जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले के हीरानगर तहसील के रसाना गांव की आठ वर्षीया आसिफा बानो को मरे ढाई महीने से अधिक का समय बीत चुका है। उसे गांव के ही बाहर एक मंदिर में तीन दिनों तक ड्रग्स देकर सामूहिक बलात्कार का शिकार बनाया गया था। यह मामला तब तक देश की सुर्खियों में शामिल नहीं हुआ जबतक कि इसका सांप्रदायिककरण नहीं कर दिया गया। इसकी वजह क्या है? क्या यह केवल एक नाबालिग के साथ बलात्कार और उसकी नृश्ंस हत्या से जुड़ा मामला है या इसके कई और तार हैं जो जम्मू-कश्मीर के सामाजिक संरचना से जुड़े हैं?

मृतका के पिता मो. युसूफ पुजवाला गुर्जर जाति के बकरवाल समाज के हैं। 2015 तक वे अपनी भेड़-बकरियों को लेकर परिजनों के साथ घुम-घुमकर जीवन गुजर-बसर करते थे। कठुआ जिले के हीरानगर तहसील के रसाना गांव में किसी तरह से पुजवाला ने अपने लिए जमीन खरीदी और छोटा सा घर बनाया। ऐसा करने वाले वे अकेले नहीं थे। उनके साथ कई और लोगों ने गांव में अपना आशियाना बनाया।
गांव में पहले से हिन्दू सवर्ण रहते आये हैं। गांव में उनकी संख्या और गुर्जरों की संख्या का अनुपात क्रमश: 90 और 10 का है। यही गांव में तनाव का कारण बना। आये दिन हिन्दू सवर्ण गुर्जरों को डराते और धमकाते रहते थे। वे चाहते थे कि गुर्जर गांव छोड़कर बाहर चले जायें।
जम्मू-कश्मीर के सेवानिवृत्त वरीय पुलिस पदाधिकारी मसूद चौधरी बताते हैं कि यह केवल कठुआ जिले के एक गांव का मामला नहीं है। असल में पूरे जम्मू को एक खास धर्म का इलाका बनाने की साजिश की जा रही है। जबकि जम्मू क्षेत्र में बड़ी संख्या में मुस्लिम भी रहते हैं और इनमें ओबीसी की श्रेणी में शामिल घुमंतू जातियों के लोग भी शामिल हैं।

10 जनवरी को हुआ था आसिफा का अपहरण, दफनाने को लेकर विवाद
आसिफा बानो का अपहरण बीते 10 जनवरी 2018 को किया गया। वह अपनी बकरियों को चराने गांव के बाहर के इलाके में गई थी। पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक 12 जनवरी को उसके पिता मो. युसूफ पुजवाला गुमशुदगी की रिपोर्ट हीरानगर थाने में दर्ज करवाया। बीते 17 जनवरी को उनकी बेटी की लाश गांव के बाहर सुनसान में पड़ी मिली थी। गांववालों की सूचना पर पुलिस उसका शव अपने कब्जे में लिया और पोस्टमार्टम के लिए भेजा। पोस्टमार्टम में सामूहिक बलात्कार और तेज धार वाले हथियार से हत्या किये जाने की पुष्टि हुई। पोस्टमार्टम के बाद जब आसिफा का पार्थिव शरीर उसके परिजनों को सौंपा गया तब गांव में फिर विवाद हुआ। विवाद की वजह उसकी अंत्येष्टि थी। गांव के हिंदू सवर्णों ने उसे गांव की सीमा में दफनाये जाने का विरोध किया। हालांकि पुलिस मौके पर मौजूद रही, लेकिन उसने युसूफ पुजवाला और उनके परिजनों को शव दफनाने नहीं दिया गया। बाद में आसिफा का शव गांव से करीब 7 किलोमीटर दूर एक दूसरे गांव में दफन किया गया।
मंदिर में गैंगरेप और हत्या के पीछे डराना था मकसद
स्थानीय लोगों के अनुसार हीरानगर इलाके में हाल के वर्षों में बड़ी संख्या में गुर्जर समुदाय के लोग बसने लगे हैं। पूर्व से रहने वाले लोगों ने कई अवसरों पर गुर्जरों का विरोध किया। उनके बीच मारपीट की घटनायें भी अक्सर होती रहती हैं। रसाना गांव, जहां की आसिफा रहने वाली थी, सवर्ण हिन्दुओं ने कई बार बवाल काटा था कि गांव में मुसलमान बसने लगे हैं। पुलिस के अनुसार आसिफा का शव 17 जनवरी को बरामद किया गया। लेकिन जिन 8 लोगों की गिरफ्तारी मामले में हुई है चार पुलिसकर्मी हैं। इसमें से एक दीपक खजूरिया भी शामिल है जो एक स्थानीय थाने में दारोगा है। उस पर आरोप है कि उसने भी आसिफा के साथ बलात्कार किया। लिहाजा यह समझना जटिल नहीं है कि 10 से लेकर 16 जनवरी तक आसिफा को कैसे कैद कर रखा गया और पुलिस को भनक तक नहीं लगी।

