देश में उद्यमिता के क्षेत्र में भी भेदभाव किया जा रहा है। त्रासदी यह है कि एक ओर नीरव मोदी जैसे उद्यमियों को लूटने की खुली छूट दी जाती है तो दूसरी ओर देश के दलित उद्यमियों को मामूली राशि भी नहीं दी जा रही है। वह भी तब जबकि देश में दलित उद्यमियों के लिए वेंचर कैपिटल फंड की व्यवस्था है। गौरतलब है कि इस फंड के जरिए केंद्र सरकार दलित उद्यमियों को नया उद्यम स्थापित करने या उद्यम का विस्तार करने के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराती है। इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रति वर्ष 200 करोड़ रुपए का कारपस फंड उपलब्ध कराया जाता है। वर्तमान में इस फंड की देखरेख की जवाबदेही आईएफसीआई(इंडस्ट्रीयल फाइनांस कारपोरेशन ऑफ इन्डिया) वेंचर कैपिटल फंड लिमिटेड को दी गयी है।
उद्यमियों की पीड़ा
रविदास एयरलाइंसा प्राइवेट लिमिटेड, रविदास इंडस्ट्रीज लिमिटेड और रविदास इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड सहित करीब नौ कंपनियों के मालिक उपेंद्र रविदास भी पीड़ितों में से एक हैं। वे बताते हैं कि 2014 में जब दलितों के लिए वेंचर कैपिटल फंड की शुरूअत की गयी थी, तभी उन्होंने रविदास इंडस्ट्रीज लिमिटेड की ओर से मुंबई में अपनी शू फैक्ट्री के विस्तार के लिए 5 करोड़ रुपए लोन के लिए आवेदन दिया था। आईएफसीआई के अधिकारियों द्वारा उनके दिये गये प्रस्ताव को सहमति दी गयी। बाद में लाेन के लिए तमाम प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद लोन स्वीकृत किये जाने की सूचना भी दी गयी और आईएफसीआई ने अपने वेबसाइट पर इस बाबत जानकारी सार्वजनिक कर दी। लेकिन लोन आजतक नहीं मिला। उपेंद्र रविदास बताते हैं कि लोन स्वीकृत होने की सूचना मिलने के बाद हम आश्वस्त थे कि हमारी कंपनी को लोन जरूर मिलेगा। लेकिन करीब एक साल बाद यह कहा गया कि आप अपना प्रस्ताव दुबारा भेजें। उन्होंने कहा कि जब एक बार प्रस्ताव को स्वीकृत कर लिया गया तो फिर दुबारा क्यों मांगा जा रहा है। इस पर आईएफसीआई वेंचर फंड लिमिटेड द्वारा आजतक कोई जवाब नहीं दिया गया है।
केंद्र सरकार द्वारा कारपस फंड के तहत 200 करोड़ रुपए की उपलब्धता सुनिश्चित होने के बावजूद कंपनी के गैर पेशेवर व्यवहार के कारण लोन के लिए आजतक इंतजार करने वालों में उपेंद्र रविदास अकेले नहीं हैं। आईएफसीआई वेंचर कैपिटल फंड लिमिटेड द्वारा वर्ष 2016 में जारी सूचना के अनुसार पहले दो वर्षों के दौरान कुल 64 दलित उद्यमियों के प्रस्तावों को स्वीकृति दी गयी। इसके तहत 240 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता दलित उद्यमियों दी जानी थी। लेकिन कंपनी के मुताबिक कुल 18 उद्यमियों को 80 करोड़ 41 लाख 38 हजार रुपए की वित्तीय सहायता उपलब्ध करायी गयी। शेष 46 उद्यमियों को इस योजना का लाभ स्वीकृति के बावजूद नहीं दी गयी। इन उद्यमियों में रविदास इंडस्ट्रीज लिमिटेड(5 करोड़) के अलावा जेके सॉफ्टटेक प्राइवेट लिमिटेड, बेलगाम, कर्नाटक(डेढ़ करोड़ रुपए), भाग्यलक्ष्मी फेरो एलॉयज प्राइवेट लिमिटेड, नागपुर, महाराष्ट्र(80 लाख रुपए), ग्रीन बेल्ट इंडस्ट्रीज, गुवाहाटी, आसाम(6 करोड़ 62 लाख रुपए) आदि शामिल हैं।
