गोंड संस्कृति भारत की प्राचीन संस्कृतियों में से एक है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओड़ीशा, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और झारखंड सहित कई राज्यों में गोंड समुदाय के लोग रहते हैं। गोंडी इनकी मुख्य भाषा है। इन दिनों 19 मार्च, 2018 से 23 मार्च, 2018 तक नई दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में ‘गोंडी भाषा मानकीकरण कार्यशाला’ का आयोजन चल रहा है। कार्यशाला में दूसरे दिन हंगामा हुआ और हालत यह हो गयी कि कार्यक्रम के आयोजकों ने गोंडी समुदाय के लोगों को इस कदर मजबूर कर दिया कि वे अपना मुंह न खोलें। लेकिन गोंडी समाज की महिलाओं ने निर्भीक हो अपना विरोध व्यक्त किया है।

आदिवासी मिथकों के हिन्दुवादी व्याख्या से शुरू हुआ विवाद
आयोजन के दूसरे दिन एक प्रमुख वक्ता के रूप में पुरातत्व विशेषज्ञ डॉ. डी. वी. शर्मा ने आदिवासी मूल्यों व मिथकों की व्याख्या हिन्दुवादी तरीके से की। विवाद के बारे में मराठी लेखिका उषाकिरण अत्राम ने फारवर्ड प्रेस को बताया– उन्होंने ( डॉ. डी. वी. शर्मा ने ) कहा कि पृथ्वी का निर्माण ब्रह्मा ने किया है। उनके मुंह से जो निकला है वही वेद है। उनकी वाणी से जो निकला, वही भाषा है। इस प्रकार भाषा का निर्माता भी ब्रह्मदेव हैं। सबसे प्राचीन भाषा ब्राह्मी लिपि है। संस्कृत का जन्म भी इसी से हुआ है। शर्मा ने बताया कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। इसी प्रकार शर्मा ने हम सभी को दो उदाहरण दिया। उनके द्वारा दिखाये गये एक तस्वीर में पाईप के जैसे दो चीजें थीं। इसके बारे में बताया कि इसमें एक मछली है जो स्त्री की योनि है और दूसरी तरफ है, वह पुरूष का लिंग है। इससे ही सृष्टि का निर्माण होता है। उन्होंने कहा कि मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में जो चित्रलिपि है, उसमें ब्रह्मा का चित्र है। उसी चित्र में अग्निकुंड है। अग्नि के कारण ही मानव का निर्माण हुआ है। शर्मा ने एक और तस्वीर दिखलाया इसमें वीर्य दर्शाया गया है।
लिंगो की मनुवादी व्याख्या पर भड़कीं लेखिका
आत्राम ने अपनी बात जारी रखीं– शर्मा बार-बार रामायण, महाभारत और वेद-पुराण का उदाहरण दे रहे थे। वे हम सभी को गधा समझ रहे थे। उन्होंने हम सभी के समक्ष अपनी बातें ऐसे रखी, जैसे हम कुछ भी नहीं जानते हों। शर्मा के बोलने के बाद मुझे अच्छा नहीं लगा। मैंने विरोध किया। मैंने उनसे कहा कि अभी तक आपने जो कुछ भी बताया है, वह हमारी संस्कृति, भाषा और परंपराओं के खिलाफ है। हम गोंड समुदाय के लोग मूर्तिपूजक नहीं हैं और हम निसर्गवादी हैं। हमारे आराध्य लिंगो की फिलास्फी कहती है कि सृष्टि में जीव का निर्माण हो गया। वह चाहे मानव हो या पशु, पंछी या पेड़-वनस्पति। नर और मादा के मिलन से ही जीव का जन्म होता है। आपने कहा है कि ब्रह्मा के मुंह से सृष्टि का जन्म हुआ, पूर्णतया गलत है। यदि आप पढ़े लिखें हैं और अपने विज्ञान पढ़ा है तो आप यह समझते होंगे कि पुरूष गर्भधारण नहीं कर सकते। आपका मिथक ब्रह्मा आपके हिसाब से ही पुरूष रहा होगा। उसने मनुष्य को कैसे पैदा किया, हमें आपका लॉजिक तर्कहीन लगता है। आपकी पूरी फिलास्फी लिंगो और हम आदिवासियों की फिलास्फी के अलग है। आपने सिघू घाटी सभ्यता के संबंध में मोहजोदड़ों में मिले अवशेषों की बात कही है और आपने कहा है कि उसमें वीर्य के निशान व स्त्री-पुरूष के जननांग हैं, तो यह पूरी तरीके से गलत है। हमारे पुरोधा आचार्य डॉ. मोती रावण कंगाली ने सैंधवी भाषा पर शोध किया है और हमें यह बताया है कि सिंधू घाटी के मिले अवशेषों में लिपियां गोंडी लिपि में है। मिले मुद्रा में जो आकृति है वह हमारे बाबा लिंगो की है। साथ ही बैल, मछली व अन्य पशु पंछी हैं, वे हमारे गोत्र हैं। आकृति में उपर जो रेखायें हैं, वे वीर्य नहीं बल्कि हमारी लिपि है।

मंत्रालय तक पहुंचा विवाद, दी गयी कार्यक्रम को रद्द करने की धमकी
इंदिरा गांधी कला केंद्र के सभागार में चल रहे कार्यक्रम में इस क्रम में भारी विवाद हुआ और गोंडी समाज के लोगों ने कड़ा विरोध किया। इसके पहले प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने शताली शेडमाके का एक वीडियो अपने फेसबुक पर जारी कर दिया था जिसमें शताली ने कलाकेंद्र के एक द्वार पर गोंडी परंपरा के मनुवादी व्याख्या किये जाने पर विरोध व्यक्त किया था। सूत्रों की मानें तो हिमांश कुमार पर दबाव बनाया गया कि वे अपना वीडियो हटा लें। साथ ही कार्यक्रम में शामिल लोगों को यह धमकी दी गयी कि यदि उन्होंने मुंह खोला तो कार्यक्रम को रद्द कर दिया जाएगा और इस कारण गोंडी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया जाएगा।

रमणिका गुप्ता ने भी किया विरोध
आदिवासी विषयों की जानकार व साहित्यकार रमणिका गुप्ता ने गोंडी परंपराओं और भाषाओं के मनुवादी व्याख्या का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि मनुवादियों ने ऐसे ही झूठ फैला कर इस अभिजन समाज ने लोगों को भ्रमित किया है और जंगलों में रहने वाले आदिवासी समाज को अपमानित किया है। आज जरूरत है इसके खिलाफ आवाज़ उठाने की। इन्होंने ‘रक्षस’, यानी जो रक्षा करता है, शब्द को बदलकर आदिवासियों को ‘राक्षस’ करार दे दिया। दानवीर शब्द को दानव में बदल दिया और समाज में एक भ्रम फैला दिया। इस भ्रम को तोड़ना जरूरी है। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म शोषकों का धर्म है जो अपने ही लोगों से मैला उठवाता है।
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