कठुआ पुलिस के अनुसार इस पूरे मामले का खुलासा तब हुआ जब पुलिस ने शुभम सांगरा को हिरासत में लिया। हालांकि पुलिस ने यह सक्रियता तब दिखलायी जब मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने 23 जनवरी को इस घटना की जांच के लिए एसआईटी का गठन करने की घोषणा की। हालांकि राज्य सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए एससी/एसटी/ओबीसी फेडरेशन के प्रांतीय अध्यक्ष आर. कलसोत्रा ने ज्ञापन सौंपा था।
एसआईटी के हत्थे चढ़े शुभम सांगरा ने बताया कि वह सांझी राम था जिसने उसे और गांव के अन्य युवाओं को गुर्जरों को डराने-धमकाने को कहा था ताकि वे गांव छोड़कर चले जायें। सांझी राम एक सेवानिवृत्त रेवेन्यू ऑफिसर है। पुलिस ने शुभम की निशानदेही पर सांझी राम सहित अन्य आरोपियों को गिरफ्तार किया। इनमें प्रवेश कुमार, पुलिस कमी दीपक खजुरिया, तिलकराज, आनंद दत्त और सुरेंद्र कुमार शामिल रहे। तिलकराज पर मृतका के कपड़ों से खून के दाग धोने और सबूत मिटाने का आरोप है। एक अन्य आरोपी विशाल जंगोत्रा को भी इस मामले गिरफ्तार किया गया है। एसआईटी का कहना है कि इसे शुभम सांगरा ने मोबाइल फोन पर मेरठ से कठुआ आने को कहा था यदि वह अपनी हवस मिटाना चाहे।

मंदिर की साख बचाने उतरे सवर्ण हिंदू
पुलिसिया रिपोर्ट में जब यह बात प्रकाश में आ गयी कि आसिफा को छह दिनों तक एक मंदिर (गांव वाले देव स्थान कहते हैं) में रखा गया और उसके साथ गैंगरेप किया गया तब स्थानीय स्तर पर इसे लेकर गोलबंदी शुरू हो गयी। सवर्ण हिन्दुओं ने पहले तो यह मानने से ही इन्कार कर दिया कि मंदिर में बलात्कार किया गया। गांव वालों ने पुलिस पर कहानी गढ़ने का आरोप लगाया। यह मामला उस समय चरम पर तब पहुंचा जब बीते 9 अप्रैल को एसआईटी ने सभी अभियुक्तों के खिलाफ कोर्ट में आरोपपत्र दाखिल करना चाहा। जम्मू कोर्ट में मौजूद वकीलों ने हंगामा खड़ा कर दिया और पुलिस को आरोप पत्र दाखिल करने से रोका। बाद में राज्य सरकार में शामिल बीजेपी मंत्रियों लाल सिंह और चंद्र प्रकाश गंगा ने पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाया। वहीं जम्मू बार एसोसिएशन के अध्यक्ष बीएस सलाठिया का कहना है कि हमलोग भी चाहते हैं कि दोषियों को सजा मिले और इस मामले की सीबीआई जांच हो। लेकिन हमारे खिलाफ गलत कैंपेन चलाया जा रहा है। यह जम्मू को सांप्रदायिकता में बांटने की कोशिश है।
बहरहाल इस पूरे मामले की सुनवाई स्पीडी ट्रायल के जरिए की जा रही है। इसकी निगरानी स्वयं हाईकोर्ट कर रही है। ऐसे में यह तो साफ है कि आसिफा के हत्यारों को उनके किये की सजा मिलेगी। लेकिन गुर्जर समुदाय के लाखों लोगों के समक्ष सुरक्षा का संकट है।
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