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भारत में 2021 में भी हो जातिगत जनगणना : जस्टिस ईश्वरैय्या

ओबीसी के आरक्षण के अनुपालन में क्रीमीलेयर को बाधक बनाया जा रहा है। इस वजह से ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण का कोटा पूरा नहीं होता है। जब तक सभी नियोजनों में ओबीसी को मिलने वाला 27 फीसदी आरक्षण पूरी तरह से लागू नहीं किया जाता, इसमें छूट देने संबंधी राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की पूर्व में की गयी अनुशंसा स्वीकार की जानी चाहिए। नवल किशोर कुमार की रिपोर्ट :

सवा सौ करोड़ से अधिक की आबादी वाले महादेश भारत में पिछड़े वर्ग की दशा सुधारने के लिए एकसाथ कई मोर्चों पर काम करने की जरूरत है। केंद्र सरकार को चाहिए कि वर्ष 2011 में जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए। केंद्र सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि तीन साल बाद यानी वर्ष 2021 में फिर से जातिगत जनगणना करवाई जाए। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति वी. ईश्वरैय्या ने विगत 14 मई को नई दिल्ली प्रेस क्लब में राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ की तरफ से आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान कहा कि बेशक अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 27 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है, परंतु इसका अनुपालन नहीं हो रहा है। इस मौके पर न्यायमूर्ति ईश्वरैय्या ने जनगणना अधिनियम में संशोधन की जोरदार वकालत की। उन्होंने केंद्र सरकार को सलाह दी कि वर्ष 2021 में होने वाली जनगणना में ओबीसी व एससी-एसटी की जातिगत जनगणना सुनिश्चित करे। यही नहीं, उन्होंने केंद्र सरकार से अलग से ओबीसी मंत्रालय गठित करने की मांग उठाई। उन्होंने कहा कि ओबीसी मंत्रालय के गठन से इस वर्ग की समस्याओं का बेहतर तरीके से निराकरण किया जा सकेगा।

न्यायमूर्ति ईश्वरैय्या का मानना था कि भारत में अब तक सही तरीके से सामाजिक न्याय का वास्तविक अर्थ समझा ही नहीं गया है। उन्होंने भारत सरकार बनाम इंदिरा साहनी मामले का जिक्र करते हुए कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने पिछड़ा वर्ग की परिभाषा दी थी। सर्वोच्च न्यायालय की परिभाषा के मुताबिक पिछड़ा वर्ग में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोग ओबीसी कहे जाएंगे। ऐसे में पिछड़ा वर्ग की पहचान केवल जाति आधारित नहीं हो सकती, बल्कि इसमें सभी खेतिहर मजदूर, रिक्शा चालक, सभी प्रकार के वाहनों के चालक, रेहड़ी-फड़ी वाले, अखबारों के हॉकर, दिहाड़ी श्रमिक शामिल हैं। इसी मामले में ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि देश में पिछड़ा वर्ग को लेकर कोई विस्तृत सर्वेक्षण नहीं हुआ है, जिससे उनकी वास्तविक जनसंख्या सहित उनकी शैक्षणिक व आर्थिक स्थिति की जानकारी मिल सके।

बीते 14 मई 2018 को दिल्ली के प्रेस क्लब में आयोजित संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते जस्टिस ईश्वरैय्या व अन्य

न्यायमूर्ति ईश्वरैय्या के अनुसार जब तक ओबीसी से जुड़े आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए जाते, इस वर्ग के लिए प्रभावकारी नीतियां और योजनाएं नहीं बनाई जा सकती हैं। पत्रकार वार्ता के दौरान उन्होंने राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ की मांगों को विस्तारपूर्वक रखा और कहा कि भारत में सभी संवैधानिक पदों में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण मिलना चाहिए। फिर बात चाहे न्यायपालिका की हो या फिर संसद और विधानसभाओं की। यही नहीं, उन्होंने इस आरक्षण का विस्तार जिला परिषदों व स्थानीय निकायों तक करने की बात कही।

उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि ये प्रणाली अब विश्वसनीय नहीं रही है। उन्होंने कहा कि कॉलेजियम प्रणाली में वर्तमान में पक्षपात साफ नजर आता है। इसके बदले एक समान न्यायिक सेवा नियोजन प्रणाली का गठन किया जाए, जो समूचे देश की सभी निचली अदालतों तक में लागू हो। साथ ही इसमें ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण भी तय किया जाए।

न्यायमूर्ति ईश्वरैय्या का कहना था कि केंद्र तथा राज्य के अधीन सभी सेवाओं और पदों में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसका विस्तार सरकारी लोक उपक्रम, बैंक, बीमा क्षेत्र, उच्च शिक्षा और रक्षा विभाग तक किया जाए। न्यायमूर्ति ईश्वरैय्या के मुताबिक लोक उपक्रमों के कर्मियों के मामले में ये देखा गया है कि उनके बच्चों को ओबीसी के तहत आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है। केंद्र सरकार के कार्मिक मंत्रालय की अदूरदर्शी सोच की वजह से इस संदर्भ में अब तक नीति को अंजाम नहीं दिया जा सका है। उन्होंने  केंद्र सरकार के लोक उपक्रम कर्मियों के लिए भी वैसी ही नीति बनाने की वकालत की, जैसी केंद्र व राज्य सरकार के कर्मियों के लिए है। साथ ही मांग उठाई कि उनके वेतन व कृषि से अर्जित आय को पारिवारिक आय का हिस्सा नहीं बनाया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति ईश्वरैय्या ने कहा कि ओबीसी के आरक्षण के अनुपालन में क्रीमीलेयर को बाधक बनाया जा रहा है। इस वजह से ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण का कोटा पूरा नहीं होता है। उन्होंने कहा कि जब तक सभी नियोजनों में ओबीसी को मिलने वाला 27 फीसदी आरक्षण पूरी तरह से लागू नहीं किया जाता, इसमें छूट देने संबंधी राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की पूर्व में की गयी अनुशंसा स्वीकार की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि ओबीसी प्रमाणपत्र को लेकर भी एक बड़ी समस्या पेश आती है। उन्होंने कहा कि एक बार जारी किया गया प्रमाण पत्र हमेशा के लिए वैध होना चाहिए। साथ ही क्रीमीलेयर प्रमाणपत्र भी कम से कम 3 साल तक वैध हो। इससे ओबीसी के अभ्यर्थियों को बड़ी राहत मिलेगी।

