दिल्ली विश्वविद्यालय के अंडरग्रेजुएट कोर्सों में नामांकन की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है। विश्वविद्यालय प्रशासन कह रहा है कि छात्रों को प्रवेश के समय कोई परेशानी न हो और सभी तबके के विद्यार्थियों को उनके अधिकार मिलें, इसके लिए नियमों को सरल किया गया है। लेकिन विश्वविद्यालय के इन दावों के विपरीत ओबीसी छात्रों के लिए नामांकन की प्रक्रिया को जटिल बनाया जा रहा है, ताकि यूनिवर्सिटी में इस समुदाय के विद्यार्थी अधिक संख्या में प्रवेश नहीं पा सकें।
इस संबंध में कई बातें सामने आयी हैं। मसलन, ओबीसी के अभ्यर्थियों से कहा जा रहा है कि वे अपना अद्यतन ओबीसी प्रमाण पत्र तहसीलदार अथवा प्रखंड विकास पदाधिकारी अथवा उससे अधिक सक्षम पदाधिकारी से अनुशंसित करवाकर लायें। इसके अलावा, इस बार छात्रों से सिर्फ अपने पिता की ही नहीं, बल्कि अपने पूरे पारिवार का आय प्रमाणपत्र आवेदन के साथ जमा करने को कहा जा रहा है।
यह सभी जानते हैं कि ओबीसी किसी जाति का नाम नहीं बल्कि एक वर्ग है। इस वर्ग का प्रमाणपत्र तभी बनाया जाता है जब अभ्यर्थी गैर-क्रीमीलेयर श्रेणी का होता है। यह प्रमाणपत्र एक ऐसा दस्तावेज है जिस पर प्रखंड विकास पदाधिकारी से लेकर संबंधित जिलाधिकारी तक की मुहर होती है। ओबीसी मुद्दों के लिए संघर्ष कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस तबके से आने वाले अभ्यर्थियों को अपने प्रमाणपत्र को दुबारा अनुशंसित कराने के लिए बाध्य करने के पीछे एकमात्र मंशा यूनिवर्सिटी में उनके प्रवेश को मुश्किल बना देना है।
इस संबंध में फारवर्ड प्रेस ने विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण के ज्वायंट डीन डॉ. अविनाशी कपूर से बातचीत की। उन्होंने स्वीकार किया कि इस बार ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों को सक्षम पदाधिकारी द्वारा अनुशंसित ओबीसी प्रमाण पत्र के अलावा उन्हें अपना वर्तमान वित्तीय वर्ष का क्रीमीलेयर प्रमाण पत्र भी संलग्न करना होगा।
दिल्ली विश्वविद्यालय एससी/एसटी/ओबीसी शिक्षक कर्मचारी महासंघ से जुड़ी डॉ. लता कहती हैं कि ओबीसी वर्ग के साथ दोहरा मानदंड अपनाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि उन्हें इस बाबत जानकारी मिली है कि बीते 22 अप्रैल को एक बैठक कुलपति की अध्यक्षता में होनी थी। इस बैठक में नामांकन प्रक्रिया के सरलीकरण और आरक्षण को शतप्रतिशत लागू करने आदि के सवाल पर चर्चा होनी थी। लेकिन इस बैठक को स्थगित कर दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि कुलपति तानाशाही तरीके से नियम-कानून बना रहे हैं।
वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय में आरक्षण आदि मुद्दों को लेकर लगातार सक्रिय रहने वाले छात्र नेता सुशील कुमार ने बताया कि यह पहला मौका नहीं है जब विश्वविद्यालय में ओबीसी छात्रों के प्रवेश को रोकने की कोशिशें हो रही हैं। उनके मुताबिक विश्वविद्यालय प्रशासन को अंडरटेकिंग प्रक्रिया अपनानी चाहिए ताकि छात्र/छात्राओं को नामांकन में सहूलियत हो। उन्होंने कहा कि देश के कई विश्वविद्यालयों में यह प्रक्रिया अपनायी जाती है। यदि किसी छात्र के पास कोई दस्तावेज (अंक प्रमाण पत्र को छोड़कर) नहीं हो तब भी उनका दाखिला ले लिया जाता है और उन्हें संबंधित दस्तावेज एक निर्धारित अवधि के भीतर जमा करने को कह दिया जाता है।
(कॉपी एडिटिंग : अशोक झा)
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