भीमा कोरेगांव हिंसा के मुख्य आरोपी कट्टरपंथी हिंदूवादी नेता मिलिंद एकबोटे को गिरफ्तार कर लिया गया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा एकबोटे की अग्रिम जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद पुणे पुलिस ने यह कार्रवाई की। पुणे ग्रामीण पुलिस ने बुधवार 14 मार्च 2018 को एकबोटे को उसके शिवाजीनगर स्थित घर से गिरफ्तार कर लिया। गुरुवार को उसे शिवाजीनगर की जिला अदालत में पेश किया गया। अदालत ने एकबोटे को 19 मार्च तक के लिए पुलिस रिमांड पर सौंप दिया है।

गौर तलब है कि बीते 1 जनवरी 2018 को भीमा-कोरेगांव विजय के 200 साल पूरे होने आयोजित समारोह में शामिल होने जा रहे लोगों पर आरएसएस के लोगों ने हिंसक हमला किया था। इस मामले में मिलिंद एकबोटे और संभाजी भिडे को आरोपित किया गया था। एकबोटे आरएसएस का वरिष्ठ कार्यकर्ता है और उसे आरएसएस के शीर्ष नेतृत्व का संरक्षण प्राप्त था।
सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार के वकील निशांत कत्नेश्वारकर ने बताया कि बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने एकबोटे की याचिका पर सुनवाई की थी। सर्वोच्च अदालत ने पुलिस द्वारा पेश की गई स्टेटस रिपोर्ट को पहले ही पढ़ लिया था। इसमें पुलिस ने एकबोटे द्वारा जांच में किए जा रहे असहयोग की तरफ सुप्रीम कोर्ट का ध्यान दिलाया है। एकबोटे ने अपनी याचिका में कहा था कि वह घटना के समय वहां पर मौजूद नहीं था। इस पर अदालत ने सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि क्या आपने सोशल मीडिया के बारे में सुना है। अगर कोई अमेरिका में भी बैठा तो भी यहां पर दंगा भड़का सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार द्वारा दाखिल स्टेटस रिपोर्ट में मिलिंद एकबोटे की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करने की मांग की गई थी। इसमें कहा गया था कि कट्टरवादी हिंदूवादी संगठन का नेता एकबोटे पूछताछ के लिए शिकारपुर पुलिस स्टेशन पर 23 फरवरी को बुलाया गया था। जब उससे उक्त घटना में इस्तेमाल किए गए मोबाइल फोन के बारे में पूछताछ की गई तो उसने ढंग से जवाब नहीं दिए। इसका जिक्र दाउंड डिवीजन के सब डिवीजनल पुलिस अधिकारी गनेश मोरे की रिपोर्ट में भी किया गया है।

स्टेटस रिपोर्ट के मुताबिक एकबोटे ने पुलिस को बताया कि उसका मोबाइल फोन खो गया था और उसने फोन खोने के बारे में पुलिस को शिकायत नहीं की थी। स्टेटस रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि एकबोटे से भीमा कोरेगांव क्षेत्र के होटल सोनाई में घटना से कुछ दिन पहले मौजूदगी और उसके सहयोगियों के बारे में भी पूछताछ की गई। इस पर उसने बताया कि वह होटल में कथित आपत्तिजनक पर्चा (पंफ्लेट) देने आया था। उसने रिपोर्टरों को सीधे वह पर्चा वितरित किया और उसके साथ कोई और मौजूद नहीं था।
स्टेटस रिपोर्ट के मुताबिक 24 फरवरी को फिर से क्राइम शाखा ने एकबोटे से पूछताछ की जिसमें उसने अपने घर के बारे में ज्यादा जानकारी देने से मना कर दिया। इसके बाद उसे पांच और नौ मार्च को भी पूछताछ के लिए बुलाया गया। आरोप है कि एकबोटे ने हिंसा से पहले बांटे गए पर्चे की असली प्रति के बारे में कोई जानकारी देने या वह कंप्यूटर में कहां पर सेव है, इसके बारे में बताने से मना कर दिया। लेकिन, दस तारीख को पूछताछ के वक्त उसने पर्चे की वास्तविक प्रति पेश की और बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेदकर द्वारा लिखित एक किताब पेश की, जिसमें से पर्चे के लिए उसने पर्चे के लिए सामग्री लेने की बात कही। जान लें कि एक जनवरी को भीमा कोरेगांव में हुई लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ पर तमाम दलित संगठनों के लोग वहां जय स्तंभ पर जमा हुए थे। वहां से लौट रहे दलित कार्यकर्ताओं पर कुछ लोगों ने हमला बोल दिया था। इस घटना में एक व्यक्ति की मौत हो गई जबकि कई लोग घायल हो गए।
एकबोटे और कट्टरपंथी हिंदू संगठन के नेता संभाजी भिडे के खिलाफ दो जनवरी को अनिता साल्वे की तरफ से पिंपरी थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। इसके अगले दिन सामाजिक कार्यकत्री सुषमा अंधेरे की ओर से यरवदा थाने में एक अन्य एफआईआर दर्ज कराई गई। आगे की जांच के लिए इन दोनों एफआईआर को पुणे ग्रामीण पुलिस के पास स्थानांतरित कर दिया गया। पुलिस का दावा है कि उसके पास एकबोटे के खिलाफ सबूत हैं। एकबोटे ने 30 दिसंबर को आयोजित एक पत्रकार वार्ता में खुलकर दलितों द्वारा भीमा कोरेगांव जय स्तंभ पर जुटने के खिलाफ विरोध जताया था। उसने 29 दिसंबर को जिलाधिकारी को पत्र लिखकर मांग की थी कि जय स्तंभ पर जुटने वाले लोगों को सरकार की तरफ से कोई सुविधा नहीं उपलब्ध कराई जानी चाहिए। पुलिस का दावा है कि एकबोटे ने कोरेगांव के होटल सोनाई में 30 दिसंबर को एक बैठक की थी। इस बैठक को लेकर भी संदेह जताए जा रहे हैं। पुलिस का कहना है कि हालांकि भिडे के खिलाफ भी जांच की जा रही है पर उसके खिलाफ पुलिस के पास पर्याप्त सबूत नहीं हैं।
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