न्यायमूर्ति ईश्वरैय्या ने कहा कि ओबीसी का उप-वर्गीकरण एक स्वागत योग्य निर्णय है। हम भी मानते हैं कि आरक्षण का लाभ अति पिछड़ा वर्ग के लोगों को मिले। लेकिन इसके लिए ओबीसी में एक वैज्ञानिक उप-वर्गीकरण किया जाना चाहिए। यह उप-वर्गीकरण भारत की जनगणनना के आधार पर हो ताकि सामाजिक, शैक्षणिक, रोजगार और आर्थिक मूल्यों के सापेक्ष वंचितों की पहचान हो सके। उन्होंने कहा कि भारत में वैश्वीकरण लागू होने के बाद निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़े हैं। लेकिन निजी क्षेत्र में बहुसंख्यक आबादी की हिस्सेदारी नहीं है। उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र में ओबीसी को आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए। इसके लिए केंद्र सरकार आवश्यक कानून बनाए। उनका मानना था कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को एससी आयोग व एसटी आयोग की तरह भारतीय संविधान के तहत संवैधानिक शक्तियां दी जाएं, ताकि आयोग देश भर में ओबीसी से संबंधित विभिन्न समस्याओं के निराकरण के अलावा आरक्षण के उल्लंघन के मामलों में कार्रवाई कर सके।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि ओबीसी के सामने सबसे बड़ी चुनौती शिक्षा के मोर्चे पर है। स्कूली शिक्षा हो या फिर उच्च शिक्षा, ओबीसी को कई दिक्कतें पेश आती हैं। इससे निपटने के लिए विभिन्न स्तरों पर उपाय जरूरी हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को सभी प्रकार की शैक्षणिक संस्थाओं यथा सरकारी, गैर सरकारी, अनुदानित, गैर अनुदानित, उच्च शिक्षण संस्थान, केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय विद्यालयों, सैनिक स्कूलों में ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि उच्च शिक्षा में सभी तरह के विश्वविद्यालयों में हर स्तर के पदों पर आरक्षण का लाभ मिले। साथ ही ओबीसी वर्ग के छात्रों की पढ़ाई पर होने वाले खर्च की सौ फीसदी प्रतिपूर्ति सरकार करे।

उन्होंने कहा कि किसी विभाग को इकाई मानने के बजाय पूरे विश्वविद्यालय को एक इकाई माना जाय। उन्होंने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आरक्षण को प्रभावित करने वाला फैसला है। मैरिट से आने वाले ओबीसी अभ्यर्थियों को सामान्य अभ्यर्थी की श्रेणी में ही रखा जाना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि डीओपीटी को अपने निर्देशों में संशोधन करना चाहिए और मैरिट से आये ओबीसी के अभ्थर्थियों को सामान्य श्रेणी में  शामिल करना चाहिए। ये व्यवस्था इसके बावजूद होनी चाहिए कि बेशक अभ्यर्थी ने आवेदन के समय आरक्षित वर्ग को मिलने वाली किसी सुविधा का लाभ लिया हो।

न्यायमूर्ति ईश्वरैय्या ने पलायन करने वाले ओबीसी के लोगों को आरक्षण का लाभ दिये जाने की मांग उठाते हुए कहा कि इस समय देश के कई हिस्सों में रोजगार की कमी के कारण ओबीसी युवा दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं। लेकिन संबंधित राज्यों में तर्कसंगत नियम नहीं होने के कारण उन्हें इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने कहा कि 1993 के बाद पलायन करने वाले ओबीसी के लोगों को आरक्षण का लाभ मिल सके, इसके लिए एक रिजनेबुल कट ऑफ ईयर का निर्धारण हो।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ओबीसी कर्मचारी कल्याण संघ को एससी-एसटी कर्मचारी संगठनों के समान ही मान्यता प्रदान करे, ताकि ओबीसी कर्मचारी कल्याण महासंघ देश में ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण के अनुपालन का अनुश्रवण कर सके। उन्होंने यह भी कहा कि ओबीसी वर्ग के 60 साल या इससे अधिक आयु के छोटी जोत वाले किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए पेंशन योजना लागू की जानी चाहिए। पत्रकार वार्ता में न्यायमूर्ति ईश्वरैय्या के अतिरिक्त महाराष्ट्र सरकार के कैबिनेट मंत्री महादेव जांकर, पूर्व कुलपति पतंजलि, ओबीसी नेता हंसराज, राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ के महासचिव सचिन राजुरकर, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व सदस्य ए.के. सहनी और तेलंगाना पिछड़ा वर्ग संगम के अध्यक्ष जाजुला श्रीनिवास गोंड सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

 

(काॅपी एडिटर – राजेश)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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