भाग्यलक्ष्मी फेरो एलॉयज प्राइवेट लिमिटेड के विपणन प्रबंधक के. सुधीर के मुताबिक उनकी कंपनी सफाई के लिए उपयोग में लाये जाने वाले उत्पादों मसलन झाड़ू, वाइपर और फिनॉयल इत्यादि का उत्पादन करती है। वर्ष 2010 में स्थापित उनकी कंपनी का सलाना कारोबार 5 करोड़ रुपए से अधिक का है। सुधीर ने बताया कि वर्ष 2014 में उनकी कंपनी ने अपनी उत्पादन क्षमता का विस्तार करने के लिए 80 लाख रुपए वित्तीय सहायता के लिए आवेदन दिया था, जिसे आईएफसीआई ने स्वीकार कर लिया। लेकिन आज तक कंपनी को यह सहायता नहीं मिल पायी है।
वहीं गुवाहाटी में ग्रीन बेल्ट इंडस्ट्रीज नामक कंपनी के निदेशक मंडल के सदस्य टिकेन हेकरूजम ने बताया कि 2012 में स्थापित उनकी कंपनी फर्नीचर उत्पाद बनाती है। क्षमता विस्तार से संबंधित एक परियोजना के लिए 6 करोड़ 62 लाख रुपए के लोन के लिए आवेदन दिया था। आईएफसीआई द्वारा परियोजना के मूल्यांकन के बाद स्वीकृति संबंधी जानकारी दी गयी। लेकिन कंपनी को राशि आज तक नहीं मिली। उनके मुताबिक सरकार को यदि उद्यमियों की कोई सहायता नहीं करनी है तो वह नहीं करे, लेकिन दलितों के वेंचर कैपिटल फंड कहकर दलितों की उद्यमिता का मजाक नहीं बनाये।
डिक्की की योजना को यूपीए सरकार ने दी थी हरी झंडी
दलित उद्यमियों को नये उद्यम स्थापित करने में सहायता हेतु एक कारपस फंड की शुरूआत दलित उद्यमियों के संगठन डिक्की द्वारा जून 2013 में की गयी थी। तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने डिक्की के वार्षिक कार्यक्रम में इसकी विधिवत शुरूआत की थी और सिडबी यानी स्मॉल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बैंक को तत्काल प्रभाव से दस करोड़ रुपए का फंड देने का निर्देश दिया था। प्रारंभ में भी यही बात कही गयी थी कि उद्यमियों के प्रोजेक्ट की गुणवत्ता का आकलन करने के बाद बिना थर्ड पार्टी गारंटर और कोई भी परिसंपत्ति गिरवी रखे बगैर वित्तीय सहायता उपलब्ध करायी जाय।
सरकार बदली, फंड भी बढ़ा, लेकिन नतीजा सिफर
2014 में भाजपा सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद दलित वर्ग के उद्यमियों के लिए शुरू की गयी इस योजना को विस्तार दिया गया। इसके लिए केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में प्रस्ताव लाया गया और कहा गया कि अब यह फंड दस करोड़ के बदले 200 करोड़ रुपए का होगा। साथ ही इसकी जिम्मेवारी एक भारत सरकार की अपनी कंपनी आईएफसीआई वेंचर कैपिटल फंड को दी गयी। भारत सरकार के कंपनी मामलों के मंत्रालय के वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार यह कंपनी 12 जनवरी 1988 को पंजीकृत की गयी। 21 जून 2016 को इस कंपनी द्वारा मंत्रालय को बताया गया कि उसने 25 करोड़ रुपए की राशि अपने खाते से लोन एवं अग्रिम के रूप में वितरित किये। जबकि 25 नवंबर 2014 को दी गयी जानकारी के पास कंपनी के पास कुल 125 करोड़ रुपए की धनराशि मौजूद थी। जाहिर तौर यह राशि भारत सरकार द्वारा दलित उद्यमियों के लिए बनाये गये वेंचर कैपिटल फंड की राशि थी।
बहरहाल, यह साफ है कि आईएफसीआई वेंचर कैपिटल फंड लिमिटेड भारत सरकार के महत्वकांक्षी योजना को क्रियान्वित करने में नाकाम रही है। इसका खामियाजा उद्यमियों को उठाना पड़ रहा है। गौरतलब है कि इस वर्ष भारत सरकार ने ओबीसी वर्ग के उद्यमियों के लिए भी वेंचर कैपिटल फंड बनाने का एलान किया है। इसके तहत भी 200 करोड़ रुपए का कारपस फंड भारत सरकार उपलब्ध कराएगी। इसकी जिम्मेदारी भी आईएफसीआई वेंचर कैपिटल फंड लिमिटेड ही निभायेगी।
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