विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा हाल ही में जारी अधिसूचना के बाद देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के दलित बहुजन शिक्षक आंदोलन कर रहे हैं। प्रोफेसर व असिस्टेंट प्रोफेसर सहित अन्य शैक्षणिक पदों के लिए रोस्टर में विश्वविद्यालय के बजाय विभाग को इकाई मानने का फरमान यूजीसी ने सुनाया है। इस संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को आधार बनाया गया है। इसके विरोध में 15 मार्च 2018 को देश की राजधानी दिल्ली में एससी/एसटी/ओबीसी शिक्षक संघ, डूटा (दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ), इंटेक(अखिल भारतीय शिक्षक संघ) के बैनर तले शिक्षकों ने आक्रोश मार्च किया। यह मार्च मंडी हाउस से निकलकर शिक्षा मंत्रालय तक पहुंचा। हालांकि पुलिस ने शिक्षकों को बीच रास्ते में ही रोक दिया और आश्वासन दिया कि उनके ज्ञापन को मंत्रालय में अग्रसारित कर दिया जाएगा। आंदोलनरत शिक्षकों ने सरकार के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात भी कही है।
आक्रोश मार्च के बारे में दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष राजीव रे ने बताया कि भारत सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले के आधार पर आरक्षित वर्गों के हितों की हकमारी कर रही है। पहले विश्वविद्यालय को इकाई मानकर नियोजन होता था और इसके लिए 200 अंकों की प्रणाली का उपयोग किया जाता था। परंतु अब विभाग को इकाई मानने से रोस्टर में स्वभाविक तरीके से आरक्षित वर्गों के लिए जगह सुरक्षित नहीं रह जाती है। इससे उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षित वर्गों की हिस्सेदारी खत्म करने की साजिश की जा रही है।
राजीव ने बताया कि उनकी मांगों में मुख्य रूप से यूजीसी द्वारा जारी अधिसूचना को वापस लिया जाना है। यदि केंद्र सरकार यह अधिसूचना वापस नहीं लेगी तो आंदोलन को और तीव्र किया जाएगा। यह पूछने पर कि यदि केंद्र सरकार अधिसूचना को वापस नहीं लेती है तो क्या शिक्षक संगठनें अदालत में अपील करेंगे, राजीव ने बताया कि सामान्य तौर पर तो यह सरकार का काम है कि वह बहुसंख्यक वर्ग के हितों का ख्याल रखे। यदि वह ऐसा नहीं करती है तो शिक्षक सुप्रीम कोर्ट जाने को तैयार हैं।
वहीं इस मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक महासंघ के महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष प्रो. रीता ने बताया कि केंद्र सरकार के इशारे पर यूजीसी का नादिरशाही हुक्म आरक्षित वर्गों को उनके हक से वंचित करने की साजिश है। एक तरफ इसका असर विश्वविद्यालयों में होने वाले नये नियोजनों में तो पड़ेगा ही, पूर्व में संविदा के आधार पर नियुक्त हुए शिक्षकों के स्थायीकरण प्रक्रिया पर भी पड़ेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार राजनीतिक साजिश के तहत आरक्षित वर्गों को संविधान प्रदत्त अधिकार से वंचित कर रही है।
जबकि एससी/एसटी/ओबीसी शिक्षक संघ के सदस्य डॉ. बलराज का कहना है कि यूजीसी द्वारा हाल में जारी अधिसूचना आरक्षित वर्गों के हितों पर कुठाराघात तो है ही, लेकिन यह एक मौका है कि डूटा जैसी संगठनें अपने अभिजात्यता के कलंक को धो सकें। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए शिक्षक नियोजन हेतु रोस्टर में प्रावधान 1997 में कर दिया गया लेकिन ओबीसी के लिए इस पर 2007 में विचार किया गया व लागू 2013 में किया गया। इस प्रकार पहले से जो बैकलॉग स्वभाविक तरीके से रिक्त था, उसे खत्म कर दिया गया। इस बारे में डूटा खामोश रही। इसकी वजह यह थी कि डूटा के शीर्ष पदों पर सामान्य वर्ग के लोगों का कब्जा था। अब उनके पास पश्चाताप करने का मौका है।
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