबसे अधिक आदिवासी बंद हैं। हालत यह है कि आदिवासी कैदियों को सोने के लिए जगह नहीं मिलती है और उन्हें शिफ्टों में दो-दो घंटे के लिए सोना पड़ रहा है। उनके अनुसार आदिवासियों के खिलाफ दर्ज मामलों में से 95 फीसदी मामलों में अभियुक्तों को अदालत द्वारा आरोप मुक्त किया जाता है।
बहरहाल छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में सरकारी दमन की घटनाओं की सूची लंबी है। स्थानीय स्तर पर आदिवासी इसके खिलाफ आंदोलन कर अपना विरोध व्यक्त करते हैं। लेकिन उनके वोटों से सांसद और विधायक बनने वाले अभी भी खामोश हैं।
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